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80 साल तक चली छिन्दवाड़ा के मौनी बाबा की मौन साधना

अनंत यात्रा पर गमन ,हजारो भक्तों और शिष्यों ने पातालेश्वर मोक्षधाम में दी अंतिम विदाई

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चैतन्य कुटी मौनी बाबा महाराज

छिन्दवाड़ा – मौनी बाबा ने 19 वर्ष की अवस्था मे वर्ष 1942 में मौन साधना का व्रत लिया था 80 साल तक वे लगातार मौन साधना  में रहे और अब शिव चेतना में विलीन हो गए हैं मंगलवार को हजारो भक्तों और शिष्यों ने पातालेशर मोक्षधाम में बाबा को  अंतिम विदाई दी

मौनी बाबा ने अपना पूरा जीवन शिव साधना में बिताया शहर के अन्तर्बेल वार्ड में स्थित चैतन्य कुटी सिद्धेश्वर महादेव  उनकी चिर स्मृति का धाम बन गया है जहाँ मौनी बाबा की शिव साधना का नियमित क्रम वर्षों से चल रहा था सोमवार की शाम 6 बजे मौनी बाबा  अपनी साधना के इस स्थल को छोड़कर शिव चेतना में समा गए

चैतन्य कुटी में हर साल मौनी बाबा  के सानिध्य महाशिवरात्रि का महोत्सव शिवरात्रि के 15 दिन पहले शुरू हो जाता था और शिवरात्रि तक चलता था शिवरात्रि   अगले माह आने को थी लेकिन बाबा इससे पहले ही यू चले जांएगे किसी को भरोसा ना था शिवरात्रि पर यहाँ हजारो भक्तों का जमावड़ा होता है  शहर में मौनी बाबा के शिष्य भी हजारो की संख्या में है शिवरात्रि के बाद गुरु पूर्णिमा दूसरा अवसर होता था जब यहाँ हजारो की संख्या में बाबा  के शिष्य गुरु नमन के लिए आते हैं  क्षेत्र के बुजुर्गों ने बताया कि पहले गांधी गंज से लेकर नरसिंहपुर नाका तक के  इस क्षेत्र में केवल बाबा की ही कुटिया थी बस्ती बाद में धीरे-धीरे बसी है  बाबा के पास चैतन्य कुटी में  रत्नेश्वर शिवलिंग है जिसकी वे पूजा करते थे इस शिवलिंग में रत्न जड़े हुए हैं इनमे कीमती रत्नों के साथ ही हीरा , पन्ना, माणिक, मोती सहित अन्य रत्न है पहले केवल महाशिवरात्रि महोत्सव पर ही इस शिवलिंग के दर्शन हो पाते थे अब यह शिवलिंग ही सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित है

शिव साधना केवल शिव प्रेरणा से ही हो सकती है वरना किसी की मजाल नही की साधना कर सके शिव साधना की अष्ट साधना में एक साधना है मौन की ..

मौन रहना उतना ही बड़ा जप -तप है जितना कि हिमालय में रहकर साधना करना और कुछ पा जाना जो आपको उत्साह और ऊर्जा से भर दे और  कल्याण की वह प्रेरणा भी बन जाए  जो परमात्मा हर आत्मा को देता है लेकिन दुनिया मे आते ही दुनियादारी की उलझन में आदमी आत्मा  के ज्ञान को  भूलकर शरीर को सत्य मान बैठता है शरीर की यात्रा केवल यही तक है और आत्मा की अनंत

मौनी बाबा अपनी मौन साधना से अनंत को जान चुके थे जो उनके व्यक्तित्व में नजर आती थी  बात उनके जीवन की करे  तो बाबा  बाल ब्रम्हचारी थे  उन्होंने चारधाम यात्रा पैदल तय की थी केदारनाथ ,बद्रीनाथ द्वारका और जगन्नाथ धाम के साथ ही गंगोत्री की भी यात्रा बाबा ने अपनी 100 वर्ष की उम्र के पहले  पड़ाव में ही कर ली थी  बाबा का जन्म 21 जून 1923 को हुआ था उनके बचपन का नाम केशव था मौन साधना में रहने के कारण ही हर कोई उन्हें मौनी बाबा के नाम से ही जानता है पिछले 21 जून को ही बाबा का 100 वां जन्म  दिवस कुटी में मनाया गया था  बाबा  ने 1952 में छिन्दवाड़ा में गांधी गंज के पीछे  यह चैतन्य कुटी स्थापित की थी  बाबा महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के ग्राम नागरा के रहने वाले थे शिव साधना में मात्र 19 वर्ष की आयु में ही घर छोड़ कर बाल ब्रम्हचारी हो गए थे और साधना के दौर में  भारत   भृमण करते हुए वर्ष 1949 में छिन्दवाड़ा आए थे और अपनी मौन साधना से छिन्दवाड़ा में ही यह नाम पाया था उन्होंने अपनी साधना से चैतन्य कुटी को  चैतन्य बनाया और सिद्धियों से  सिद्धेश्वर महादेव धाम भी छिन्दवाड़ा को दिया है बाबा अब छिन्दवाड़ा  की अपनी चैतन्य कुटी से उस अनंत की यात्रा पर ही है जिस अनंत की उन्होंने जिंदगी भर साधना की है

मौनी बाबा  के श्री चरणों मे शत -शत नमन..

मुकुन्द सोनी संपादक

 

 

 

 


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