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दमुआ कोयला अंचल ने बुलंद की “खदान” नही तो “वोट” नही की आवाज

30 सितम्बर को दमुआ बंद, रैली और आम सभा मे गूंजेंगे मुद्दे

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मुकुन्द सोनी♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-

दमुआ के वाशिंदे ना तो “विधानसभा” चुनाव में वोट देंगे ना ही “लोकसभा” चुनाव में “कारण” यहां लगातार बंद होती “कोयला खदानें” और इससे चौपट हो रही क्षेत्र की “अर्थव्यवस्था” कन्हान कोयला अंचल का यह क्षेत्र “कोयला आधारित” अर्थ व्यवस्था पर टिका है। पिछले बीस सालों में यहां कोई नई कोयला खदान तो नही खुली है उल्टे जो चल रही थी उन्हें बंद कर दिया गया है। अब जब यहां की कोयला खदानों का ” मेन पावर” अन्यंत्र शिफ्ट कर दिया जाएगा तब क्षेत्र के “व्यापार- व्यवसाय” किसके भरोसे चलेंगे।

इन हालातों ने क्षेत्र वासियो को चिंता में डाल दिया है।रही- सही कसर यहां वेकोलि के जमीन खाली करने के ” नोटिस” ने निकाल कर रख दी है। “राजनीति” यहां केवल “आरोप” की नावों पर सवार है। करता कोई कुछ नही है। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की यह जवाबदारी होती है कि वे क्षेत्र के हितों को सरकार के सामने रखे और सही फ़ैसला करवाए लेकिन अब तक ऐसा कोई जज्बा सामने नही आने से अब ” जनता” स्वयं ” मोर्चा” संभालने को मजबूर ही गई है।

यहां “आमजनों ने मिलकर एक बड़ी ” बैठक” की है। इस बैठक में आने वाले ” विधानसभा” और “लोकसभा” चुनाव में “वोट” ना करने के साथ ही 30 सितम्बर को “दमुआ” बंद रखने का फैसला लिया गया है। यह जरूरत केवल दमुआ की नही बल्कि जुन्नारदेव और परासिया की भी है।

वेकोलि ने हाल ही में यहां “तानसी” के साथ ही महादेवपुरी और मुआरी खदान से कोयला उत्पादन बंद कर यहां का ” मेन पावर”  अन्य खदानों में शिफ्ट करने का फैसला लिया है। इसके पहले वेकोलि गणपति, विष्णुपुरी, और भवानी कोयला खदान को बंद कर चुका है। “तानसी” के बंद होने के बाद तो कन्हान कोयला अंचल में एक भी खदान नही बचेगी। कन्हान जी एम आफिस को भी पेंच जी एम आफिस में शिफ्ट करने के आदेश है। इसके बावजूद कोई क्षेत्र के अस्तित्व की लड़ाई के लिए “मोर्चा” लेने को तैयार नही है। मामला ” चुनाव” की हार – जीत के ” दांव- पेंच”  में उलझाया जा रहा है। चुनाव तो हर “पांच” साल में होंगे ही लेकिन क्षेत्र के पांच साल में क्या हाल हो जाएंगे। इसका अंदाजा क्षेत्रवासियों को अभी से ही हो गया है। यहां ना कृषि है ना ही अन्य उद्योग – धंधे ना ही व्यापार तब क्या “बेरोजगारी” के चलते केवल “अवैध धंधे” और “अपराध” ही पनपेंगे।

वेकोलि की नई खदानों का भी अता- पता नही है। ना शारदा खुल पा रही है ना ही धनकसा और ना ही सर्वे में शामिल अन्य खदानों के लिए कोई योजना है। छिन्दवाड़ा का कन्हान और पेंच कोयला अंचल सौ साल पुराना हैं।अंग्रेजो की “शा- वैलेस” कम्पनी ने यहां खदानों की खोज कर कोयले का खनन शुरू किया था।। अभी इस क्षेत्र में इतना कोयला है कि अगले तीस साल तक उत्पादन हो सकता है किंतु इस क्षेत्र की “उपयोगिता” पर ही अब ग्रहण लग गया है। इन हालातों का जवाबदार कौन जनता अब इस पर भी गहन मंथन कर रही है।


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