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नवरात्र: छिन्दवाड़ा का सिद्ध शक्ति पीठ , यहां माँ भवानी की “बड़ी माता” के रूप में होती है पूजा

सबकी मनोकामना पूरी करती है श्री बड़ी माता, 12 करोड़ की लागत से बन रहा नया भव्य मंदिर

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छिन्दवाड़ा का नगर शक्ति पीठ श्री बड़ी माता मंदिर

मुकुन्द सोनी  ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-

छिन्दवाड़ा नगर का “श्री बड़ी माता मंदिर” केवल मन्दिर ही नही “श्री बड़ी माता”का स्वयं “प्रकट धाम और “सिद्ध शक्ति  स्थल” है। यह श्री बड़ी माता मंदिर की बड़ी बात है कि “माँ  भवानी” के शास्त्रों और पुराण में वर्णित सहस्त्र नाम है। इन सहस्त्र नामो से माता के सिद्धपीठ और हजारो मन्दिर भारत से लेकर विदेश तक है। कही भी माता का ” बड़ी माता” के नाम से मन्दिर नही है। यह मध्यप्रदेश का केवल छिन्दवाड़ा ही है जहां माँ भवानी को “बड़ी माता” और उनके धाम को “श्री बड़ी माता शक्तिपीठ” कहा जाता है। इस “शक्तिपीठ का  इतिहास छिन्दवाड़ा शहर के बसने से भी पहले का है।

आज का शहर तो अब दस-दस किलोमीटर तक बस चुका है लेकिन  छिन्दवाड़ा का पहला बसने वाला मोहल्ला  “रंघुवंशी पुरा” जिसे आज छोटा बाजार के नाम से जाना जाता है।  यहां “माता का स्थल पहले से था।  जिसमें “श्वेत पत्थरो” के बीच माता का स्वयं सिद्ध स्थान था। इस मड़िया के आस; पास से ही 500 साल पहले सन 1600 के आस- पास नगर का बसना शुरू हुआ था। उस समय “देवगढ़” “चंद्रवंशी” राजाओं की रियासत थी। इसके भी  पहले  छिन्दवाड़ा “राजा विराट”  की नगरी सिंहलदेवनगरी  का “सिंहद्वारा” क्षेत्र  कहा जाता  था क्योंकि यहां के जंगलों में “शेरो” की संख्या  अधिक थी।

सिंहलदेवनगरी में आज का नरसिंहपुर क्षेत्र भी शामिल था। माना जाता है कि यह “सिंहद्वारा” ही भाषा अपभ्रंश में “छिन्दवाड़ा” हो गया है।  समय के साथ छिन्दवाड़ा नगर का विस्तार होता चला गया और आज “श्री बड़ी माता” का यह मंदिर “नगर शक्ति पीठ”  है। अब यहां वर्तमान में करीब 12 करोड़ की लागत से नया भव्य मंदिर बनाया जा रहा है। माता का यह “प्रमाणित” सिद्द्ध् स्थल लगभग 500 साल से है।

कहते है जब सन 1920 में नगर  में “प्लेग” महामारी फैली थी तब नगर का ऐसा कोई परिवार ना था जो महामारी से पीड़ित ना हुआ हो।उस समय महामारी ने कई गांव और शहर को वीरान कर दिया था। सैकड़ो नही हजारो लोग महामारी में  काल- कवलित हो गए थे। तब नगर वासियो ने “श्री बड़ी माता” के इस मंदिर में आकर माता से मनुहार की और माता ने उनकी सुनी और शहर महामारी से  “मुक्त” हुआ और फिर “प्लेग” से किसी की मौत नही हुई। यह वह वक्त था जब नगर में  डॉक्टर्स थे ना ही दवाइयां बस माता का ही आसरा था। श्री बड़ी माता के इस चमत्कार के बाद ही लोगो ने  आस्था से एक साथ मड़िया के स्थल पर ही “श्री बड़ी माता” का  मन्दिर बनवाया था। वो जो “मूर्तिया” मन्दिर में उस समय थी आज भी है और समय- समय पर अपनी ” सिद्धता” का प्रमाण देती है।

आज श्री बड़ी माता का मंदिर ना केवल नगर ही नही  बल्कि पूरे जिले की धार्मिक आस्था और चेतना का केंद्र बिंदु है। “श्री बड़ी माता” मन्दिर आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना की पूर्ति करती है। पूरे देश मे केवल छिन्दवाड़ा नगर ही ऐसा है जहां “माँ भवानी” की  “श्री बड़ी माता” के रूप में पूजा होती है। छिन्दवाड़ा के बुजुर्गों ने बताया था कि “श्री बड़ी माता मंदिर” के स्थल पर पहले खुले आसमान के नीचे प्राकृतिक रूप से ही माता विराजमान थी। उस समय स्थल पर प्रकृति प्रदत्त सफेद पत्थरो का एक बड़ा समूह यहां था। इन पत्थरों पर देवियो की आकृति थी बिना किसी मूर्तियों के यहां माता की प्राकृतिक मूर्तिया बनी हुई थी जो आज भी मन्दिर में है।

नगर वासियों ने यहां माता की मड़िया बनाई थी और “नगर रक्षा देवी” के रूप में देवी की आराधना शुरू कर यहां स्थापित देवी को श्री बड़ी माता”  का नाम दिया था। उस समय शहर छोटी बाजार तक सीमित था बाद में अन्य मोहल्ले और बस्तियां बसी है। सन 1861 में ब्रिटिश शासन ने जब जिले की सीमा का निर्धारण किया तब शहर की आबादी वाला क्षेत्र भी “श्री बड़ी माता मंदिर” का क्षेत्र था। शहर के बसने के श्री गणेश और विस्तार के साथ ही शहर की संस्कृति और उत्सवों का यह मंदिर साक्षी है। शहर में आने वाली हर विपत्ति का “श्री बड़ी माता” हरण करती है। श्री बड़ी माता के प्रति शहर वासियों की आस्था प्रगाढ़ है।  मन्दिर में पहले यहां मौजूद मूर्तिया ही थी मन्दिर विस्तार पर शहर के सुनारों ने ही अष्ट धातु से माता की मूर्ति बनाई थी। इस मूर्ति का तेज और आभा इतनी है कि श्रद्धालु बड़ी माता का दर्शन कर हौसला पाते हैं। और मनोकामना पूरी होने पर परिवार सहित आकर माता के दरबार मे अपनी आस्था को परिलक्षित करते हैं।मन्दिर में माता शीतला मा अन्नपूर्णा की भी मूर्तिया भी है।

शहर के धीरे- धीरे विस्तार के साथ ही मन्दिर विस्तार का क्रम भी चल रहा है। समय के साथ मन्दिर में अनेक निर्माण हुए थे। अब श्री बड़ी माता मंदिर ट्रस्ट मन्दिर की व्यवस्थाओं का संचालन करता है। ट्रस्ट ने मन्दिर से लगी मिशन स्कूल की प्रॉपर्टी भी खरीद कर यहां 12 करोड़ की लागत से नए मन्दिर के निर्माण का कार्य शुरू किया है। नया मन्दिर बनाने के लिए “,माता का स्थल” छोड़कर सभी पुराने निर्माण समाप्त कर दिए गए हैं। अब यहां नव- निर्माण हो रहा है।

मन्दिर ट्रस्ट नगर वासियो के ही सहयोग से  मन्दिर  विस्तार की नई योजना को नए आयाम  दे रहा है। आने वाले साल में यहां नया मन्दिर बनकर तैयार  होगा।

नवरात्र पर्व होता है विशेष..

श्री बड़ी माता मंदिर के लिए माता की आराधना का नवरात्र पर्व विशेष होता है। मन्दिर में साल में दो बार नवरात्र पर्व मनाया जाता है। शारदेय नवरात्र पर प्रतिमा सहित हजारो की संख्या मे मनोकामना कलश रखे जाते है। नवरात्र समापन पर रथ पर श्री बड़ी माता की शोभायात्रा के साथ कलश विसर्जन यात्रा आकर्षण का केन्द्र होती है। हजारो की संख्या में श्रद्धालु इसमें शामिल होते हैं।  चैत्र नवरात्र पर भी मन्दिर में श्रद्धालुओं की मनोकामना के हजारों कलशों में मन्दिर में 9 दिन तक अखंड ज्योत जगमगाती है। प्रतिदिन नियमित सुबह -शाम पूजन आरती के नियम में भी रोज बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। मन्दिर का भुजलिया उत्सव पूरे भारत  देश मे अपनी अलग पहचान रखता है। इसके साथ ही गणेश उत्सव,तीजा उत्सव और आल्हा गायन भी अनोखा है।

माता ने पूरी की खुशियां..

श्री बड़ी माता ने श्रद्धालुओं की खुशियों को बढ़ा दिया है। मन्दिर ट्रस्ट ने मन्दिर से लगी मिशन स्कूल की जमीन को  खरीदा और नए मन्दिर के निर्माण की रूपरेखा बनाई।  माता के भक्तों शहर के दान दाताओ और समाजसेवियों का इसमें योगदान है। मन्दिर का डिजाइन अयोध्या में बन रहे श्री राम मंदिर के “आर्किटेक्ट” सोमपुरा बंधुओ ने तैयार की है। राजस्थान के “लाल” पत्थरों पर कारीगरी के साथ यह मंदिर बनेगा। वर्तमान में मन्दिर में “शारदीय नवरात्र” महोत्सव मनाया जा रहा है।


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