लोकसभा और राज्यो की विधानसभाओ में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण: महिला आरक्षण बिल संसद में पेश
नई संसद नया फैसला, मोदी सरकार का नया कदम

-देश की आधी आबादी को संसद और विधानसभा में प्रतिनिधित्व-
♦Metro City Media-
♦राजधानी दिल्ली-
देश की संसद और राज्यो की विधानसभाओं में अब महिलाओं की भागीदारी 33 प्रतिशत होगी। संसद के विशेष सत्र के बीच सोमवार को “मोदी कैबिनेट” ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी देने के बाद मंगलवार को यह बिल नई संसद में बुलाए गए ” विशेष सत्र” में “नारी शक्ति वंदन विधेयक” के नाम से पेश कर दिया है। 20 सितम्बर को बिल पर संसद में और 21 सितम्बर को राज्यसभा में बहस होगी। प्रधानमंत्री “नरेंद्र मोदी” ने यह साहसिक कदम उठाया हैं। बिल पास होने के बाद लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण को लागू किया जाएगा। देश मे महिला सशक्तिकरण का यह सबसे बड़ा और क्रांतिकारी फैसला है।
केंद्र सरकार की कोशिश है कि इसे व्यापक चर्चा के बाद पास करवाया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संसद का सत्र छोटा है लेकिन समय के हिसाब से बहुत बड़ा, मूल्यवान और ऐतिहासिक निर्णयों का है। इस पवित्र कार्य के लिए ईश्वर ने मुझे चुना है।
अब महिला आरक्षण बिल का कोई भी दल खुलकर विरोध नही कर पा रहा है। जबकि यह बिल वर्ष 1996 से लंबित है। एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था. लेकिन यह बिल पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया गया था। बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव है। इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान भी है लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।
बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं। संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण ख़त्म हो जाएगा।केंद्र में “अटल बिहारी वाजपेयी” की सरकार ने 1998 में लोकसभा में एक बार फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा था। इस वजह से बिल पारित नहीं हो सका था।
इसके बाद वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी ” महिला आरक्षण बिल”पारित कराने की कोशिश की गई थी लेकिन प्रयास सफल नहीं हो पाए थे। केंद्र से “अटल” सरकार के जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार जब सत्ता में आई थी तब प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया था। राज्यसभा में यह बिल 9 मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ था। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था। यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया था। इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं। ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे। ऐसे में कांग्रेस को डर था कि यदि उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में आ सकती है और बिल लोकसभा में नही रखा गया था।
साल में 2008 में ” महिला आरक्षण बिल” संसद की क़ानून और न्याय स्थायी समिति को भेजा गया था। इसके दो सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे। इन नेताओ ने कहा था कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं. लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया है। वे उससे सहमत नहीं है। इन दोनों सदस्यों की सिफ़ारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को दें और महिला आरक्षण 20 फ़ीसदी से अधिक नही होना चाहिए। वर्ष 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया था। लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल के अभी जिंदा होने की बात कही गई है।
अब इसे लोकसभा में “मोदी सरकार ने “नए सिरे से “नारी शक्ति वंदन विधेयक” के नाम से पेश किया है। लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी के लिए भेजा जाएगा और “राष्ट्रपति” की मंजूरी के बाद बाद यह क़ानून बन जाएगा। अगर यह बिल क़ानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा। इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी किन्तु कहा जा रहा है कि बिल को जनगणना और परिसीमन के बाद लागू किया जाएगा। फिलहाल संसद और राज्यसभा दोनो सदन में बिल पर अभी बहस होना है।वेतमान में लोकसभा में 82 और राज्य सभा में 31 महिला सदस्य हैं। लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी 15 फ़ीसदी और राज्य सभा में 13 फ़ीसदी है। बिल के बाद संसद में महिला सांसदों की संख्या 183 हो जाएगी। इसी तरह देश के “राज्यो” की विधानसभाओं में भी महिला विधायको की संख्या एक तिहाई हो जाएगी।