मोहर्रम पर निकाला ताजियों का जुलूस, कर्बला में लगा मेला
बाबाओं की सवारियों ने किया शहर का सफर, जगह- जगह नाचे मन्नत के शेर
♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद सल्लाह के नवासे हजरत हसन- ए- हुसैन सहित 72 शहीदों की कर्बला में शहादत की याद में मनाए जाने वाले को मातमी पर्व मोहर्रम पर मुस्लिम समाज ने बड़ा इमाम बाड़ा से ताजियों का जुलूस निकाला। हजारो की संख्या में मुस्लिम बंधुओ ने जुलूस में शिरकत की। जुलूस में ताजियों के साथ ही सफर करती सवारियां ,मन्नत के शेर , अखाड़ा कला दिखाते कलाबाज शामिल थे।
या हुसैन के नारों के साथ जुलूस बड़ा इमामबाड़ा से मोती वार्ड, छोटा बाजार, चौरसिया मोहल्ला, रॉयल चौक होते हुए पुराना बैल बाजार करबला चौक पहुंचा जहां करीब तीन घण्टे तक ताजिया लोगो के दर्शनार्थ रखे गए थे। इसके बाद पर्व की रस्मे निभाई गई। जुलूस में ताजदारो द्वारा बनाए गए करीब दो दर्जन छोटे बड़े ताजिए शामिल थे। ताजियों को आकर्षक रूप से बनाया गया था।
मुहर्रम पर तीन दिनों तक शहर के बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, नाइस चौक, पुराना छापाखाना , पूर्वी बुधवारी, पावर हाउस, वाल्मीकि वार्ड, उंटखाना सहित अन्य क्षेत्रों से बाबाओं के मुजावरो ने नेजा के साथ सवारियां भी निकाली और शहर की गश्त कर दीन – दुखियों की फरियाद सुनी। सवारियों के साथ बाबाओं के अनुयायियों का हुजूम भी बाजो- गाजो के साथ शामिल था। इस दौरान मन्नत के शेरो ने भी जगह- जगह बाजो- गाजो के साथ शेर नाच दिखाया।
जुलूस को लेकर जिला और पुलिस प्रशासन हाई अलर्ट पर था। जुलूस मार्ग पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था। जिला और पुलिस प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी भी शांति और कानून व्यवस्था को लेकर जुलूस में शामिल थे।
ताजिया हजरत हसन- ए – हुसैन की याद में ताजदारो द्वारा बनाए जाते हैं। जिन्हें उनका मकबरा माना जाता है। मुहर्रम से इस्लामिक कलैण्डर का नया साल शुरू होता हैं। इस नए साल के पहले 10 दिन को अशूरा का दिन माना जाता हैं। मुहर्रम दसवें दिन मनाई जाती है। यह मुस्लिमों के लिए खुशियों का नही बल्कि मातम और समर्पण का त्यौहार हैं। मुहर्रम के महीने को हिजरी भी कहा जाता हैं।
शहादत के इतिहास और मान्यता के अनुसार सन 680 में कर्बला नामक स्थान पर युद्ध में पैगम्बर हजरत मुहम्म्द सल्लेह के नाती हुसैन इब्न अली यजीद के साथ युद्ध मे अपने धर्म की रक्षा के लिए 72 साथियों के साथ शहीद हो गए थे। कहा जाता है कि मोहर्रम के महीने का दसवां दिन वही दिन है जिस दिन हुसैन अली शहीद हुए थे। उनकी शहादत के दुख में ही मुहर्रम मनाई जाती है। हजरत हुसैन अली ने यजीद की बादशाहत स्वीकार नहीं की थी और अंत तक धर्म की रक्षा के लिए लड़ते रहे थे।
उनकी याद में ही ताजियों को बनाया जाता है।जिसे मकबरे का स्वरूप देेेकर झांकी की तरह सजाया जाता है फिर जुलूस निकाला जाता है। इसके पहले कत्ल की रात की रस्म में भी ताजिया 9 तारीख की रात को बड़ा इमामबाड़ा में भी रखे जाते हैं। शहर के कर्बला मैदान पुराना बैल बाजार में ताजदारो के बनाए ताजियों का मेला देखने हजारो की संख्या में लोग पहुंचते हैं