मध्यप्रदेश का “अमरनाथ” नागद्वारी तीर्थ- 36 पहाड़ी सवा लाख झाड़ी में भोले नाथ की अनोखी दुनिया
महाराष्ट्र से लाखों की संख्या में आते हैं श्रद्धालु, नागपंचमी के दिन होता है विशेष

मुकुन्द सोनी ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
36 पहाड़ी सवा लाख झाड़ी वाले तीर्थ ” नागद्वारी” में भगवान भोलेनाथ की अनोखी दुनिया के दर्शन होते हैं। इस तीर्थ की यात्रा साल में एक बार केवल ” श्रावण मास” में होती है। नागपंचमी के दिन यहां लाखो की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। कहा जाता है कि नागद्वारी पुराणों में वर्णित “नागलोक” का रास्ता है। इस नागलोक में करीब 230 प्रजाति के सर्प पाए जाते हैं। सपेरों का भी यहां नागपंचमी पर डेरा रहता है।
नागद्वारी तीर्थ की यात्रा रहस्य और धार्मिक चेतना की महायात्रा है। यहां की यात्रा हर किसी के “बस” की बात नही है। केवल और केवल पैदल मार्ग से ही यह यात्रा जंगलों, पहाड़ो ,झरनों और खाइयों से होते हुए की जाती है। यहां जरा सी गलती आपको सैकड़ो फिट गहरी खाइयों में भी धकेल सकती है।
सात पर्वतों की श्रखंला वाली सतपुड़ा पर्वत श्रेणी का यह सबसे बड़ा और कठिन रास्तों वाला तीर्थ है।सतपुड़ा की रानी के नाम से प्रसिद्ध “पचमढ़ी” के “धूपगढ़” से इसकी यात्रा शुरू होती है। पर्वत श्रखंला में नागद्वारी का रहस्य हमे विधाता की लोक रचना से जोड़ता है। यह रचना समस्त लोकों के स्वामी भगवान भोलेनाथ की महिमा का साक्षात प्रमाण है।
सतपुड़ा पर्वत श्रखंला में ही होशंगाबाद, छिन्दवाड़ा से लेकर महाराष्ट्र का नागपुर जैसा शहर बसा है। इन शहरों की पहचान सतपुड़ा पर्वत के रहस्यों से जुड़ी है जो इन शहरों को धार्मिक आस्था और चेतना का केंद्र बिंदु बनाती है।
आखिर नागद्वारी है क्या ?
नागद्वारी मामूली नही है आपने लोको के बारे में सुना होगा कि इस सृष्टि में आकाश लोक,मृत्यु लोक और पाताल लोक है तीनो लोको के वासी भी अलग-अलग है आकाश लोक में देवता मृत्यु लोक में मानव और पाताल लोक में नागों का वास है । तीनो लोको की समन्वित संस्कृति ही जीवन को जानने समझने और लोक व्यवहार की सीख देती है। आज का मानव नैतिक पतन की गर्त में है। प्रकृति के इन रहस्यों को सुलझाने की ताकत विज्ञान में भी नही है विज्ञान इन रहस्यों के आगे बौना है।
पचमढ़ी के चौरागढ़ में “महादेव” सबसे ऊंचे पर्वत पर विराजमान है। गणों सहित नागद्वारी में भी उनका ही बसेरा है। दर्शन की अभिलाषा सदियों से भक्तों को यहां खींचकर लाती है। जिसने नागद्वारी को सदियों पहले ही एक बड़ा तीर्थ बना दिया है। हर साल केवल पूरे श्रावण मास में “नागपंचमी” के बाद रक्षा बंधन पर्व तक ही यहां की यात्रा श्रद्धालु करते है बाकी पूरे साल यहां कोई जा नही सकता है।
36 पहाड़ो के है 36 रंग…
नागद्वारी में 36 पहाड़िया सवा लाख झाड़िया है हर पहाड़ी का रंग अलग-अलग है। सवा लाख झाड़िया भी अलग-अलग किस्मो की है वास्तव में ये औषधियां है जिन्हें हम जानते भी नही है। इस क्षेत्र के रहस्य को जानने वाले लोग ही इसे समझ पाते है। 36 पहाड़ियों और सवा लाख झाड़ियों के इस इलाके की आज तक वन विभाग भी खाक नही छान पाया है।
पाए जाते हैं 230 प्रजातियों के सर्प..
यहां की पहाड़ियों में अनेक गुफाएं कन्दराएँ है जहां नागों की करीब 230 प्रजातियां है। सपेरों को नागद्वारी की दुनिया नियम का बड़ा पाठ पढ़ाती है। जिसका पालन भारत मे रहने वाला हर सपेरा करता है। यहां बहुत से पर्वत “नागों “के आकार में ही है। झाड़िया भी ऐसी है कि हर झाड़ी उसमे नागों के वास का एहसास कराती है।
नागद्वारी की यात्रा पचमढ़ी के “धूपगढ़ “से पैदल शुरू होती है। आदि अनंत की यह यात्रा आपकी क्षमता पर निर्भर है कि आप कहा तक जा सकते है यहां एक विशाल पर्वत “शेषनाग” का आकार लिए हुए है जिसके फन आकार के बीच इतनी जगह है कि यहां एक लाख से ज्यादा श्रद्धालू खड़े हो सकते है। यही तक पहुचना और पूजन दर्शन करना श्रद्धालु का लक्ष्य रहता है जो भी आसान नही बल्कि बहुत कठिन रास्ता है।
जुन्नारदेव और बैतूल से भी है रास्ता…
पचमढ़ी धूपगढ़ के अलावा बैतूल, दमुआ जुनारदेव से भी नागद्वारी जाने का रास्ता है। यात्रा में पैदल के अलावा कोई विकल्प नही है।गिरिजा माई, चित्रशाला माई, गोरखनाथ मछन्दर नाथ काजलवानी सहित अनेक पूज्य स्थल नागद्वारी यात्रा के तीर्थ है।
अत्यधिक कठिन यात्रा के कारण यहां अनेक सेवा मंडल भक्तो के लिए भोजन पानी चिकित्सा का इंतजाम भी करते है। इस क्षेत्र में दस गांव है जो केवल यात्रा के समय ही आबाद होते है।नागपुर और नागद्वारी का संबंध भी उत्पति का है यहां आने वाले लाखों श्रद्धालु महाराष्ट्र के होते है। वर्तमान के यह क्षेत्र सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में आता है। इसे मध्यप्रदेश का “अमरनााथ” कहा जाता है।