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देश का पहला घोषित गोंडवाना लैंड बना छिन्दवाड़ा का पातालकोट

भारिया जनजाति को सरकार ने बनाया पातालकोट का मालिक

Metro City Media

Ο3 हजार फुट नीचे खाई में बसा है पातालकोट
संरक्षण के लिए सरकार ने दी 9 हज़ार 276 हेक्टेयर भूमि
               -मुकुन्द सोनी-

छिन्दवाड़ा-    मध्यप्रदेश में आदिवासी के हितों में पेसा एक्ट लागू होने से पहले छिन्दवाड़ा जिले में  जनजातीय हित में  देश का सबसे बड़ा कदम उठाया गया है छिन्दवाड़ा की आदिवासी तहसील तामिया के विश्वविख्यात पातालकोट को भारत देश का पहला गोंडवाना लैंड बना दिया गया है देश के हर राज्य में आदिवासी जन जाति है पातालकोट में आदिकाल से भारिया जन जाति का बसेरा है 80 वर्ग किलोमीटर  के पातालकोट के 12 गांवो में यह जनजाति रहती है जल जंगल जमीन पर उनका जीवन आधारित है ऐसे में मध्यप्रदेश की सरकार ने 80 वर्ग किलोमीटर का पूरा पतालकोट ही भारिया जन जाति के नाम कर दिया हैं  यहां की भारिया जनजाति को पातालकोट का  मालिक बना दिया गया है उन्हे पतालकोट की  9 हजार 276 हेक्टेयर जमीन दे दी गई है विशेष पिछडी जनजाति उत्थान में सरकार ने यह फैसला लिया है
– दुनिया के अजूबे छिंदवाड़ा जिले की तामिया तहसील में तीन हजार फीट गहरी खाई में 80 वर्ग किलोमीटर में बसे पातालकोट के 12 गांवो में रहने वाले भारिया अब पातालकोट के मालिक हो गए हैं  यह भारत देश का पहला गोंडवाना लैंड बन गया है

भारत देश का पहला फैसला.

यह अब तक का सबसे बड़ा और भारत देश का पहला फैसला है जब आदिवासियों के हित उन्हें इतनी बड़ी जमीन का मालिक बनाया गया है
सदियों से आदिवासी जल, जंगल, जमीन पर आधारित जीवन जी रहे है   पातालकोट में  सदियों से भारिया आदिवासियों का बसेरा है छिंदवाड़ा देश का ऐसा पहला जिला भी  बन गया है जहां प्रशासन ने  जनजातिय वर्ग के हेबीटेट राइट्स में जिले की तामिया तहसील के पातालकोट को भारिया जनजाति के नाम ही कर दिया है। भारिया बने जल जंगल और जमीन के मालिक  पातालकोट के जल, जंगल, जमीन, पहाड़, जलाशय सहित प्राकृतिक संपदा पर अब भारियाओं का हक होगा। पातालकोट में यदि सरकार को सड़क, भवन या अन्य निर्माण करना हो तो सरकार को भी सड़क बनाने के लिए भारियाओं से अनुमति लेनी होगी। पातालकोट की जमीन की कभी खरीदी-बिक्री नही होगी देश के इतिहास में विशेष पिछड़ी भारिया जनजाति को पहली बार इतना बड़ा अधिकार देने वाला छिंदवाड़ा पहला जिला है देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पातालकोट के भारियाओं को यह अधिकार पत्र जबलपुर में एक कार्यक्रम में सौप चुके हैं उन्हें ना केवल राज्य बल्कि केंद्र सरकार का भी आधिकारिक अधिकार पत्र दिया जा चुका है

8 हजार 326 हेक्टेयर में है जंगल ..

पातालको की 9 हजार 276 हेक्टेयर में भूमि में 8 हजार 326 हेक्टेयर वन भूमि और 950 हेक्टेयर राजस्व भूमि शामिल है। पातालकोट की सभी ग्राम पंचायतों के साथ ही वन विभाग ने भी वन अधिकार में यह जमीन छोड़ दी है। अब यहां की जमीन ही नही जंगल के मालिक भी भारिया होंगे जो अपनी जरूरत के लिए वनों का भी दोहन कर सकेंगे  इस कदम का  उद्देश्य भारिया जनजाति का उत्थान है जो जल, जंगल, जमीन के आधार पर अपना जीवन जीती है इससे उनकी मान्यताओं को अधिकार मिलेगा और वे पातालकोट को संरक्षित रख पाएंगे।

सदियों से रह रहे भारिया..

भारिया जनजाति सदियों से पातालकोट में निवास कर रही है। पातालकोट में 12 गावं बसे है जिसमें 611 भारिया परिवार रहते है। इसके लिए केंद्र सरकार ने भारिया जनजाति विकास प्राधिकरण का गठन भी किया था। जिसके माध्यम से जनजाति के उन्नयन के कार्य होते थे और अब जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के सिद्धांत पर पूरा पातालकोट ही भारिया जनजाति को दे दिया गया है। यह सबकुछ हेबीटेट राइट्स सेक्शन नियम-3 (१) (०) भारिया पीवीटीजी में दिया गया है। अब पातालकोट के 12 गांवों में भारिया ही जल, जंगल, जमीन के उपयोग के अधिकारी होंगे और इसका संरक्षण भी करेंगे।

12 गांव है शामिल..

भारिया जनजाति को पातालकोट का मालिक बनाया गया है। भारिया जनजाति के सामुहिक फैसले से ही यहां सरकार के विकास कार्य होंगे और मालिक कोई अकेला एक नहीं बल्कि यहां निवासरत भारिया जनजाति ही होगी। सामुहिक धारकों में यहां के 611 परिवारों के मुखियाओं के नाम शामिल किए गए है। पातालकोट के 12  गांवों में जड़मादल, हर्राकछार, खमारपुर, सहरापजगोल, सूखा भंडार, हरमउ, धूणनी, गेलडुब्बा, घटलिंगा, गुढ़ीक्षतरी, सालढाना, ,कौढिय़ा शामिल है।

इन्होंने बनाया था  प्रस्ताव..

विशेष पिछड़ी आदिवासी जनजाति भारिया के उत्थान के लिए यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के आदेश पर तत्कालीन कलेक्टर सौरभ सुमन, डीएफओ अखिल बंसल, ईश्वर जरांडे, सुब्रत नायक सहित यूएनडीपी के हरिओम शुक्ला, डॉ. महेश गुंजेले, आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त एनएस बरकड़े के प्रयासों से तैयार किया गया था जिसमें भारियाओं को पातालकोट के जल, जंगल, जमीन, पहाड़ा और संसाधनों का मालिक बना दिया गया है ताकि वे अपनी परंपरा को जीवंत रखे सकें।

 

 


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