Chhindwara Chit – Chat : चुनाव से पहले ही क्यो बदले जा रहे छिन्दवाड़ा में कलेक्टर, छिन्दवाड़ा में फुल टू राजनीति
विकास कार्य पिछड़े, अफसरों पर लगाम नही, भाजपा केवल चुनाव जीतने के गणित में

मुकुन्द सोनी ♦ छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश
-Chhindwara Chit – Chat-
भाजपा को क्या कलेक्टर चुनाव जिताएंगे..
छिन्दवाड़ा में केवल फूल टू राजनीति चल रही है। ख्वाब लोकसभा जीतने का है पर काम – धाम कुछ हो नही रहा है। छिन्दवाड़ा में विकास के कोई भी नए प्रोजेक्ट भाजपा सरकार ने लांच नही किए हैं। ना ही छिन्दवाड़ा के लिए वर्तमान और भविष्य की कोई कार्य योजना नजर आ रही है । चुनाव जीतने के बाद यहां कांग्रेस भी कुछ कर पाने की स्थिति में नही है। जिले का विकास ही रुका पड़ा है। चुनाव जीतने के लिए सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को भाजपा वोट बैंक मान रही है तो ये लाभार्थी विधानसभा के चुनाव में भी थे। यहां वर्तमान में नगर निगम को जरूरत थी कमिश्नर की। उनकी पदस्थापना तो हुई नही लेकिन सरकार ने नए कलेक्टर के तौर पर आई ए एस शीलेन्द्र सिंह को जरूर भेज दिया है। उनके आने के बाद यह विषय मुदद्दा बन रहा है कि आखिर भाजपा की सरकार चुनाव के पहले ही कलेक्टर का तबादला क्यो कर रही है। विधानसभा चुनाव से पहले कलेक्टर शीतला पटले का तबादला कर मनोज पुष्प को लाया गया था और अब लोकसभा चुनाव के पहले कलेक्टर मनोज पुष्प का तबादला कर शीलेन्द्र सिंह को लाया गया है। तबादले से छिन्दवाड़ा में यह सवाल है कि कलेक्टर चुनाव जिता सकते हैं क्या जो चुनाव से पहले उनकी बदली कर दी जा रही है।
कमलनाथ – नकुलनाथ को लेकर माइंड गेम..
देश मे भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत के अभियान में लगी है और यहां कांग्रेस ने भाजपा मुक्त छिन्दवाड़ा बना रखा है। नगरीय निकाय, पंचायत के बाद विधानसभा के चुनाव में यह हो चुका है। अब बारी लोकसभा के चुनाव की आ रही है तो इस चुनाव से पहले छिन्दवाड़ा के नेता पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और सांसद नकुलनाथ को लेकर माइंड गेम चल रहा है कि वे भी भक्त होने वाले हैं। इस गेम के फाइनल पटाक्षेप का छिन्दवाड़ा इंतजार कर रहा है। छिन्दवाड़ा के लोगों का मानना है कि कांग्रेस देश मे भले ही कमजोर हो गई हो लेकिन छिन्दवाड़ा का नेता इतना कमजोर तो नही है कि राज्यपाल पद या राज्यसभा में जाने के लिए भाजपा के आगे घुटने टेक दे। किन्तु इस माइंड गेम को दोनो नेता भी माइंड नही कर रहे हैं। चल रही हवा का वैसा सशक्त विरोध नही कर पा रहे हैं जैसा करना चाहिए। इससे यह बात बनी हुई है कि आज नही तो कल उनका भाजपा में प्रवेश हो सकता है। कारण है कि कही उनके पीछे भी ed ना लग जाए।
नगर निगम आने को तैयार नही कोई अफसर..
बात नगर निगम की ले तो यह सीधे जनता जुड़ा विभाग है। यहां के कमिश्नर का तबादला करा दिया गया है या उन्होंने खुद परेशान होकर नया रास्ता बनाकर चल दिए यह रहस्य का विषय है किंतु पब्लिक का यह डिपार्टमेंट बिना बजट के और बिना कमिश्नर के चल रहा है। तीन माह से अधिकारियों – कर्मचारी यहां बिना वेतन के है। हालत इतनी खराब हो चली है कि शहर में कचरा वाहन दौड़ाने का भी बजट नही है।प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंन्त्री कैलाश विजयवर्गीय भी छिन्दवाड़ा आए थ। इस दौरान उन्होंने नगर निगम और उसकी समस्याओं को सिरे से खारिज कर दिया मंन्त्री जी खाली हाथ छिन्दवाड़ा आए थे। नगर निगम को कोई बजट भी नही दिया और कहा कि हम लाखो वोट से छिन्दवाड़ा जीतेंगे। नगर निगम दरअसल भृष्टचात का बड़ा अड्डा है। नेताओं की दुकानदारी भी नगर निगम से ही चल रही है। नगर निगम में एक्शन, कार्रवाई , जांच , सजा रिकवरी जैसा कोई प्रावधान है ही नही है। जबकि खोजने जाए तो निगम बड़ी – बड़ी गलतियों का बड़ा पिटारा है। फिलहाल वित्तीय संकट के चलते कोई अफसर यहां आने को तैयार नही है।
भृष्ट अफसरों का चारागाह बना छिन्दवाड़ा ..
छिन्दवाड़ा के प्रशासनिक जगत में भाजपा की लगाम नही है। सांसद – विधायक कांग्रेस के है। ऐसे में अफसरों को मनमानी का बड़ा अवसर मिल गया है। किसी भी विभाग के कार्य की कोई समीक्षा होती है ना ही कोई कार्रवाई। भृष्ट अफसरों का छिन्दवाड़ा चारागाह बना हुआ है। अभी हाल ही में छिन्दवाड़ा यूनिवर्सिटी के कुल सचिव रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए इसके बावजूद भी पद पर बने हुए हैं। उनके खिलाफ विभाग ने कोई एक्शन लिया ही नही है। इसके पहले भी छिन्दवाड़ा में करीब दर्जन भर अधिकारी – कर्मचारी को लोकायुक्त रिश्वत लेते रंगे हाथों ट्रेप कर चुकी हैं।
खनिज विभाग की खनक के आगे सब फीके ..
खनिज विभाग में खुले आम लूट मची हुई है रॉयल्टी कटाने के बाद भी रेत के वाहन जबरिया वसूली के चक्कर में खड़े कराए जा रहे हैं। जिले में ना केवल रेत बल्कि 45 क्रेशर अनुमति के नाम पर बंद करा दिए गए हैं। अफसरों को केवल खनिज की खनक ही दिखाई दे रही है। वैसे ही रेत , ईंट, गिट्टी , लोहा के दाम आसमान छू रहे हैं। गरीब अपना आशियाना भी नही बना पा रहा है और अफसर है तो कुछ समझने को तैयार नहीं कि विभाग की गतिविधि का जनता पर क्या असर होगा।
वसूली ने बिगाड़ी जनजातीय विभाग के छात्रावासो की व्यवस्था …
जनजातीय विभाग में भी भ्रष्टाचार कम नहीं है। वसूलीबाज अफसरों के कारण छात्रावास और आश्रमो की व्यवस्था इस कदर पटरी से उतरी है कि छात्रावास और आश्रमो के अधीक्षक बच्चो के हक का निवाला धड़ल्ले से बाजार में बेच दे रहे हैं और बच्चो को मुरमरा खिला रहे हैं। विभाग में यह बड़ा अजूबा है कि कोई भी अधीक्षक ना छात्रावास में रहता है ना आश्रम में और उसका संचालक बना बैठा है। जबकि छात्रावास और आश्रम अधीक्षक के लिए पहला नियम यही है कि उन्हें छात्रावास और आश्रम में ही रहना होगा। पता नही इस नियम का पालन कब होगा। यहां तो अफसर सब कुछ जानते हैं मगर हर माह की बैठक के चलते किसी को कुछ नही कहते क्योंकि बैठक में बैठे – बैठे ही जब सबकुछ हो जाता है तो फिर भला बच्चो की कौन सुनता है। यहां तो विभाग के स्कूल में तो ऐसे प्राचार्य भी बताए गए है जो स्कूल ना आने वाले शिक्षकों की हाजरी भरकर वेतन निकालने के बदले वेतन का कमीशन ले लेते हैं।
जिला पंचायत में अधिकारी राज..
जिला पंचायत में भी मनमानी का आलम है। पंचायत राज में अफसर पंचायत के निवाचित प्रतिनधियों की ना सुनकर अधिकारी राज चला रहे हैं। करोड़ो का बजट खपाने बड़े प्लान से काम कर रहे है। जिले के इंटिरियल ब्लाकों के इंटिरियल गांवो में करोड़ो के कार्य कराए जा रहे हैं और जहा जरूरत है वहा कोई काम ही नही है। इसके चक्कर मे जिले की कुछ जनपदों के अधिकारी सहित आर ई एस का एक डिवीजन भारी खुश हैं तो दूसरा राह ही ताक रहा है कि साहब उन्हें भी कुछ काम देंगे।