छिन्दवाड़ा लोकसभा : क्या छिन्दवाड़ा में वो होगा जो अब तक ना हुआ या कायम रहेगी गढ़ की परंपरा
फैसले में मात्र दस दिन का समय शेष, छिन्दवाड़ा के ट्रेंड पर रहेगी सबकी नजर
♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
मध्यप्रदेश के सबसे हाई प्रोफाइल छिन्दवाड़ा संसदीय क्षेत्र में फैसले को अब केवल दस दिन का समय शेष है। संसदीय सीट में प्रचार का शोरगुल चरम पर पहुंच रहा है। अब एक – एक दिन निर्णय की तरफ बढ़ रहा है। मतदाता 19 अप्रैल को ईवीएम में अपने फैसले की बटन दबाकर छिन्दवाड़ा के भविष्य के साथ ही कांग्रेस के नकुलनाथ और भाजपा के विवेक बंटी साहू के भाग्य का भी फैसला कर देगा।
चुनाव प्रचार से मतदाता को अपने पक्ष में करने कांग्रेस – भाजपा ने संसदीय सीट में पूरी ताकत झोंक रखी है। मोदी फैक्टर में इस बार यहां भाजपा को बड़ी उम्मीद है कि जो अब तक न हुआ वह इस बार होकर रहेगा। कांग्रेस की पूरी कवायद केवल और केवल 45 साल से कायम अपना गढ़ बचाने की है कि चाहे जो हो जाए वह यह गढ़ अपने हाथ से जाने नही देगी।
इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज कमलनाथ लगातार 9 बार सांसद रहे हैं। उनके पुत्र नकुलनाथ पिछले चुनाव में पहली बार सांसद बने थे और अब दूसरी बार मैदान में है। नकुलनाथ को सबसे बड़ा स्पोर्ट अपने पिता कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ का है। कमलनाथ सब कुछ छोड़कर केवल छिन्दवाड़ा में अपने पुत्र के लिए चुनाव संचालक बने हुए है। मध्यप्रदेश के मिशन – 29 में छिन्दवाड़ा सीट भाजपा के लिए नाक का सवाल है कि अभी नही तो फिर कभी नही। भाजपा ने अपने जिला अध्यक्ष विवेक बंटी साहू को मैदान में उतारा हैं। विवेक बंटी साहू दो बार छिन्दवाड़ा विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। तीसरी बार लोकसभा के उम्मीदवार है। उन्हें केंद्र और प्रदेश संगठन का जबरदस्त सहयोग है। लगातार पार्टी के दिग्गज छिन्दवाड़ा का मोर्चा संभालने यहां आ रहे हैं।
छिन्दवाड़ा सीट भाजपा अब तक नही जीती है। इस बार जीत हासिल करने भाजपा वह सबकुछ कर रही है जो अब तक ना किया था। भाजपा ने पहली बार कांग्रेस में बड़ी तोड़ – फोड़ कर कमलनाथ को कमजोर करने की कोशिश भी की है। तोड़ -फोड़ में कांग्रेस के अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह ने इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया है। छिन्दवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के बड़े नेता पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना और नगर निगम के महापौर विक्रम अहके ने भी पार्टी छोड़ दी है। इसके साथ ही संसदीय क्षेत्र के सैकड़ो कांग्रेस पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी भाजपा में आ गए हैं। भाजपा में आए नेता भी यह मान रहे हैं कि छिन्दवाड़ा के अधूरे विकास को केवल भाजपा ही पूरा कर सकती है। जब केंद्र में सरकार नही प्रदेश में सरकार नही तब कांग्रेस जिले का विकास कैसे करेगी। विकास केवल सरकार से ही संभव है। विकास कोई व्यक्तिगत प्रक्रिया नही है।
जहाँ तक मुद्दों का सवाल है तो कांग्रेस ने छिन्दवाड़ा में जनता के बीच कमलनाथ के 45 साल को ही मुद्दे के रूप में पेश किया है। भाजपा प्रदेश और केंद्र में सरकार के दम के साथ मोदी की गारंटी में है। जनता के बीच मोदी फैक्टर को बड़ी ताकत मानकर आत्म विश्वास में है। छिन्दवाड़ा के विकास को लेकर डबल इंजन सरकार की ताकत को मुद्दा बनाया हुआ है।
लोगो का भी मानना है कि 45 साल से कांग्रेस का सांसद चुनते आए हैं। अब तक भाजपा को एक भी मौका नही दिया है। अब मोदी युग मे राष्ट्रीय और प्रदेश के परिदृश्य से कांग्रेस का खात्मा हो रहा है। तब छिन्दवाड़ा में कांग्रेस का क्या करेंगे। इन सवालों के बीच कांग्रेस के नेता कमलनाथ अपने पुत्र नकुलनाथ के लिए छिन्दवाड़ा में अपने 45 साल के संबंधों की दुहाई और अंतिम सांस तक छिन्दवाड़ा की सेवा के वादे के इमोशनल कार्ड पर है।
छिन्दवाड़ा विकास का नही कांग्रेस का मॉडल है कि देश मे कोई भी लहर हो छिन्दवाड़ा के मतदाताओं को कोई फर्क नही पड़ता है। मतदाता कांग्रेस के साथ ही खड़े नजर आते हैं। यह केवल कमलनाथ के कारण होता है ऐसा भी नही है। छिन्दवाड़ा का संसदीय इतिहास बताता है कि इमरजेंसी 1977 में जब पूरे देश में कांग्रेस हार गई थी तब भी यहाँ कांग्रेस के गार्गी शंकर मिश्रा सांसद चुने गए थे। यही कारण था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 के चुनाव में गार्गी शंकर का टिकट काटकर अपने पुत्र संजय गांधी के दोस्त कमलनाथ को छिन्दवाड़ा भेज था। इसके बाद से अब तक भी छिन्दवाड़ा का यही ट्रेंड कायम है। 45 साल में कमलनाथ लगातार 9 बार यहां के सांसद रहे हैं। उनके पुत्र पिछले चुनाव में सांसद बनने के बाद अब दूसरी बार मैदान में है।
राजनीति में कई लहरे आते – जाते रही है। छिन्दवाड़ा अब तक भी बिना किसी बदलाव के अपने ट्रेंड के साथ वही खड़ा है। अब तक के लोकसभा के सत्रह चुनाव के परिणाम यही कहानी कहते हैं। कांग्रेस को चुनना छिन्दवाड़ा के मतदाताओं का ट्रेंड है। यही ट्रेंड 45 साल से कमलनाथ की प्रतिष्ठा का बड़ा कारण भी है।
बदले दौर में छिन्दवाड़ा में भाजपा मोदी की गारंटी के साथ खड़े होने की बात कर रही है। राष्ट्रवाद से लेकर देश के विकास के साथ छिन्दवाड़ा को जोड़ने की बात कर रही है। 45 साल में छिन्दवाड़ा कहा पहुंचा और कहा पहुँच सकता था।इसका बड़ा अंतर पेश कर रही है। इसको लेकर मतदाताओं के मन को टोटलने से लेकर डोलने तक के लिए बड़े प्रयोग संसदीय क्षेत्र में हो रहे है। दोनो पार्टी के प्रत्याशी संसदीय क्षेत्र के शहरी और ग्रामीण अंचलों की खाक छान रहे हैं। कांग्रेस का मोर्चा कमलनाथ – नकुलनाथ के हाथों में है। भाजपा का मोर्चा भाजपा के जिला संगठन के साथ ही पार्टी के दिग्गजों के हाथ है। संसदीय क्षेत्र में भाजपा के दिग्गजों की सभाएं और रोड शो हो रहे हैं। आने वाले दिनों में पार्टी के राष्ट्रीय नेता भी एक के बाद एक छिन्दवाड़ा का रुख कर सकते हैं।
यह तय है कि मतदाताओं के फैसले के बिना छिन्दवाड़ा की सियासत का यह ट्रेंड बदल नही सकता है। भाजपा छिन्दवाड़ा के मतदाता का यह ट्रेंड बदलने की कोशिश करते आ रही है। देश मे राजनीति का दौर बदला है मगर छिन्दवाड़ा में नही तो क्या भाजपा इस चुनाव में ट्रेंड बदल पाएगी। यह बड़ा सवाल संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के मानस पटल तक पहुंचा है। तो क्या इस चुनाव में छिन्दवाड़ा के मतदाताओं का मिजाज बदलेगा या जो कायम है वही रहेगा। दोनो दलों की प्रतिष्ठा के दांव के बीच यहां अभी फैसले के लिए 19 अप्रैल और परिणाम के लिए 4 जून तक का इंतजार बाकी है।