छिन्दवाड़ा के पांढुर्ना में “गोटमार मेला”- पत्थरों की चोट से खुशी से घायल होते हैं लोग
ना कोई "शिकायत" ना कोई "बदला" सदियों से कायम है "परंपरा"
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छिन्दवाड़ा के पांढुर्ना में गोटमार मेले की अनोखी परम्परा
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मेले को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करने का प्रयास करेगा प्रशासन
मुकुन्द सोनी ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
छिन्दवाड़ा की “पांढुर्ना” तहसील में “गोटमार” मेले की परम्परा सदियों से है। पोला पर्व के दूसरे दिन ” बड़गा” को लगने वाला यह मेला ना केवल “भारत” बल्कि विश्व के लिए अनोखा है। इस मेले में “पत्थर” चलते हैं और लोग खुशी से पत्थरो की मार से “घायल” होते हैं। ना किसी से शिकायत करते हैं ना ही बदला लेते हैं। खास बात यह है कि मेले में पुलिस ही नही पूरा प्रशासन होता है जो “पत्थर” चलाने वाले को “रोकता” है ना ही “घायल” होने वाली की सुनता है बल्कि घायल के तत्काल इलाज की व्यवस्था करता है। मेले में पुलिस के सामने ही सबकुछ होता है लेकिन मेले के दिन पुलिस कोई कार्रवाई नही करती है। परम्परा के आगे यहाँ “कानून” के भी हाथ बंधे है वरना ऐसा हो सकता है कि “पत्थरबाजी” हो और पुलिस “एक्शन” ना ले।
यह मेला हर साल ” बड़गा” के दिन पांढुर्ना की “जाम” नदी में लगता है। जाम नदी के एक ओर “पांढुर्ना” और दूसरी ओर “सावरगांव” है।बीच जाम नदी है। मेले की शुरआत नदी के समीप स्थित ” चंडिका” माता मंदिर में पूजा के साथ होती है। यहां पांढुर्ना और सावरगांव दोनो के बुजुर्ग एकत्र होकर माता की पूजा कर “जाम” नदी के बीचोबीच “पलास” के वृक्ष की डालियों के साथ “ध्वज” बांधते हैं। इस ध्वज को नदी के बीच जाकर “तोड़ने” के लिए ही यह “गोटमार” मेला होता है। जब पांढुर्ना की तरफ से कोई भो युवक ध्वज तोड़ने नदी में उतरता है तो सावरगांव के लोग उसे पत्थर मारकर रोकते हैं और जब सावरगांव की तरफ से कोई युवक नदी में उतरता है तो पांढुर्ना के लोग पत्थर मारकर उसे रोकते हैं। “ध्वज” तोड़ने के लिए सुबह से शाम तक दोनो तरफ से सैकडों युवा नदी में उतरते हैं और “पत्थर” की चोट से घायल होते हैं। जो ध्वज पत्थरो की बौछारों के बीच घायल होकर भी तोड़ लेता है उसे ” विजेता” घोषित किया जाता है। इसमे पांढुर्ना और सावरगांव के बीच जबरदस्त “टसल” रहती है। इस क्रम में ही यहां मेले में शाम तक सैकड़ो लोग पत्थर की चोट से घायल होते हैं। ध्वज पांढुर्ना वाला तोड़े या सावरगांव वाला इसके टूटने पर “ध्वज” को नदी किनारे ही स्थित “चंडिका” माता मंदिर में चढ़ाकर मेले का समापन किया जाता है। ध्वज टूटने तक यहां “गोटमार” का सिलसिला चलता है।
इस साल यह मेला 15 सितम्बर को लगेगा। जिसको लेकर तैयारियां हो चुकी है। मेले को “बंद” कराने के प्रशासनिक “जतन” बहुत हुए हैं लेकिन पांढुर्ना के वाशिंदे माने नही और “गोटमार” मेले में “पत्थर” आज भी बेख़ौफ़ चलते हैं। यहां पत्थर की चोट से घायल होने वालों की संख्या एक ,दो नही बल्कि सैकड़ो में होती है। कभी – कभी तो घायलों का आंकड़ा हजार के भी पार हो जाता है। पत्थर की चोट कही भी लग सकती है। इससे “मौत” भी हो सकती है। इसके बावजूद यह “हाई रिस्क” मेला सदियों से चली आ रही “परंपरा में आज के “आधुनिक” युग मे भी कायम है। इस मेले में दर्जनों लोगों ने अपनी “जान” भी गंवाई है।
मेले को लेकर दो किवदंती है। जिसके अनुसार यह गोटमार अर्थात पत्थर मारने की परंपरा बनी है। मेले की तिथि “बड़गा” ही फिक्स है। कहते हैं कि “पांढुर्ना” किसी जमाने मे “पिंडारियों” की बस्ती था। पिंडारी जाति के लोगो का धंधा “लूटमार” करना था। जब ये पिंडारी लोग गांवो में आते थे तब गांव वाले इन्हें “पत्थर” मारकर भगाते थे। पिंडारियों की इसी बस्ती का नाम अपभ्रंश में “पांढुर्ना” हो गया जो पहले छिन्दवाड़ा जिले की तहसील बना और अब मध्यप्रदेश शासन इसे “जिला” बना रहा है।
दुसरी जो किवदंती है वह “प्रेम कहानी” पर आधारित है। कहते हैं कि “पांढुर्ना” के एक यूवक को “सावरगांव” की युवती से प्यार था। यह युवक युवती को गांव से भगाकर जाम नदी में नाव से ला रहा था कि सावरगांव के लोगो ने युवक को रोकने “पत्थर” बरसा दिए जब यह बात पांढुर्ना के लोगो को पता चली तब युवक को बचाने पांढुर्ना के लोगों ने सावरगांव वालो पर “पत्थर” चलाए दोनो तरफ से चल रहे “पत्थरो” के बीच युवक – युवती को लेकर जाम नदी के किनारे “पांढुर्ना” तो आ गया लेकिन “पत्थरों” की चोट से घायल इस प्रेमी जोड़े की मौत हो गई। बड़गा के दिन की ही यह घटना है।उनकी स्मृति में ही पांढुर्ना- सावरगांव के बीच बड़गा के दिन “पत्थर” गोट चलाने की यह परंपरा ” गोटमार” मेला बन गई है।
इस मेले को लेकर जिला प्रशासन को व्यापक प्रबंध करने होते हैं। पुलिस बल के साथ ही यहां अस्थाई अस्पताल भी बनाए जाते हैं। जिनमे घायलों का तत्काल इलाज किया जाता है। दर्जनों एम्बुलेंस के साथ ही 50 से ज्यादा डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ यहां तैनात किया जाता है। वही शांति और कानून व्यवस्था के व्यापक इंतजाम में पूरा जिला और पुलिस के साथ स्थानीय प्रशासन यहां लगा रहता है।
मेले को लेकर कलेक्टर मनोज पुष्प और एस पी विनायक वर्मा ने यहां मेला स्थल का दौरा किया है। पांढुर्ना और सावरगांव के वाशिंदों की संयुक्त बैठक ली है। बैठक में कलेक्टर मनोज पुष्प ने कहा है कि मेले में “पत्थर” नही “कंकर” चलाए ताकि लोग घायल ना हो। आपसी प्रेम- सौहार्द का यह अनोखा मेला है। इसे “वर्ल्ड हेरिटेज” में शामिल कराने का प्रयास किया जाएगा। इंदौर की होली पर्व की पंचमी पर निकलने वाली “गेर” को वर्ल्ड हेरिटेज में जगह मिली है वैसे ही “गोटमार” मेले के लिए भी प्रयास हो सकते हैं।