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छिन्दवाड़ा का दो हजार साल पुराना गोदड़ देव मंदिर राज्य सरंक्षित स्मारक घोषित

मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग ने जारी किए आदेश

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  • सन 939 से 967 के बीच राजा कृष्ण चंद्र तृतीय ने कराया था निर्माण

  •  तीन किलोमीटर के दायरे में बिखरे पड़े है मंदिर के भग्नावेष

  •  आज तक कोई नही पढ़ पाया शिलालेख में अंकित लिपि

  • खजाने की तलाश में अब भी जहाँ – तहां होती है खुदाई

  • खुदाई में भी निकलती है मूर्तिया

मुकुन्द सोनी   छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश –

छिन्दवाड़ा में दो हजार साल पहले का वैभव बिखरा पड़ा है राजा कृष्ण चंद्र के जमाने मे सन 939 से 967 के बीच बनाया गया गोदड़ देव मन्दिर इसका साक्षी है राज्य शासन ने इस मंदिर सहित पूरे क्षेत्र को 18 अप्रैल को अधिसूचना जारी कर राज्य सरंक्षित क्षेत्र घोषित किया है

छिन्दवाड़ा चौरई लोनी कला कनक धाम आश्रम के महंत यज्ञ सम्राट 1008 श्री कनक बिहारी महाराज की स्मृति में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोनी कला आश्रम से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छिन्दवाड़ा जिले की इतिहासिक धरोहर गोदड़  देव को राज्य सरंक्षित स्मारक घोषित किया है महाराज श्री गोदड देव मन्दिर उत्थान के लिए भी प्रयासरत थे  मध्यप्रदेश शासन  संस्कृति विभाग ने इसके आदेश  जारी कर दिए है  गोदड़देव मंदिर छिंदवाड़ा जिले की तहसील चांद के नीलकंठी कला क्षेत्र में स्थित है अब यह  संस्कृति विभाग में  मध्यप्रदेश प्राचीन स्मारक पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम-1964 में   राज्य संरक्षित स्मारक बन गया है
जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा से लगभग 28 किलोमीटर दूर लिंगा, उभेगांव होते हुए ग्राम नीलकंठी कला के प्राचीन नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। जिसे गोदड़देव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के एक  किलोमीटर परिधि में  शिव मंदिरों के भग्नावशेष  है इनमे तीन मन्दिरो का ग्रामीणों ने जीर्णोद्धार कराया है   इनमे एक सास – बहू का मंदिर सहित  शिव मंदिर  दैय्यत बाबा नृसिंह शिव मंदिर भी है

मंदिर  परिक्षेत्र में गोदड़देव मेला हर साल  संक्रांति पर लगता है  जिसमे दो लाख  से  ज्यादा श्रद्धालु गोदड देव  दर्शन के लिए आते है  यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है  मंदिर द्वार पर उत्कीर्ण मूर्तियां की स्थापत्य कला दर्शनीय है। पर्यटकों के लिए यही मूर्तियां  सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है मध्यप्रदेश शासन के पुरातत्व अभिलेखाकार एवं संग्रहालय ने यहां  सूचना फलक भी लगा रखा है जिसके  अनुसार विदर्भ के देवगिरी यादव राजा महादेव  एवं रामचंद्र के मंत्री हिमाद्रि ने विदर्भ राज्य में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था इन्हें  हिमाड़ पंथी के मंदिर भी कहते हैं इन मंदिरों को  भूमित्र शैली के   कलचुरी स्थापत्य  कला के मंदिर भी माना जाता है

मंदिर परिक्षेत्र में  एक शिलालेख भी है जिसकी लिपि को आज तक कोई पढ़ नही पाया है माना जाता है कि राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय के  शासनकाल में  939 ई. से सन् 967 ई. के बीच ये मन्दिर बनाए गए थे मंदिर के समीप 300 मीटर की दूरी पर रोड किनारे तिफना नदी के पास सास-बहू शिव मंदिर के खंडहर अब भी बिखरे पड़े हैं। यहां पर मिले एक और शिलालेख में  राजा कृष्ण तृतीय का उल्लेख किया गया है।  गोदड़देव मंदिर 264 फिट लंबे एवं 132 चौड़ी पत्थर की चार दीवारी से घिरा  था  अब  यहां  टूटे-फूटे शिलाखंड ही मंदिर के पास बिखरे नजर आते है  प्रवेश द्वार अत्यंत नक्काशीदार एवं कलाकृतियों से भरा है  द्वार पर सप्तमातृकायें उत्कीर्ण है  द्वार के समक्ष के दो स्तंभ भी नक्काशी पूर्ण है।

पर्यटन के लिहाज से गोदड  देव मंदिर  दर्शनीय है  इसके अतिरिक्त तीन अन्य मंदिर के खंडहर रूप में है  सास बहू शिव मंदिर में बिखरी शिलाओं से  मंदिर की भव्यता का आंकलन हो सकता है  यहां से एक किलोमीटर दूर ग्राम नीलकंठी के पास, गौशाला की  पहाड़ी पर दैय्यत बाबा नृसिंह शिव मंदिर है  यहां भी शिलाखंडों और  भग्नावस्था पड़े है जिए  विभिन्न देवी-देवताओं की अलंकृत मूर्तियां  है

चौथा मंदिर शिवलिंगी मंदिर है जो गौशाला से लगभग डेढ़  किलोमीटर दूर, पहाड़ी के नीचले हिस्से में  था इस मंदिर के  अब सिर्फअवशेष ही बाकी है  कुछ ही शिलाखंड  पहाड़ी पर पड़े हैं  कहा जाता है कि यहाँ  द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिरों का समूह था जो करीब  700 एकड़ भूमि पर  कुलभरा नदी तक फैला था छिपे खजाने की तलाश में चोरी – छिपे लोग यहां जमीन की खुदाई भी कराते है जिसमे भी लोगो के हाथ मूर्तिया लगती है  यहां आस पास के दर्जन भर गांव में खुदाई के दौरान मूर्तिया मिलने की बात ग्रामीण बताते है गोदड़  देव आज भी खोज और अन्वेषण का विषय है राज्य स्मारक घोषित होने से अब गोदड़ देव के भी उत्थान का द्वार सरकार ने खोला है


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