आल्हा- ऊदल की वीरगाथा का महापर्व भुजलिया, छिन्दवाड़ा के ” छोटा बाजार” से निकाला जाएगा परम्परागत भव्य जुलूस
शौर्य, वीरता ,साहस और नारी सम्मान का प्रतीक है भुजलिया महापर्व
कन्नौज के योद्धाओं ने दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को किया था पराजित
मुकुन्द सोनी ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
भुजलिया उत्सव छिन्दवाड़ा शहर की परंपरा का बड़ा उत्सव है। साहस ,शौर्य और वीरता और नारी सम्मान का प्रतीक यह पर्व पूरे देश मे केवल ” छिन्दवाड़ा” में ही “महोबा” के ऐतिहासिक युद्ध का प्रदर्शन करते हुए मनाया जाता है। इस युद्ध मे आल्हा- ऊदल ने राजा पृथ्वीराज चौहान को हराया था। उत्सव के लिए छोटा बाजार श्री बड़ी माता मंदिर से भुजलिया के दिन विशाल जुलुस निकाला जाता है। इस जुलूस में राजा पृथ्वीराज चौहान, आल्हा- ऊदल, राजुमारी चंद्रावल सहित ब्रम्हा , लाखन , ईदल सहित महोबा युद्ध के पात्र हाथी- घोड़े पर सवार होकर निकलते हैं।
जुलूस “श्री बड़ी माता मंदिर” में शक्ति पूजन के साथ शुरू होता है। इस जुलूस में पात्रों के साथ ही अखाड़ा, लोकनृत्य दल, भुजलिया कलश लिए महिलाए, आल्हा गायक, सहित भजन मण्डल के साथ ही अनेक आकर्षण होते हैं। भुजलिया उत्सव समिति पर्व के 15 दिन पहले ” श्री बड़ी माता मंदिर” में विधान के साथ “भुजलिया कलश” रखती है। इसके साथ ही आल्हा गायन, सावन गीत गायन का दौर मंदिर में चलता है और रक्षाबंधन के दूसरे दिन ” भुजलिया” का यह जुलूस निकाला जाता है।
जुलूस छोटा बाजार से गणेश चौक, छोटा तालाब,पुराना पावर हाउस, छोटा बाजार मेन रोड, गोलगंज, राज टाकीज, आजाद चौक, पुराना बैलबाजार कर्बला चौक होते हुए बड़ा तालाब भुजलिया मैदान पहुँचता है। यहां अतिथि और आमंत्रित जनों सहित सहयोगियों और कलाकारों का समिति सम्मान करती हैं। इसके बाद मैदान में ” महोबा” के ऐतिहासिक युद्ध का प्रदर्शन होता है और फिर भुजलिया कलश का बड़ा तालाब में विसर्जन कर यह पर्व मनाया जाता है। पर्व पर लोग एक- दूसरे को भुजलिया देकर गले लगाते हैं और भलाई- बुराई भूलकर अपने जीवन के साथ ही समाज और देश को उन्नत बनाने का संकल्प लेते है।
यह पर्व ऐतिहासिक महत्व का है। छिन्दवाड़ा की भुजलिया उत्सव समीति हर साल पर्व की परंपरा को “जीवंत” करती हैं। छिन्दवाड़ा के लिए पर्व की महत्ता को इसी बात से समझा जा सकता है कि जिला प्रशासन हर साल भुजलिया पर ” इच्छिक अवकाश” घोषित करता है। भुजलिया जुलूस समीति के अध्यक्ष ट्विंकल चरणागर , सचिव कुशल शुक्ला ने बताया कि जुलूस को भव्य बनाने शैला नृत्य प्रस्तुति , बड़े बजरंग बली , डीजे , बैंजो , विशेष आखाड़ा बुलाया गया हैं। जुलूस दोपहर तीन बजे निकाला जाएगा जो शहर के निर्धारित मार्गो से होते हुए शाम 7 बजे बड़ा तालाब मैदान पहुंचेगा।
ये है जुलूस व्यवस्था के प्रभारी…
समिति के संरक्षक कस्तूरचंद जैन , राजू चरणनागर , सतीश दुबे लाला , अरविंद राजपूत , संतोष सोनी राकेश चौरसिया , भोला सोनी , रोहित द्विवेदी चंकी बाऊस्कर , मयूर पटेल , ऋषभ तिवारी , अमित राजपूत , मयंक चौरसिया , छोटू जैन आशु चौरसिया , ऋषभ स्थापक , आकाश बिसेन , तेजस वेले , सावन जैन , अमित जैन ,गौरव गोलू सोनी , अंशुल जैन , दीपक गुप्ता , कान्हा ठाकुर , समकित जैन , आकाश सोलंकी , विपिन सोनी , ध्रुव सोनी , सचिन सोनी , छोटू ठाकुर , तेजस चौरसिया , गौतम सोलंकी , सुजल सोनी , कृष्णा चौरसिया , अनव चौरसिया , नानू बारापत्रे , निस्सू नामदेव , नमन साहू , पार्थ द्विवेदी , कान्हा बेले , अभय पटेल , हर्षित समनपुरे , हिमांशु यादव , समर्थ चौरसिया , चिंटू सरेठा , निखिलेश विश्वकर्मा, मोहित सिंघारे सहित युवा व्यवस्थाओं के प्रभारी है।
महोबा के ऐतिहासिक युद्घ की यह है गाथा.
महोबा का ऐतिहासिक यद्ध 11 वी शताब्दी का है। जो दिल्ली के राजा पृथ्वी राज चौहान और उत्तरप्रदेश बुंदेलखंड की राजधानी “महोबा” के राजा “परमार” के बीच लड़ा गया था। महोबा वह रियासत थी जिसमे राजा परमार के पास ” “पारसमणि” नवलखा हार और सुंदर राजकुमारी” चंद्रावल थी। इन तीनो को पाने के लिए “पृथ्वीराज” ने सेना सहित “महोबा” पर उस समय हमला बोल दिया था जब रक्षाबंधन के दिन राजकुमारी ” चंद्रावल” अपनी सखियों के साथ कीरत सागर में “श्रावणी” विसर्जित करने गई थी।
राजकुमारी चंद्रावल ने अपनी सहेलियों के साथ पृथ्वीराज की सेना से युद्ध किया था । इस युद्ध में राजा परमाल का पुत्र राजकुमार अभई वीरगति को प्राप्त हुआ था। राजा पृथ्वीराज चौहान ने राजा परमाल को संदेश भिजवाया था कि यदि वह युद्ध से बचना चाहता है तो राजकुमारी चंद्रावल, पारस पत्थर और नौलखा हार राजा पृथ्वीराज को सौंप दे। राजा परमाल ने पृथ्वीराज की इस मांग को अस्वीकार कर दिया था । इस कारण कीरत सागर के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबर्दस्त युद्ध हुआ। युद्ध के कारण बुंदेलखंड की बेटियां उस दिन कजली श्रावणी विसर्जित नही कर पाई थी।
महोबा में पृथ्वीराज के आक्रमण की सूचना “कन्नौज” के योद्धा आल्हा और ऊदल और कन्नौज के राजा लाखन तक पहुंची। ये तो वे “साधु” का वेश धरकर कीरत सागर के मैदान में पहुंचे। दोनों पक्षों में भयानक युद्ध छिड़ गया। जिसमे “आल्हा” ने पृथ्वी राज चौहान को पराजित कर दिया था। इस यद्ध में ऊदल सहित पृथ्वीराज के दो पुत्र मारे गए। आल्हा पृय्वी राज चौहान को भी मौत के घाट उतारना चाहता था लेकिन अपने गुरु ” गोरखनाथ” के कहने पर आल्हा ने पृथ्वी राज को जीवन दान दिया था। इस यद्ध के बाद ही बुंदेलखंड में कन्याओं ने कीरत सागर में “श्रावणी” विसर्जन कर “रक्षाबंधन” का पर्व मनाया था।
माँ शारदा ने “आल्हा” को दिया “अमरता” का वरदान..
महोबा का यद्ध साहस वीरता और शौर्य और नारी सम्मान की अदभुद गाथा है। इस पूरी गाथा को वीर रस में “आल्हा गायन” के रूप में गाया जाता है। “आल्हा” माँ शारदा के भक्त थे। उन्हें माँ शारदा ने “अमरता” का वरदान दिया था। इसलिए शारदा पीठ मैहर” में आज भी कहा जाता है कि प्रति दिन ब्रम्ह मुहूर्त में “आल्हा” सबसे पहले “माता” की पूजा करते हैं। मैहर में आल्हा का “अखाड़ा” भी है और उनके “जूते” भी रखे हैं। जूते का आकार देखकर उनकी कद – काठी का अंदाजा लगाया जा सकता है।वीर योद्धा आल्हा और ऊदल की वीरता की कहानी भारत के घर-घर में कही जाती है। इन योद्धाओं ने अलग-अलग 52 लड़ाइयां लड़ीं और सभी में विजयी हुए थे।
110 किलो वजन की थी “आल्हा की “तलवार”
आल्हा की तलवार 7 फीट लंबी और वजन 110 किलोग्राम था और वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे। आल्हा महाकाव्य जगनायक ने लिखा था, जो चंद बरदाई के समकालीन और बुंदेलखंड में महोबा के शासक परमाल के दरबारी कवि थे। चंदवरदाई राजा पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि थे। इस महोबा युद्ध के बाद दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी ने धोखे से यमन में बंदी बना लिया था और यातनाए देकर उनकी आंखें फोड़ दी थी। इसके बाद भी पृथ्वी राज चौहान ने चंदवरदाई की रचना पर अपने शब्दभेदी बाण से मोहम्मद गोरी को मार दिया था। इतिहास में वर्णित है कि पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने अपनी दुर्गति से बचने की खातिर एक-दूसरे पर खंजर चलाकर अपना जीवन समाप्त कर लिया था।