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नकारा नगर निगम : कार्रवाई के इंतजार में रॉयल चौक के डॉ आसिफ अंसारी की मौत, सगे भाइयों ने तोड़ दी थी डिस्पेन्सरी, छीन ली थी रोजी – रोटी

डाक्टर के हज जाने के बाद सुने में तोड़ा था मकान, जमा लिया कब्जा

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मकान में यहां थी डाक्टर की डिसेन्सरी जिसे उनके भाई ने उनके सूने में तोड़कर बना लिया अपना  कमरा
डिस्पेन्सरी तोड़कर बनाया गया कमरा जिसे तोड़ने की मांग डॉक्टर ने की थी
जिंदा रहते डाक्टर ने कलेक्ट्रेट से लेकर नगर निगम तक लगाए चक्कर  ,प्रशासन जीते जी नही दे पाया न्याय
क्या अब फरिश्ते ही करेंगे फैसला

♦छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश –

नगर निगम से कोई भी कार्रवाई की उम्मीद आपको मौत तक पहुंचा देगी। निगम के भृष्ट  और नेताओ के तलवे चाटने वाले अफसर आपके लिए कुछ ना कर पाएंगे। शहर में बिना अनुमति अवैध निर्माणों की बाढ़ है। चाहे जैसा निर्माण कर लो नगर निगम आपका कुछ नही करने वाला है।  भृष्ट अधिकारी आपसे रुपया उघाएंगे और फिर तो आप एक नही दो नही बल्कि चाहे जितनी मंजिल बना लो कमरे बना लो या फिर पूरी कालोनी ही बना डालो वो झाकेंगे तक नही।

शहर के रॉयल चौक निवासी डॉ आसिफ अंसारी नगर निगम से अपने ही मकान में हुए अवैध  निर्माण को हटाने की गुहार लगाते – लगाते मर गए।लेकिन निगम  के  निकम्मे अफसरों को मौत से भी कोई फर्क पड़ेगा। शायद वे भूल गए हैं कि भृष्टचार कर चाहे जितनी संपत्ति जुटा लो मौत तो एक दिन उनको भी ले जाएगी। सम्पति यही धरी की धरी रह जाएगी। धरा का इंसाफ एक दिन सबको धर ही लेता है।

डॉ आरिफ अंसारी रॉयल चौक में रहते हैं। यहां उनके  घर मे ही एक छोटा क्लीनिक और निवास है। क्लीनिक चलाते उन्हें 25 साल से ज्यादा का समय हो गया था। यही उनकी रोजी –  रोटी थी। मकान में  उनका बड़ा भाई आरिफ अंसारी  जो शिक्षा विभाग के झंडा गांव के स्कूल में सहायक शिक्षक है भी रहता है। गत एक मई को  डॉ आसिफ अंसारी जब पत्नी सहित दो माह के लिए हज यात्रा पर गए थे। तब उनकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर शिक्षक आरिफ अंसारी ने मकान में  उनकी डिस्पेन्सरी तोड़कर वहां अपने रहने के लिए कमरा बनवाकर मकान का हुलिया ही बदल दिया।

डॉ आसिफ अंसारी जब दो माह बाद हज यात्रा से लौटे तो बड़े भाई की इस हरकत से उनका दिल बैठ गया।आरिफ  अंसारी शिक्षक ने उनकी रोजी – रोटी की डिस्पेन्सरी के सामान को कबाड़ में फेंक दिया था। आरिफ को निर्माण ही करना था तो मकान के अन्य हिस्से में कर लेता डॉक्टर की रोजी – रोटी की जगह तो नही छीनना था।  जमीन – जायदाद को लेकर  विवाद होना कोई बड़ी बात तो नही है। लेकिन रोजी-  रोटी छीनना बड़ा अपराध है।

इस निर्माण के  लिए शिक्षक  आरिफ अंसारी ने नगर निगम से कोई अनुमति नही ली थी। ना ही मकान का नक्शा पास कराया था। हज से लौटने के बाद  डाक्टर आसिफ अंसारी ने निगम कमिश्नर को आवेदन पेश किया था कि उनके मकान में उनके भाई ने ही नगर निगम की अनुमति के बिना अवैध निर्माण किया है। इस अवैध निर्माण को हटाया जावे। निगम कमिश्नर ने कार्रवाई करते हुए शिक्षक  आरिफ अंसारी को एक के बाद एक तीन नोटिस देकर  मकान का मालिकाना हक की रजिस्ट्री, निर्माण का मय अनुमति नक्शा मंगाया था। आरिफ अंसारी शिक्षक के पास ना रजिस्ट्री थी ना ही  नक्शा।

कोतवाली पुलिस ने इस मामले में डाक्टर आसिफ अंसारी की रिपोर्ट पर शिक्षक आरिफ अंसारी के विरुद्ध सूने में संपत्ति पर बलात कब्जा करने के आरोप में अपराध क्रमांक 394/ 24 धारा 427, 323, 324 ,506 ,34 भादवि का अपराध दर्ज किया है। आरिफ अंसारी जमानत पर है।

इस मामले में निगम कमिश्नर ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद  गत 28 जुलाई को अवैध निर्माण हटाने के आदेश भी  दिए थे। इस आदेश के पालन के लिए सहायक यंत्री विवेक चौहान की ड्यूटी लगाई गई थी। लेकिन वे 28 जुलाई को कार्रवाई के लिए मौके पर गए नही। इसके बाद कमिश्नर ने पुनः 3 सितम्बर को दूसरा आदेश दिया। तब प्रभारी विवेक चौहान निगम और पुलिस बल के साथ डॉ के मकान में हुए अवैध निर्माण को तोड़ने गए थे। लेकिन मौके पर उन्होंने कोई कार्रवाई नही की।  मात्र दस मिनिट में ही अमले को मौके से लौटा दिया था। कमिश्नर को जवाब दिया कि इनका पारिवारिक संपत्ति विवाद है।  दोनो पक्षो की सुनवाई के बाद कमिश्नर ने आदेश जारी किया था। इसके बाद भी विवेक चौहान ने कार्रवाई नही की लौटकर कमिश्नर को भी  कंपाउंडिंग का जुलाब दे दिया जिसका कोई आधार नही था।  विवेक चौहान की गतिविधि बता रही थी कि वे  केवल दिखावे के लिए डॉक्टर के घर अमला भेजा गया था।

आदेश  अवैध निर्माण को तोड़ने का था ना कि संपत्ति के मालिकाना हक का । नगर पालिका अधिनियम की धारा 293 का था। जो यह कहती है कि शहर में कोई भी निर्माण नगर निगम की अनुमति के बगैर नही हो सकते हैं। यदि हुए तो निगम उन्हें अवैध करार देकर तोड़ने का अधिकारी है।  नगर निगम को किसी की भी संपत्ति तय करने का अधिकारी  नही है। यदि  किसी तरह का  संपत्ति विवाद था। तो दोनों भाई कोर्ट से फैसला लेते। नगर निगम को तो केवल बिना अनुमति के अवैध रूप से हुए निर्माण को तोड़ना था। जो आदेश के बाद अब तक भी नही टूटा है।

नगर निगम को केवल निर्माण की अनुमति देने और अवैध निर्माण हटाने का अधिकार है। संपत्ति तय करने का अधिकार नही है।  प्रभारी सहायक यंत्री ने कमिश्नर के आदेश का पालन  किया है।  ना ही नगर पालिका अधिनियम का पालन किया है।  डॉ आसिफ अंसारी उनसे कहते भी रहे कि विवाद संपत्ति का नही है। आपको यहां अवैध निर्माण तोड़ने भेजा गया है। कार्रवाई करें । अवैध रूप से बना कमरा तोड़े। लेकिन विवेक चौहान टस से  मस नही हुए। दरअसल शिक्षक आरिफ अंसारी के डाक्टर की डिसेन्सरी तोड़ने से उनकी रोजी –  रोटी छिन गई थी। वहां जो भी मरीज आ रहा था। डिस्पेन्सरी तोड़कर कमरा बनाकर रहने वाले शिक्षक आरिफ अंसारी उसकी पत्नी और बेटी सबको यही कहकर भगा देते थे कि अब डाक्टर यहां नही रहते है।  इस बात का डाक्टर आसिफ अंसारी को दिल पर बड़े झटके पर झटके लग रहे थे। शिक्षक आरिफ ने  उनके सूने में मकान का हुलिया बदलकर मकान में जो भाग डाक्टर के लिए छोड़ा था। उसमें ना बिजली थी ना ही लेट – बाथ। ऐसे में डॉक्टर कार्रवाई के  इंतजार में अपना ही घर छोड़कर  अपने साले के घर मोहरली मे रहने को मजबूर थे।  बार – बार नगर निगम के चक्कर लगा रहे थे कि नगर निगम कार्रवाई करे तो मैं किसी तरह अपनी डिस्पेंसरी फिर  चालू करू। वे  दो बार हज की यात्रा कर चुके थे।। अपने  भाई से कोई विवाद नही करना चाहते थे। इसलिए नगर निगम की शरण मे गए थे।

नगर निगम ने  कमिश्नर के आदेश पर  3 सितम्बर को डॉक्टर के घर मौके पर गए अमले को छोटा सा ही काम करना था। किसी को बेदखल करने का मसला नही था। लेकिन विवेक चौहान की लापरवाही से यह कार्रवाई  केवल दिखावा साबित हो गई। मतलब नगर निगम का लंबा –  चौड़ा अमला मय पुलिस बल के मौके पर गया और दिखावे के लिए खम्बा छू कर लौट गया।  अवैध निर्माण तोड़ने की  नगर निगम की  सामर्थ्य को यहां  चांदी का जंक लग गया था।

डॉक्टर आसिफ अंसारी  बार – बार नगर निगम जाकर अधिकारियों से गुहार लगा रहे थे कि कम से कम मेरी डिस्पेन्सरी वापस बनाने लायक तो कार्रवाई कर दो। मैं अपनी रोजी –  रोटी कहा चलाऊंगा।  डाक्टर को यह नही मालूम था कि निगम में नेता हो या अधिकारी अवैध निर्माण का रैकेट चलाते हैं। इसी अवैध धंधे से रुपया बनाते है। यह धंधा नगर निगम में लंबा –  चौड़ा फला – फुला है। नगर निगम में नगर पालिका अधिनियम कही है ही नही। डाक्टर वापस कार्रवाई की गुहार लगाते – लगाते थक गया डिप्रेशन का शिकार हो गया और 21 सितम्बर को अचानक ही डॉक्टर की मौत हो गई है।

भाई ने तो धोखा कर डाक्टर को बड़ा जख्म दिया ही था। नगर निगम ने इस जख्म को और इतना बड़ा कर दिया कि डॉक्टर अपने दो मासूम बेटो और पत्नी के परिवार के पालन – पोषण और उनके भविष्य की चिंता में महज 50 साल की उम्र में ही चल बसा। डाक्टर रॉयल चौक क्षेत्र में लोगो को सस्ता उपचार उपलब्ध कराकर लोगो की मदद करता था। लेकिन कोई उसकी मदद नही कर पाया वह दो बार सांसद विवेक साहू से मिलने उनके दफ्तर भी गया था। सांसद को भी समस्या बताई थी। मंगलवार को दो बार जन सुनवाई में कलेक्टट्रे भी गया था। सी एम हेल्पलाइन में शिकायत भी की थी लेकिन  कोई उसकी हेल्प  नही कर पाया। समय पर मदद मिल गई होती तो डॉक्टर के दो मासूम बच्चों के सिर से पिता का साया नही उठता ना ही पत्नी को बेवा होना पड़ता। डाक्टर की  मौत ने पूरे सिस्टम की  पोल खोल दी है कि सिस्टम खुद मरा हुआ है। इस मरे सिस्टम ने डॉक्टर आसिफ को भी मार दिया है।


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