स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दादा रूप चंद राय “जनसेवक” का निधन, जनता ने दी थी “जनसेवक की “उपाधि”
4 बजे स्थानीय निवास पाटनी चौक से मोक्षधाम के लिए निकलेगी अंतिम यात्रा
♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
छिन्दवाड़ा के स्वन्त्रता संग्राम सेनानी “दादा रूप चंद राय” का बुधवार 11 अक्टूम्बर को सुबह करीब 10 बजे शहर के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया है। उनकी अंतिम यात्रा आज 4 बजे निज निवास पाटनी चौक छिन्दवाड़ा से “मोक्षधाम” के लिए प्रस्थान करेगी।पिछले दो दिनों से उनका अस्पताल में उपचार चल रहा था। 100 साल की उम्र पार कर चुके दादा को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। सुबह करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस के साथ दुनिया को अलविदा कह दिया। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका “अंतिम संस्कार” किया जाएगा।
दादा रूप चंद राय ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और जेल में भी रहे। छिन्दवाड़ा में उन्होंने “स्वतंत्रता” की अलख जगाने का काम किया था।”दादा” छिन्दवाड़ा नगर पालिका के अध्यक्ष भी रहे हैं। इस दौरान ही शहर वासियों ने उन्हें “जनसेवक” की उपाधि दी थी। जब वे “नगर पालिका” के अध्यक्ष थे तब “सफाई कामगारों” ने हड़ताल कर दी थी। हड़ताल लंबी चली तो अध्यक्ष रहते हुए अपना जंन सेवा का कर्तव्य समझते हुए “दादा” ने स्वयं “झाड़ू” उठाई और शहर की गलियां की सफाई कर कचरा उठाया था।
उनका “जनसेवा” का यह भाव देखकर ही शहर वासियों ने उन्हें “जनसेवक” की उपाधि दी थी। इसके बाद वे शहर में “जनसेवक” के नाम से विख्यात गए थे। हर कोई उन्हें “जनसेवक” कहकर पुकारता था। दादा का जुड़ाव “जनसंघ” से भी रहा। वे छिन्दवाड़ा में भाजपा के संस्थापक सदस्य भी थे। 1977 में एमर्जेंसी में 19 माह जेल में भी रहे थे। भाजपा ने उन्हें “मीसाबंदी” का सम्मान भी दिया था। छिन्दवाड़ा की स्थानीय राजनीति के आधार रहे देवी लाल शर्मा, प्रतुल चंद द्विवेदी, कुबेर सिंह, भगवानदीन राय सहित अनेक नेताओ के साथ उनके प्रगाढ़ संबंध रहे। सब नेताओ का उनके घर आना- जाना लगा रहता था। आज के दौर की बिन जनसेवा और सम्मान की थोथी “राजनीति” उन्हें पसंद नही आई तो उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली थी । शहर के सामाजिक , धार्मिक संगठनों और संस्थाओं से उनका गहरा जुड़ाव था। शहर के अनेक धार्मिक ,सामाजिक संगठनों में “सरंक्षक” रहते हुए उन्होंने अपना बड़ा योगदान दिया। शहर के भुजलिया उत्सव रामलीला उत्सव को आगे बढ़ाने में भी उनका बड़ा योगदान था। सतपुड़ा विधि महाविद्यालय के भी वे संस्थापक सदस्य थे। 1972 में उन्होंने छिन्दवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से ” विधायक” का चुनाव भी लड़ा था।
जिले की प्रशासनिक व्यवस्था में छिन्दवाड़ा पदस्थ रहे “कलेक्टर- एस पी” उनसे मिलने उनके घर “पाटनी चौक” ही जाया करते थे। दादा को शहर में ” पैदल” पदयात्रा करना अच्छा लगता था। जब वे स्वस्थ थे तो “कांधे” पर झोला लटकाए शहर की किसी भी गली में नजर आ जाते थे। बढ़ती उम्र और स्वाथ्य में गिरावट के चलते उनका यह क्रम पिछले कुछ वर्षों से बंद गया था। राज्य शासन ने उन्हें “स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा तो दिया ही था। वे छिन्दवाड़ा के पहले ऐसे नेता थे जिन्हें जनता ने ” जनसेवक” की उपाधि दी थी।
” जनसेवक” रूपचंद राय छिन्दवाड़ा आए हर दिग्गज नेता से मिलते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उन्होने मुलाकात की थी। हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर पुलिस मैदान में होने वाले मुख्य समारोह में जिला प्रशासन उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित कर “सम्मान” करता था।