नागराज “तक्षक” का निवास है नागचंद्रेश्वर मन्दिर , साल में केवल एक दिन”नागपंचमी”पर खुलता है मन्दिर
काल सर्प सहित अन्य दोष से मिलती है मुक्ति , महाकाल की शरण मे रहता है डेरा
♦मध्यप्रदेश-
मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल में “नागचंद्रेश्वर मंदिर” साल में केवल एक दिन “नागपंचमी” के दिन ही आम जनों के दर्शन के लिए खुलता है बाकी साल भर इस मंदिर के दरवाजे बंद ही रहते हैं।
आखिर यह मंदिर साल में केवल एक दिन के लिए ही क्यो खोला जाता है। इसका रहस्य यह है कि यह स्थल “तक्षक” नाग का है। साल में केवल एक दिन ही दर्शन के लिए इस मंदिर को खोलने का ” विधान” है। “तक्षक” नागराज है।पृथ्वी और तीन नागराज हुए हैं। इनमे शेषनाग, तक्षक तथा वासुकी है । अनन्त, तक्षक तथा वासुकी तीनों भाई महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू के पुत्र थे जो कि सभी नागों के जनक माने जाते हैं। इन्हें कद्रूनन्दन, अनन्त, आदिशेष, काश्यप आदि भी कहा जाता है. धर्मग्रंथों में कई अन्य नागों का भी वर्णन मिलता है, जिनमें वासुकी, तक्षक, कालिया, शन्ख, महापद्म, पद्म, कर्कोटक, धनञ्जय शामिल हैं। ये सभी शेषनाग के छोटे भाई कहे जाते हैं।
हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं। नागचंद्रेश्वर उज्जैन महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है । इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर भगवान शिव-पार्वती बैठे हैं। यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।
पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें भगवान विष्णु की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शैय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित भगवान मूर्ति में शिव , गणेश और माता पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हैं।
मान्यता है कि नागराज “तक्षक” ने भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोले नाथ ने ” तक्षक” को “अमरता” का वरदान दिया था। उसके बाद से “तक्षक ” ने भगवान भोलेनाथ की शरण मे ही रहना शुरू कर दिया था।
” महाकाल” में वास करने से पूर्व “तक्षक” की यह मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। इसलिए : वर्षों से यही परम्परा है कि केवल “नागपंचमी” के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर में पूजन ‘- अर्चन के लिए भारी भीड़ लगती है।
यह भी माना जाता है कि परमार राजा भोज ने सन 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज रामोजी सिंधिया ने सन 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। यहां “नागपंचमी” के दिन एक ही दिन में दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु पूजन के लिए आते हैं। राज परम्परा में अब नागपंचमी के दिन उनकी पहली पूजा जिले के कलेक्टर करते हैं।