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Chhindwada Politics: परासिया में फिर “सोहन” का नाम आते ही लामबंद हो गया डेहरिया समाज, चेहरा नही बदला तो हो सकता है विद्रोह.?

परासिया में कांग्रेस की राजनीति में आया चुनावी उबाल

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मुकुन्द सोनी ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-

छिन्दवाड़ा जिले की अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित “परासिया” विधानसभा सीट में “सांसद नकुलनाथ” के बयान के बाद उबाल आ गया है। अभी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने यहां कोई “अधीकृत” प्रत्याशी घोषित नही किया है किंतु परासिया पहुंचे “सांसद नकुलनाथ” ने घोषणा के बिना ही यहां घोषणा कर दी है कि परासिया से एक बार फिर “सोहन वाल्मीकि” प्रत्याशी होंगे। सांसद की यह बात डेहरिया औऱ कतिया समाज को सहन नही हुई है। दोनो समाज यहां “प्रत्याशी” बदलने की मांग पर अड़े है। पिछले दिनों जब कांग्रेस नेता “सुनील केदार” यहां “रायशुमारी” के लिए पहुंचे थे तब उनके सामने यह बात रखी गई थी कि परासिया में प्रत्याशी का चेहरा बदलना होगा। मांग थी कि प्रत्याशी ” डेहरिया” समाज का होना चाहिए। इसके लिए नए प्रत्याशी के तौर पर ”  गोपाल डेहरिया” का नाम रखा गया था।

दरअसल  परासिया विधान सभा क्षेत्र में डेहरिया और कतिया समाज के वोटर बड़ी संख्या में है और “हार- जीत” का समीकरण भी तय करते हैं। कांग्रेस यहां हर बार वादा करती है कि अगली बार “उम्मीदवार” डेहरिया समाज का होगा लेकिन ऐसा होता नही है। ऐसे में इस बार समाज “गोपाल डेहरिया” के नाम से मोर्चा खोले बैठा है। विधायक सोहन वाल्मीकि “इंटक” के सपोर्ट से मैदान में उतरते रहे हैं किंतु क्षेत्र में एक के बाद एक कोयला खदानों के बंन्द होने से इंटक के वजूद पर ही नही खदानों के भविष्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। खदान भी  यहां बड़ा मुद्दा बना हुआ है।पिछले 20 साल में यहां नई खदान तो नही खुली उल्टे तीन बडी खदान बंद हो चुकी है। कहा जा रहा है कि  ” सोहन वाल्मीकि” इस बार फिर मैदान में उतरते हैं तो लगातार चौथी बार एक ही व्यक्ति को “टिकट” डेहरिया सहित अन्य समाज के लिए विद्रोह का कारण बन सकता है। सोहन वाल्मीकि अब तक तीन बार चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। पहली बार चुनाव हारे और उसके बाद लगातार दो चुनाव जीते हैं। उनसे  पहले परासिया में “डेहरिया” समाज के ” हरिनारायण डेहरिया” कांग्रेस के विधायक  रहे हैं।

भाजपा ने “डेहरिया समाज” की ज्योति डेहरिया को टिकट देकर सबसे ज्यादा वोटर वाले इस वर्ग को ना केवल प्रतिनिधित्व दिया है बल्कि “महिला कार्ड” भी खेला है। “ज्योति डेहरिया” ने यहां एक दशक पहले आरपीआई की टिकट से चुनाव मैदान में उतरकर काफी वोट हासिल किए थे। इसके बाद वे जनपद और जिला पंचायत की सदस्य भी चुनी गई थी। अब भाजपा की “उम्मीदवार” है। कांग्रेस इस “मुगालते” में है कि भाजपा में “ताराचंद बावरिया” की टिकट कटने से आंतरिक गुटबाजी का लाभ मिलेगा किन्तु भाजपा ने उनका टिकट ही इसलिए काटा है कि वे लगातार दो बार चुनाव हार चुके हैं तब “तीसरी बार” पार्टी ने “नए चेहरे “ज्योति डेहरिया” पर दांव लगा दिया है।

कांग्रेस खेमे से ही वर्तमान समीकरण में “सोहन वाल्मीकि के  मैदान में होने से ” भाजपा”  को डेहरिया समाज की एकजुटता से बड़ा “फायदा” होने के  आकलन के चलते “गोपाल डेहरिया” के नाम की लॉबिंग चल रही है। एक  धड़ा यहां  सोहन वाल्मीकि के खिलाफ उतर आया है।
मंगलवार को कांग्रेस समर्थित कई लोगों ने  संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। कांफ्रेंस में  डेहरिया समाज , कतिया समाज , आदिवासी समाज , मुस्लिम समाज , ब्राह्मण समाज के नेता  शामिल हुए सभी ने एक सुर में कहा कि यदि कांग्रेस चेहरा नहीं बदलती है तो इसका भारी नुकसान पार्टी को चुनाव नतीजों में भुगतना होगा ।

डेहरिया समाज के  अधिवक्ता कैलाश डेहरिया ने कहा कि यदि कांग्रेस परासिया प्रत्याशी नहीं बदलती है तो डेहरिया सहित अन्य समाज के लोग कांग्रेस का  काम नहीं करेंगे।  आर एन तिवारी ने कहा फीडबैक अच्छा नहीं आ रहा है। कांग्रेस नेतृत्व को मंथन करना होगा। प्रेसवार्ता में यमुना प्रसाद दुबे, पूर्व अंजुमन सदर , इशाक खान , अंसार सिद्दीकी ,‌शीतल डेहरिया , राजेश डेहरिया , विजय बहादुर सिंह , मुकेश जौहरे , मनमोहन डेहरिया , हरि यदुवंशी , अजहर खान सहित कई लोग शामिल थे। जिन्होंने साफ तौर पर अपनी बात रखते हुए कांग्रेस नेतृत्व से ” चेहरा” बदलने की मांग रखी है।

 


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