छिन्दवाड़ा में बनेगा “खाटू श्याम बाबा” का भव्य मंदिर, 23 नवम्बर जन्मदिन पर निशान यात्रा के साथ भूमिपूजन
पूजा शिवि लॉन में सजेगा दरबार, होगी भजन संध्या, हजारो की संख्या में जुटँगे भक्त
♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
राजस्थान सीकर के महातीर्थ की तर्ज पर छिन्दवाड़ा में भी ” खाटू श्याम बाबा” का भव्य मंदिर बनाया जाएगा। छिन्दवाड़ा के श्याम भक्तों ने यह पहल की है। मन्दिर के भूमिपूजन के लिए बाबा के जन्मदिवस तुलसी ग्यारस 23 नवम्बर को चार फाटक स्थित संतोषी माता मंदिर से “निशान यात्रा” निकाली जाएगी।जिसमे जिले भर के ” श्याम भक्त शामिल होंगे। बाबा का यह मंदिर छिन्दवाड़ा सिवनी मार्ग पर स्थित बोहता में वृंदावन लॉन के सामने बनेगा।
खाटू श्याम भक्त मण्डल” बाबा” का भव्य जन्म उत्सव भी मना रहा है। इसको लेकर 23 नवम्बर की शाम पूजा शिवि लॉन में बाबा की ज्योत के साथ भव्य दरबार सजेगा। यहां इत्र वर्षा, पुष्प वर्षा,के साथ बाबा की भजन संध्या होगी। बाबा के मन्दिर निर्माण से भक्तों में अपार उत्साह है। पिछले तीन वर्षों से लगातार बाबा के भक्त उनकी भक्ति की ज्योत जला रहे हैं। हर साल छिन्दवाड़ा से हजारो की संख्या में भक्त दर्शन के लिए बाबा के तीर्थ राजस्थान के सीकर भी जाते हैं।
कौन है खाटू श्याम बाबा ..?
आइए आपको बताते हैं कि खाटू श्याम बाबा कौन है। आपने ” हारे का सहारा खाटू श्याम बाबा” यह तो सुना ही होगा। बाबा आज से नही द्वापर युग से है। बाबा खाटू श्याम का असली नाम बर्बरीक है। महाभारत काल मे बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया गया था। इसीलिए बर्बरीक का नाम खाटू श्याम बाबा पड़ा। वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है. खाटू श्याम बाबा कलियुग में कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में जाने जाते है।
खाटू श्याम बाबा घटोत्कच और नागकन्या नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं। पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे। कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे। इसलिये उनका नाम बर्बरीक रखा गया था।
बर्बरीक बचपन से ही एक वीर और तेजस्वी बालक थे। बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त की थी।बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। जिसमे वरदान में भगवान ने शिव ने बर्बरीक को तीन चमत्कारी बाण दिए थे। बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी भी है। भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था। जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे।
जब कौरवों-पांडवों के युद्ध की सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया. बर्बरीक अपनी माँ का आशीर्वाद लेकर हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर निकल पड़े थे। इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई है।
जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला। यह ब्राह्मण कोई और नहीं, भगवान श्री कृष्ण थे जो कि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे.।ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है। मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है। बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा। तीनों तीर के उपयोग से सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है।
ब्राह्मण ने बर्बरीक से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए। बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया। उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा। असल में भगवान श्री कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा रखा था। बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है. बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा।
भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए. उन्होंने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे। बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित किया है। वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे। भववान श्री कृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे। कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे। इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे। अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे।
कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण बने भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा। बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया. अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए। इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों।
तब भगवान श्री कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन महाभारत का युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है। भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया। बर्बरीक ने अपना शीश काटकर भगवान श्री कृष्ण को दे दिया। भववान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया था। जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें. इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया था।
महाभारत का महान युद्ध जब समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए। विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है. श्री कृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं। इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए। तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र भगवान श्री कृष्ण को जाता है। क्योकि यह सब कुछ भगवान श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ है। विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी।
बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे। भगवान श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान है। मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे। कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे।
भगवान श्री कृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा अपने भक्तों पर निरंतर कृपा बनाये रखते हैं। बाबा श्याम अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं।। इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा सताया गया होता है वो भी अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का सच्चे मन से नाम ले और स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है।
खाटू गांव में मिला था बाबा का शीष..
कहा जाता है कि कलयुग की शुरुआत में राजस्थान के खाटू गांव में ” श्याम बाबा ” का सिर मिला था। इसलिए उन्हें ” खाटू श्याम बाबा” कहा जाता है। ये चमत्कारिक घटना तब घटी जब वहां खड़ी गाय के थन से अपने आप दूध बहने लगा था। इस चमत्कारिक घटना को देखकर लोगों ने उस स्थल को जब खोदा तो यहां खाटू श्याम बाबा का सिर मिला था। अब लोगों के बीच में ये दुविधा शुरू हो गई कि इस सिर का क्या किया जाए। बाद में उन्होंने सर्वसम्मति से एक पुजारी को सिर सौंपने का फैसला लिया। इसी बीच क्षेत्र के तत्कालीन शासक रूप सिंह को ” बाबा श्याम” का मंदिर बनवाने का स्वप्न दाखिला मिला था। रूप सिंह चौहान के कहने पर इस जगह पर ही बाबा श्याम के मंदिर का निर्माण किया गया और खाटूश्याम का सिर स्थापित किया गया है। पिछले एक हजार साल से यहां बाबा की पूजा हो रही है और बाबा सबकी मनोकामना की पूर्ति करते हैं। आज खाटू श्याम बाबा के जन्मोत्सव पर लाखों की संख्या में भक्त राजस्थान के इस महातीर्थ में जुटते है।खाटू श्याम बाबा का यह तीर्थ अब पूरे देश में विख्य्यात है। बाबा का मन्दिर विशाल परिसर में राजस्थान शैली में बना है। यहां बाबा जे नाम से बड़ा ” श्याम कुंड” भी है। सन 1027 में रूपसिंह चौहान और नर्मदा कँवर ने उनका यह पहला मन्दिर बनवाया था। यहां उनके सिर की पुजा होती है जबकि बाबा के शरीर की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के एक छोटे से गांव स्याहड़वा में होती है।