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जेल परिसर जमीन घोटाला : 23 मई को लोकायुक्त के सामने अधिकारियों सहित शिकायत कर्ताओं की पेशी

छिन्दवाड़ा सिटी की करोड़ो की जमीन का है मामला, भाजपा के नेता ही है शिकायतकर्ता

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♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश –

छिन्दवाड़ा नगर निगम के बहुचचित जेल परिसर जमीन घोटाले में निगम के पूर्व आयुक्त इच्छित गढ़पाले और कार्यपालन यंत्री एन एस बघेल के खिलाफ भोपाल लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज होने के बाद अब लोकायुक्त ने दोनों अधिकारियों सहित शिकायत कर्ताओं को नोटिस भेजकर 23 मई को भोपाल तलब किया है। मामले की जांच लोकायुक्त एस पी संजय साहू कर रहे हैं।

मामले की जांच में फाइल खांगलने लोकायुक्त की टीम नगर निगम कार्यालय छिन्दवाड़ा में भी जल्द  दस्तक देगी । मामले के  चार शिकायत कर्ता में से एक निगम के प्रतिपक्ष नेता विजय पांडेय ने इस मामले में मीडिया से खुलकर  चर्चा भी की है।उनका कहना था कि जेल परिसर की जमीन पर 106 दुकानें सहित बस टर्मिनल के निर्माण का टेंडर के  एन डिगरसे इंजीनियर फर्म ने लिया था किंतु निगम ने वर्क ऑर्डर  पहले डिगरसे फर्म को दिया जिसे अचानक बदलकर मधुवन एसोसिएट के नाम से जारी किया गया है सवाल यह है कि जब मधुवन एसोसिएट ने टेंडर क्वालीफाई ही  नही किया है  तब अधिकारियों ने नियमो को ताक पर रखकर कैसे मधुवन एसोसिएट्स को वर्क आर्डर दिया है।जबकि मधुवन एसोसिएट्स कॉन्ट्रैक्ट के लिए क्वालीफाई फर्म भी नही है। ना ही टेंडर प्रक्रिया की हिस्सेदार है।

टेंडर के बदले जेल परिसर की 20 हजार वर्ग फुट जमीन पाने के लिए यह कूटनीतिक प्रयास किया गया है । मधुवन एसोसिएट के पीछे कौन है इस मामले में यह भी जांच का बड़ा विषय है। जांच के लिए ही उन्होंने लोकायुक्त में शिकायत की थी। यह जमीन शहर के बीचों – बीच करोड़ो की मार्केट वेल्यू की है जिसका मामला अधिकारियों की मिलीभगत से मात्र 10 करोड़ के लेन- देन में निपटाने की कोशिश की गई है। तत्कालीन कलेक्टर ने यह जमीन नगर निगम को नॉन कमर्शियल यूज की शर्त पर निशुल्क दी है तब इस जमीन का व्यावसायिक उपयोग कैसे हो रहा है।

प्रतिपक्ष नेता विजय का कहना था कि प्रोजेक्ट के  लिए परिषद की भी कोई अनुमति नही ली गई है ना ही कोई प्रस्ताव पास किया गया है जबकि निगम की परिषद और एम आई सी  उत्तरदायी है। यहां करीब दो लाख वर्ग फुट जमीन है जिसमे 1 लाख 80 हजार वर्ग फुट में दुकानें और बस टर्मिनल बनने के बाद फर्म को 20 हजार वर्ग फुट जमीन देने का अनुबंध है।पहले यह प्रोजेक्ट पी पी पी पब्लिक प्राइवेट प्रॉपर्टी मोड़ में था फिर इसे स्व वित्त पोषी में बदल दिया गया है।

नगर निगम में अब भाजपा की जगह कांग्रेस के महापौर और परिषद है । कांग्रेस ने अब तक इस मामले में हाथ नही डाला है ना ही इस मामले में अपना स्टैंड क्लीयर किया है। प्रोजेक्ट की वास्तविक स्थिति यह है कि जमीन पर दुकानों का निर्माण हो चुका है बस टर्मिनल  बनना है किन्तु विवादों के चलते निर्माण रुका पड़ा है अभी फर्म को 20 हजार वर्ग फुट जमीन हैण्डओवर नही की गई है। मौके पर कोई गतिविधि नही है।

अब नगर निगम में ना प्रोजेक्ट बनाने वाले अधिकारी है ना ही भाजपा की परिषद कायदे से कांग्रेस को यह मामला उठाकर जांच करवाना चाहिए था किंतु यह भी सवाल है कि कांग्रेस जांच क्यो नही करा रही है। भाजपा के शासन काल मे बने प्रोजेक्ट की गड़बड़ी को लेकर आखिर भाजपा के ही नेता मामले को उठा रहे हैं क्यों?  इस मामले में अधिकारियों का भी पक्ष लिया गया जिसमें उनका कहना था कि अब वे लोकायुक्त और कोर्ट  अभियोजन में ही अपना सारा पक्ष रखेंगे। वही फर्म के सचालक का कहना था कि हम केवल नगर निगम से जो अनुबंध हुआ है उस अनुबंध की शर्त पर कार्य कर रहे हैं।


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