कोयला खदानों को लेकर होती है केवल राजनीति
छिंदवाड़ा-
खदानों को लेकर छिंदवाड़ा में केवल राजनीत होती है बस नहीं खुलती है तो नई खदान। पिछले एक दशक से लगातार जिले के कन्हान और पेंच कोयलांचल में नई खदान को लेकर दर्जनों नौटंकियां हो चुकी है। कोयल मंत्री भी इस अंचल में आकर जा चुके है। फिर भी परिणाम सिफर ही है। जिले का परासिया और जुन्नारदेव विकासखंड का विकास कोयले पर टिका है लेकिन लगातार बंद होती गई खदानों ने क्षेत्र के विकास को ही चरमरा दिया है। दोनों क्षेत्रों में तीन नई खदानें खुलना है जिनमें शारदा, धनकसा और जमुनिया पठार खदान शामिल है। तीनों खदानों का वेकोलि सर्वे कर चुका है और यहां कोयला खनन की शुरुआत के लिए तीनों खदानों का भूमि पूजन भी हो चुका है। भूमिपूजन हुए भी तीन साल से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन खदानों ने कोयला उगलना शुरू नहीं किया है। छिंदवाड़ा किसी जमाने में प्रदेश का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक जिला भी था यहां का कोयला प्रदेश के बिजली तापघरों को सप्लाई किया जाता था और इससे क्षेत्र में खुशहाली थी लेकिन अब समय के साथ खदानें बंद हो गई और नई खदानें शुरू न होने से क्षेत्र का विकास प्रभावित है।
मिलता हजारों लोगों को रोजगार..
तीनों नई खदानें खुलती तो हजारों लोगों को रोजगार मिलता और इसके साथ ही क्षेत्र की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती लेकिन खदानों का यह मामला भूमिपूजन के बाद भी अटका है। सरकार ने अब नई खदानें खोलने की जगह कोल ब्लाक लीज पर देने की नीतियां बना ली है। शायद यही कारण है कि भूमिपूजन होने के बावजूद भी तीनों खदानों के प्रोजेक्ट अब भी अटकें पड़े है। अन्यथा तीनों खदानों को शुरू होने में ज्यादा समय नहीं लगता।
परेशान है दोनों ब्लाकों के वाशिंदे..
वेकोलि यहां नई खदान न खोलकर अपनी लीज की जमीन पर निगाहें गढ़ाए बैठी है। वेकोलि की नीयत यहां की जमीन बेचकर करोड़ों रुपया कमाने की है इसको लेकर लीज क्षेत्र में बसी बस्तियों के वाशिंदों को अबत क दर्जनों नोटिस दिए जा चुके है कि वे वेकोलि की जमीन पर बसे है और जमीन खाली कर दें। वेकोलि की जमीन पर बनें मकान, दुकान और बस्ती को वेकोलि अवैध मानती है। ये सब बस्तियां और बाजार उन क्षेत्रों में है जहां कभी वेकोलि की खदानें थी और अब बंद हो चुकी है। खदान के नाम पर केवल लीज क्षेत्र की जमीन है। वेकोलि के बार-बार नोटिस से वाशिंदे परेशान है। यदि नई खदानें खुलती तो लीज क्षेत्र की यह समस्या भी नहीं आती और यहां के वाशिंदों को खदानों से नया रोजगार मिलता। आखिर जिले में कोयला खदानों के नाम पर कब तक खोखली राजनीति होती रहेगी।