
पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है देवगढ़ किला..
छिन्दवाड़ा-
छिन्दवाड़ा के इतिहास के पन्नो की विरासत का लगता है कोई रखवाला नही है पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद भी देवगढ़ किले का कायाकल्प ना होना अब इस बात की गवाही देने लगा है 16 वी शताब्दी का यह देवगढ़ किला अपने भग्नावशेष के साथ आज भी रहस्य रोमांच का परिचय दे रहा है कहा जाता है कि देवगढ़ को पार किए बिना किसी राजा-महाराजा और आक्रान्ताओ का भारत के दक्षिण क्षेत्र में जाना संभव नही था उस जमाने मे देवगढ़ की ऐसी शान थी किन्तु समय के साथ सब बदल गया और यह विरासत उपेक्षा के ऐसे गर्त में चली गई कि आज तक भी ने जमाने के ने दौर में पर्यटन के लिहाज से भी विकसित नही हो पाई है किला क्षेत्र में पर्यटन और बावली जीर्णाेद्धार के लिए जिला प्रशासन करोड़ों का खर्चा कर क्षेत्र का कायाकल्प कर चुका है किन्तु किले के कताकल्प का कोई प्रस्ताव ही नही है तो क्या पर्यटक यहां किले के भग्नावशेष ही देखेंगे यह बड़ा सवाल है
पर्यटक देवगढ़ किला देखने जाते है और भग्नावशेष के दर्शन कर लौट आते हैं सोलहवीं शताब्दी का यह किला छिंदवाड़ा के गवली और गोंड साम्राज्य के इतिहास को अपने में समेटा है।बताया जाता है कि पहले यहां रनसूर-धनसूर नाम के गवली राजा थे दोनों राजा की उनके ही सेनापति जाटवा शाह हत्या कर किले में कब्जा कर गोंडवाना साम्राज्य की स्थापना की थी ने जाटवा शाह ने लंबे समय तक देवगढ़ में सत्ता चलाई मुगलो के दौर में उसने अकबर से संधि कर इस्लाम कबूल किया था जिसके बाद उसका अवसान हो गया था जिले के पांढुर्ना शहर में जाम नदी के समीप जाटवा शाह की कब्र आज भी है देवगढ़ किले का लंबा चौड़ा इतिहास है देश की आजादी के बाद से यह उपेक्षित पड़ा है पर्यटन के नाम पर यहां कोरोना काल के दौरान रोगायो मद से करोड़ों का बजट व्यय कर अनेक कार्य कराए गए है जिसमें किला क्षेत्र की पुरानी बावलियों के जीर्णोद्धार से लेकर सड़के और प्राकृतिक खुूबसूरती के अनेक निर्माण हुए है। जिला प्रशासन ने पर्यटन विभाग को इसे पर्यटन स्थल घोषित करने का प्रस्ताव भी भेजा था जिसे विभाग ने मंजूर कर देवगढ़ को पर्यटन स्थल घोषित भी कर दिया है
यहां जल्द ही पर्यटकों के लिए रेस्टहाउस सहित अन्य निर्माण भी होना है किन्तु प्रस्ताव में कहीं भी किले का कायाकल्प का प्रस्ताव नहीं है। दरअसल पर्यटन के लिए किला ही आकर्षण का केंद्र और किले का ही जीर्णाेद्धार नहीं हो रहा है। जबकि जिला प्रशासन को सबसे पहले किले का ही जीर्णोद्धार कराना चाहिए ताकि इस ऐतिहासिक महत्व की यह विरासत नया स्वरूप पा सके इसके लिए किले का नया रंगरूप दिया जाना चाहिए साथ ही यहां गवली और गोंड साम्राज्य की विरासत का एक म्यूजियम भी बनाया जाना चाहिए जिसमें किले का इतिहास यहां की संस्कृति, विरासत को सहेजा जा सके