Metro City Mediaछिन्दवाड़ामध्यप्रदेशराजनीति

छिन्दवाड़ा भाजपा : नए नेता जीते ना ही पुराने नेता दिखा सके कमाल, पार्टी ने दोनों को आजमाया फिर भी खिला नही कमल

ना चले चेहरे ना कोई गणित ना ही लहर और ना ही लाड़

Metro City Media

Chhindwara Political Review-

मुकुन्द सोनी ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-

विधानसभा चुनाव में छिन्दवाड़ा की सात सीटो में से पांच सीट पर प्रत्याशी बदलने के बाद भी कोई बदलाव नही हो पाया है। चुनाव में भाजपा के नए प्रत्याशियों से जीत मिली ना ही पुराने प्रत्याशी ही कुछ कर पाए है। मामला पार्टी के वोट तक आकर ही सिमट गया है।  छिन्दवाड़ा में ना मोदी मैजिक चला ना शिवराज लहर ना ही लाडली बहनों का लाड़। पार्टी ने छिन्दवाड़ा  में दो- दो लाडली सहित  विवेक साहू, अमरवाड़ा में मोनिका बट्टी, चौरई में लखन वर्मा, परासिया में ज्योति डेहरिया और पांढुर्ना में प्रकाश उइके को मैदान दिया था। वही सौसर से पूर्व विधायक नाना मोहेड और जुन्नारदेव से पूर्व विधायक नत्थन शाह को भी पुनः आजमाया था।किन्तु भाजपा के सातों उम्मीदवार हार गए। अब सवाल यह भी उठ रहा है कि  जब भाजपा  का प्रत्याशी चयन सवालों में था तब विरोध के स्वर  नही बल्कि खुलेआम मुखरित विरोध सामने आने  बाद भी  कार्यकर्ताओ की भावनाओं का ध्यान नही रखा गया ना ही कोई तव्वजो दी गई।

भाजपा में संगठन ही सब कुछ है तो  फिर छिन्दवाड़ा में चुनाव के समय यही बात सामने आई  है कि  प्रत्याशी तय करते समय  ना जाने संगठन कहा चला जाता है कि  ना राय शुमारी ना कार्यकताओं की सहमति ना संभावित प्रत्याशियो का कोई पैनल  बस सीधे  फैसला सुना दिया गया था।  यही कारण है  कि लाख कोशिश के बाद भी भाजपा को छिन्दवाड़ा में सफलता हाथ नही लगती है। छिन्दवाड़ा नगर निगम के महापौर चुनाव में भी यही सब कुछ  हुआ था। जिसका परिणाम सामने आने के बाद भी पार्टी ने कोई सबक नही लिया। इसका सीधा फायदा का कांग्रेस को होता है कि उसका गढ़ कभी टूटता नही टूटती तो भाजपा है।  भाजपा यहां पहले महापौर का चुनाव हारी फिर जिला पंचायत का और अब विधानसभा का भी चुनाव हार गई हैं।  पांच साल पार्टी यहां  संगठन के सहारे रहेगी और सत्ता की दम पर संगठन की नेतागिरी ऐसी चलेगी जैसे  जिंदा हाथी लाख का और मरा सवा लाख का।

पार्टी की सत्ता, दर्जनों दिग्गज, चुनावी प्रबन्धन ,सरकार की तमाम योजनाएं और उनके लाखों हितग्राही और साल भर पहले से तैयारी के साथ फण्ड की भी कोई कमी नही फिर भी  भाजपा के हाथ  छिन्दवाड़ा में कुछ नही  है । यहां कोई नेता ना सांसद बन पाता है ना ही विधायक ना महापौर ना ही जिला पंचायत का अध्यक्ष। चुनाव दर चुनाव छिन्दवाड़ा में  यही सब कुछ सामने आ रहा है। जबकि पार्टी प्रदेश से लेकर देश तक मे प्रभावी है। देश जीत रही है प्रदेश जीत रही है और यहां एक जिला नही जीता जा रहा है।

यह भाजपा की सरकार का लगातार दूसरा टर्म होगा कि  छिन्दवाड़ा से पार्टी का एक भी विधायक नही है। यदि  होता तो प्रदेश की सरकार में मंन्त्री होता। स्वयं पार्टी का  केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व को छिन्दवाड़ा से जीत का इंतजार था। आखिर कमी कहा है। यहां पार्टी में ऐसा कौन सा वास्तु दोष है जो हाथ आ रही सफलता को भी असफलता में बदल देता है। छिन्दवाड़ा  कांग्रेस का गढ़ है तो भाजपा का गढ़ आखिर कब बनेगा। मोदी लहर, शिवराज लहर से लेकर लाडली बहना का लाड़ भी यहां कोई असर नही दिखा पा रहा है। कांग्रेस का गढ़ ढहाने की जगह खुद भाजपा का गणित गड़गड़ा रहा है।

हितग्राही की बात करे तो छिन्दवाड़ा में  चार लाख से ज्यादा लाडली बहना है। अकेले  प्रधानमंत्री आवास योजना के हितग्राही  शहरी और ग्रामीण मिलाकर दो लाख से ज्यादा है।  पांच लाख से ज्यादा अन्न योजना के लाभार्थी है। अन्य दर्जनों योजनाओ की बात ही छोड़ दो  फिर भी पार्टी का वोट बैंक जीत का रास्ता प्रशस्त नही करता है। कांग्रेस ने ना ऐसी योजनाएं बनाई ना इतने बड़े पैमाने पर लाभ दिया है फिर भी वह विनर है और एक – दो नही सातों सीट की ..

इसका सीधा सा अर्थ यह भी हो सकता है कि यहां  प्रभावित होने वाला मतदाता का वर्ग बड़ा है। जो  यहां तात्कालिक लाभ के प्रलोभन में  प्रभावित  हो जाता है। इसे रोकने की कोई व्यवस्था पार्टी में नही है। यह सब कुछ चुनाव के दरमियां होता है और चुनाव में वोटिंग से पहले खत्म भी हो जाता है। साजिश छोटी मगर बड़ी प्रभावी है। इसका विरोध  इसलिए भी नही है कि यह हथकंडा तो दोनो तरफ से आजमाया जाता है। सवाल यह है कि हथकंडे की अप्रोच में कौन प्रभावी रहा जो प्रभाव में रहा वह कभी अभाव में नही रहा है। बिना किसी पुष्टि के  चुनावी फेक्टर में यह एक बड़ा फेक्टर  कहा जा सकता है। जो समीक्षा का अंग भी नही रहता है।

रही बात चुनाव की रणनीति की तो रण में योद्धाओं के बिना कैसी रणनीति। जो प्रत्याशी वह योद्धा नही है। जो योद्धा वे है रण में नही है। जो चुनाव की रणनीति के वाहक है। जो केमेस्ट्री से लेकर फिजिक्स तक सेट करते हैं वे मैदान से नदारद है।  बड़ी बड़ी सभाएं बड़े बड़े दिग्गज बड़ी जनता उमड़ती भीड़ तो बस ऐसी लगती है मानो छिन्दवाड़ा में भाजपा के सिवा कुछ है ही नही। ऐसा माहौल ऐसा खांका बनता है कि ओवर कॉन्फिडेंस में पूरा चुनाव ही निकल जाता है और फिर पता चलता है कि सीट भी हाथ से निकल गई है। छिन्दवाड़ा में भाजपा इसकी अभयस्त हो चुकी है।इसलिए हार के बाद छिन्दवाड़ा की ना सही प्रदेश में जीत की खुशी मना लेती है।समीक्षा में बताया जाता है कि वोट शेयर तो बढ़ा है।

कायदे से सबक तो भाजपा को कांग्रेस से ही ले  लेना चाहिए। कांग्रेस में एक ही नेता एक ही चेहरा  हैं कमलनाथ।जिनकी आभा के नीचे पूरी कांग्रेस एक है।  वे भी कभी कांग्रेस  कार्यकर्ता ही थे। संजय गांधी के दोस्त थे।  कांग्रेस पार्टी के लिए कार्य करते थे। 43 साल पहले लोकसभा का चुनाव लड़ने छिन्दवाड़ा भेजे गए  थे। इसके पहले कभी कोई चुनाव लड़ा ना था। जब पहला चुनाव जीता तो छिन्दवाड़ा के प्रति अपना  समर्पण दिखाया और फिर पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया।  उनकी निष्ठा का ही यह परिणाम है कि 9 बार लोकसभा और दो बार विधायक का चुनाव जीतकर पार्टी के दिग्गज है। छिन्दवाड़ा में  लैंडमार्क डेवलपमेंट कराया और स्वयं भी लैंडमार्क बन गए। जनाधार इतना कि  कितनी ही विपरीत परिस्थिति हो छिन्दवाड़ा की जनता साथ छोड़ती नही है। उम्र के आठवें दशक में अपने बेटे नकुलनाथ को भी सांसद बनवाकर भविष्य के लिए स्टैंड कर दिया।

भाजपा में  ऐसा कोई नेता ही नहीं है जो उनकी बराबरी पर खड़ा हो सके। पूरे जिले को एक रख सके यहां तो विधानसभा क्षेत्र तक एक राय नहीं है। एक को टिकट तो दूसरा नाराज दूसरे को टिकट तो तीसरा नाराज ना कोई गणित चल पाता है ना कोई चेहरा परिणाम गुटबाजी बनी रहती है। पार्टी गुटबाजी की बाजीगरी को ठीक करने कभी केंद्र के नेता भेजती है तो कभी प्रदेश के और रिपोर्ट के बाद परिवर्तन करने  से भी परिवर्तन आ जाए परिणाम देखकर तो लगता नही है।

परिणाम सब बता देता है कि क्या हुआ है। बूथवार आकलन बूथ के कार्यकर्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाता नजर आता है। बूथ पर रिजल्ट कार्यकर्ता का नही नेता का होता है कि उसका कितना जनाधार है। अब लोकसभा चुनाव आने वाले हैं भाजपा के सामने फिर समस्या है कि छिन्दवाड़ा जिले का नेता कौन और सवाल यह भी है कि जब एक विधानसभा सीट नही जीत पा रहे हैं तो लोकसभा में तो एक साथ सात सीट जीतने का चेलेंज है। सवाल यह भी है कि 2014 में मोदी जी के आने के बाद से पार्टी के तेवर  से लेकर कलेवर तक सब कुछ बदला हुआ है।इसके पहले संघर्ष का ही दौर था तो क्या पार्टी संघर्ष के दौर के नेताओ को भुलाकर तो भूल नही कर रही है। भाजपा को छिन्दवाड़ा में चिंतन – मंथन की जरूरत है क्योकि यहां तो नया कलेवर आ नही रहा है और पुराना जा नही रहा है।


Metro City Media

Metro City Media

Chhindwara MP State Digital News Channel & Advertiser Editor-Mukund Soni Contact-9424637011

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker