छिन्दवाड़ा के सिंगोड़ी में है संत कबीर के शिष्य श्रुति स्नेही साहेब की जिंदा समाधि
हर साल रंग पंचमी पर लगता है मेला ,जुटते है देश भर के कबीरपंथी
छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश –
छिन्दवाड़ा के सिंगोड़ी में है कबीरवाड़ा और इस कबीरवाड़ा मे है उनके शिष्य संत श्रुति स्नेही साहेब की जीवित समाधि ..
इस समाधि स्थल पर हर साल होली की रंग पंचमी के दिन ही मेला लगता है जिसमे ना केवल देश भर के कबीर पंथी एकत्र होते हैं बल्कि आम जन भी समाधि स्थल पर मत्था टेकने जाते हैं होली के दिन से लेकर रंग पंचमी तक समाधि स्थल पर यह मेला रहता है जिसमे रंग पंचमी का दिन खास होता है
समाधि स्थल समीति यहां पांच दिनों तक प्रतिदिन भंडारा का आयोजन करती है देश भर के कबीर पंथियों का यहाँ रंग पंचमी पर मिलन समारोह होता है माना जाता है कि संत श्रुति स्नेही साहेब करीब ढाई सौ साल पहले सिंगोड़ी आए थे और यही के होकर रह गए उन्होंने यहां कबीर पंथ की स्थापना की थी और यही जिंदा समाधि भी ली थी यह समाधि स्थल ही कबीर पंथियों का आस्था स्थल है
संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. वह हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग के प्रवर्तक थे. निर्गुण विचारधारा को मानते थे. उनकी रचनाओं का समाज पर बहुत गहरा असर था मगहर में समाधि लेने के बाद संत कबीर के शिष्यों ने उनकी विचारधारा पर एक पंथ की शुरुआत की थी जिसे कबीर पंथ कहा जाता है. माना जाता है कि देशभर में करीब एक करोड़ लोग इस पंथ से जुड़े है
संत कबीर ने अपने विचार फैलाने का जिम्मा चार प्रमुख शिष्यों को दिया था ये चारों शिष्य ‘चतुर्भुज’, ‘बंके जी’, ‘सहते जी’ और ‘धर्मदास’ थे, जो देशभर में चारों ओर गए थे तीन शिष्यों के बारे में कोई बहुत ज्यादा विवरण नहीं मिलता. किन्तु चौथे शिष्य धर्मदास ने कबीर पंथ की ‘धर्मदासी’ अथवा ‘छत्तीसगढ़ी’ शाखा की स्थापना की थी, जो इस समय देशभर में सबसे मजबूत कबीर पंथी शाखा भी है
कबीरपंथ प्रमुख शाखा ‘कबीरचौरा’ काशी में है. जिसकी एक उपशाखा मगहर में है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गए थे . दूसरा बड़ी शाखा छत्तीसगढ़ में है माना जाता है कि कबीर पंथ की अब 12 प्रमुख शाखाएं हैं, जिनके संस्थापक नारायणदास, श्रुतिगोपाल साहब, साहब दास, कमाली, भगवान दास, जागोदास, जगजीवन दास, गरीब दास, तत्वाजीवा कबीर के प्रमुख शिष्य है इनमे श्रुति गोपाल साहेब ही श्रुति स्नेही साहेब है जिनका समाधि स्थल छिन्दवाड़ा के सिंगोड़ी में है यहां उनकी रूहानियत आज भी कायम है और हर साल होली से लेकर रंगपंचमी तक यहां देश भर के कबीर पंथी उनके स्नेह में यहां एकत्र होते हैं जिसे सिंगोड़ी में रंग पंचमी का मेला कहते हैं किंतु यहाँ रंग पंचमी पर मेले में रंग नही खेला जाता है बल्कि हर कोई केवल समाधि स्थल पर नमन कर केवल उनका स्नेह पाना चाहता है