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जैन संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज ब्रम्हलीन, छिन्दवाड़ा में रखी थी सूर्योदय धाम जैन तीर्थ की आधारशिला, पाटनी टाकीज के स्थल पर प्रस्तावित है भव्य जैन मन्दिर

पंच कल्याणक महोत्सव में आए थे छिन्दवाड़ा के दशहरा मैदान

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♦ छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-

त्याग तपस्या और साधना की प्रतिमूर्ति संत शिरोमणि  गुरुवर आचार्य विद्यासागर महाराज ने  छिंदवाड़ा में  सूर्योदय धाम जैन तीर्थ की आधारशिला रखी है। इतना ही नही उनके नाम से मेघा सिवनी में गौ – शाला भी संचालित है। करोड़ों की लागत से बनने वाले इस धाम में श्री पंच बालयति चौबीसी मंदिर निर्माण का भूमिपूजन नगर के बुधवारी बाजार पाटनी टाकीज स्थल पर उन्होंने 15 जून 2022 को किया था।  इस धाम में बनने वाले  मंदिर में मूलनायक भगवान सहित पंच बालयति भगवान और 24 तीर्थंकर भगवान की जिनबिंब प्रतिमाएं स्थापित होंगी। यह मंदिर पीले पाषाणों से तैयार किया जाएगा और मंदिर तीन मंजिला और तीन शिखर वाला होगा। आचार्य विद्यासागर महाराज इसके पूर्व पंच कल्याणक महोत्सव में भी छिन्दवाड़ा आए थे।

सूर्योदय धाम जैन तीर्थ की आधारशिला के अवसर पर आचार्य श्री ने अपने आशीर्वचनों में कहा था  कि स्वार्थ से नहीं नि:स्वार्थ से आत्म कल्याण होता है। जो मन पवित्र है वही मंत्र है। भावों  की पवित्रता अनमोल और अतुलनीय है उसे कोई भी उपमा नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि मंदिर का कार्य पूर्ण होगा। अपव्यय नहीं करना है लेकिन कंजूसी भी नहीं करना है। इस स्थान पर लोग पहले सिनेेमा देखते थे अब जीवन भर यहां पवित्र भाव का सिनेमा देखेंगे। मनुष्य जीवन की सार्थकता संस्कारों में ही है। इस बनने वाले मंदिर में देव भी भक्ति के लिए आ सकते है। यहां मोती की लडिय़ां बिखेर सकते है। भाव प्रधानता से ही परिणाम आ सकते है। उन्होंने यह भी कहा था कि छिंदवाड़ा जैन समाज के भाव धन्य है और उनके साथ मेरे भाव भी लग गए है। हमें वीतरागता के लिए भीतर की ओर चलना होगा। अहिंसा ही परम धर्म है। इस अवसर पर उन्होंने प्रभात स्टील परिवार में की आहारचर्या की थी।  फिर महाराष्ट्र की ओर विहार किया था।  इस धाम का निर्माण पूरा होने पर  पंच कल्याणक में उन्होंने आने की बात कही थी लेकिन इससे पहले ही  छत्तीसगढ़ के डोगरगढ़ के चंद्रगिरी धाम में वे समाधि में चले गए हैं।

युग दृष्टा  संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर  महामुनिराज ने  17 फरवरी शनिवार को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में स्थित चंद्र गिरी धाम में   रात्रि में 2 बजकर 35 बजे ब्रम्हलीन समाधि ली। तीन दिन पहले ही आचार्य श्री  आचार्य का पद त्यागकर  सल्लेखना में चले गए थे। इससे पहले   6 फरवरी मंगलवार को  मुनि श्री समयसागर  महाराज को  आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी। गुरुवर  का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे से निकाला गया और  चन्द्रगिरि तीर्थ पर उन्हें  पंचतत्व  में विलीन किया गया है।

आचार्य श्री का  जन्म 10  अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था।  पिता  मल्लप्पा थे जो  मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर महाराज को 30 जून1968 में राजस्थान के  अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने दीक्षा दी थी।  वे आचार्य शांतिसागर  महाराज के शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर महाराज  को 22  नवम्बर 1972  में ज्ञानसागर महाराज ने  आचार्य पद दिया था।   विद्यासागर महाराज के परिवार में केवल उनके बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी भाई  संन्यास ले चुके है।उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर महाराज से  से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर  और मुनि समयसागर बने है। आचार्य विद्यासागर महाराज  संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ के  विशेषज्ञ थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत में से विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।

आचार्य विद्यासागर महाराज  के शिष्य मुनि क्षमासागर  ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ ने  प्रकाशित किया है।मुनि प्रणम्यसागर ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

ऐसे थे आचार्य विद्यासागर महाराज ..

कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया।

  •  आजीवन चीनी का त्याग
  •  आजीवन नमक का त्याग
  • आजीवन चटाई का त्याग
  •  आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग
  • अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन,
  • सीमित अंजुली जल, 24 घण्टे में एक बार 365 दिन
  •  आजीवन दही का त्याग
  • सूखे मेवा (dry fruits)का त्याग
  •  आजीवन तेल का त्याग,
  •  सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग
  • थूकने का त्याग
  • एक करवट में शयन बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर किसी भी मौसम में।
  • पुरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले
  •  एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय
  •  पुरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है
  • शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना करना
  • अनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करना
  •  प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण,
  • आचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत से लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किया और स्वीकृति लेकर माने।
  •  ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करने अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे।
    और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे ।
  •  आचार्य भगवंत जो न केवल मानव समाज के उत्थान के लिए इतने दूर की सोचते है वरन मूक प्राणियों के लिए भी उनके करुण ह्रदय में उतना ही स्थान है ।
  • इतना कठिन जीवन के बाद भी मुख मुद्रा स्वर्ग के देव सी थी।

नमोस्तु गुरूदेव…


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