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दो माह तक चलता था छिन्दवाड़ा का 200 साल पुराना कालीरात का मेला

दो माह तक लगने वाला पूरे देश का एक मात्र मेला

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छिन्दवाड़ा में काली रात का मेला…

200 साल  से भी ज्यादा का लंबा सफर..

काली रात में प्रकट हुई थी महाकाली ..

जेतपुर के पटेलों के खेत मे हुआ था चमत्कार..

गजब है कहानी

जिस जमीन पर लगता है मेला..

आज भी वहाँ नही उगती घास.

बात है खास

तो आइए हमारे साथ..

जानते है मेले की पूरी चमत्कारिक कहानी

-मुकुंद सोनी-

छिन्दवाड़ा-

छिन्दवाड़ा-नागपुर मार्ग पर ग्राम लिंगा के समीप एक छोटा  सा गांव है जैतपुर

इस गांव की जिस जमीन पर मेला लगता है उस जमीन  का नाम है कालीरात

आखिर क्यों..?

इस जमीन का नाम कालीरात ऐसे ही नही पड़ा है यहां सैकड़ो एकड़ में गांव के पटेलों की खेती थी फसलें लहलहाती थी औऱ कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में पटेल परिवार की पटेली के साथ जैतपुर सहित आस-पास के करीब 60 गांवो की रोजी रोटी चलती थी कारण था कुलभरा नदी जिसका नाम अब कुलबहरा प्रचलित हो गया है

पटेलों के खेत के किनारे-किनारे ही कुलबहरा नदी बहती है जो खेतो में सिचाई का सबसे बड़ा साधन थी पहले ना बिजली थी ना सिचाई के साधन ऐसे में कुलभरा नदी ही पानी का एक मात्र आसरा थी

कुलभरा नदी के किनारे के जैतपुर के खेतों में पहले सब कुछ सामान्य था ना कोई चमत्कार था ना कोई बाधा किन्तु कार्तिक पूर्णिमा से अमावस के बीच जब पटेल परिवार यहां रबी फसल की बोवनी  में गेंहू – चना की बोवनी कर रहा था कि बोवनी में जुटे पटेल परिवार के सदस्यों सहित बनिहारो पर  लाल-पीली से दिखने वाले एक खतरनाक कीट जिसके डंक मारने से शरीर सूज-फूल जाता  है जिसे आम भाषा मे तितइंया कहा जाता है   का हमला होने लगा यहाँ तितइंया हमला करने एक- दो  की संख्या में नही बल्कि टिड्डी दल की तरह हजारो की संख्या में आती थी इस हमले से पटेल परिवार इतना परेशान हो गया कि खेती करना ही मुश्किल ही गया था  यह  क्रम कार्तिक पूर्णिमा से 15 दिन अमावस तक चला

पटेल परिवार समझ ही नही पाया कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है फिर एक दिन पटेल परिवार के बुजुर्ग  को माता महाकाली ने स्वप्न में दाखिला दिया बताया कि मैं तेरे खेत मे  मूर्ति रूप में जमीन के भीतर हूँ मुझे निकाल मेरी मड़िया बना और 15 दिन का मेला लगा मुझे अमावस की कालीरात में ही निकालना औऱ माता महाकाली ने वह स्थान भी दाखिले में बताया जहां वे मूर्ति रूप में जमीन के भीतर थीं

जब मूर्ति निकालकर मेला लगाएगा तब कीट का हमला भी बंद हो जाएगा पटेल परिवार के बुजुर्ग को यह समझते देर न लगी कि यह दाखिला तो माता महाकाली का है जी उनकी कुलदेवी भी है

फिर क्या था पटेल परिवार ने इंगित जगह पर जमीन खोदना शुरू किया तब माता महाकाली की वह मूर्ति मिली जो आज कालीरात के महाकाली धाम में  करीब एक सदी से भी ज्यादा समय से विराजित है

पटेल परिवार ने माता महाकाली  की मूर्ति मिलने पर खेत मे ही माता की मड़िया बनवाकर माता  की मूर्ति विराजित की और  माता जे आदेश पर ही 15 दिनों का  मेला  भरवाया तब से लेकर अब तक हर साल कालीरात का यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस तक हर साल लगता हैं  पटेल परिवार के वंशज आज भी जैतपुर में है और यहां बने काली रात धाम के कर्ता-धर्ता ओर संरक्षक है

मेला भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है देश हजारो नही लाखो स्थानों पर मेला लगता है हर मेले की अपनी कहानी औऱ कारण है छिन्दवाड़ा के गांव जैतपुर में  कालीरात के मेले का यही कारण औऱ परम्परा है  जो आज तक चली आ रही है

चूंकि मूर्ति घनी अंधेरी काली अमावस  की रात में जमीन खोदने पर प्रकट हुई थी  तब इस स्थान का नाम ही कालीरात धाम और मेले का नाम कालीरात का मेला रखा गया यह मेला छोटा-,मोटा नही बल्कि छिन्दवाड़ा जिले  का विख्यात मेला है जिसका हर साल  आयोजन 200 साल  से भी ज्यादा का सफर तय कर चुका है

घास का तिनका भी नही उगता मेला की जमीन पर

कालीरात मेला की खास बात है कि  माता के मंदिर परिसर से लेकर मेला स्थल तक की जमीन पर इस घटना के बाद से घास का तिनका भी नही उगता है पटेलों ने यह जमीन मंदिर और मेले के लिए ही सुरक्षित कर दी  है जबकि आसपास के खेतों में फसल लहलहाती नजर आती है यहां खरपतवार और पुराने वृक्ष भी है जबकि मेला स्थल पर खाली मिट्टी ही है

छिन्दवाड़ा का सबसे बड़ा मेला

50 साल पहले तक कालीरात का मेला जिले का सबसे बड़ा मेला था  यहां बड़े पैमाने पर लोहे के बने कृषि औजारों तांबा पीतल के बर्तन सोने चांदी के लिए जेवरों  मिठाइयों और कपड़ो  की बिक्री होती थी पहले मेला दो  माह तक चलता  था पहले ऐसा बाजारीकरण  ना था  मेले में लगने वाले बाजार ही लोगों को जरूरतों की सामग्रियां उपलब्ध कराने के सबसे बड़े बाजार  थे  मेला कार्तिक पूर्णिमा में अब भी  लगता जरूर है और दुकानें भी लगती लेकिन खरीदारी वैसी नहीं होती जो पहले हुआ करती थी जनपद मोहखेड़ से मेला में बाजार बैठकी शुल्क का ठेका भी हुआ करता था जो उस समय लाखो में होता था बाजार ठेकेदार ठेका लेने के लिए आपस मे लड़ पड़ते थे उस जमाने मे मेले की ख्याति पूरे देश मे थी मेले में महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यो से व्यापारी आते थे दो माह तक व्यवसाय के लिए कालीरात में ही उनका डेरा रहता था दो माह तक चलने वाला पूरे देश का यह एक मात्र मेला था

 

पहले बिक जाते थे हजारो किलो के जेवर

यह मेला सुनारों के लिए बड़ा विशेष था इस मेले में 15 दिनों में हजार किलो से ज्यादा सोने-चांदी के जेवर बिक जाया करते थे मेले में बनारस, जबलपुर, सिवनी,छिन्दवाड़ा सहित महाराष्ट्र के सेकड़ो सुनार मेले में अपने हाथों के बने जेवरो की दुकाने लगाते थे मेले में इतना सोना-चांदी होता था कि डाका पड़ने का डर भी होता था किंतु पटेलों के कहने पर की माता काली पर विस्वास करो यहाँ कोई किसी का बालबांका भी नही कर सकता है क्षेत्र में माँ काली स्वयं विराजमान है और यह सत्य भी  है कि जो भी व्यापारी मेले में आया उसका कभी कोई नुकसान नही हुआ

 

कुलभरा नदी का भी है चमत्कार..

यहां कुलभरा नदी का भी चमत्कार कम नही है यहां साधु संतों को पटेल परिवार ही नही ग्रामीण सोने-चांदी की थाली में भोजन देते थे और साधु संत भोजन के बाद  थालियों  को कुलभरा नदी में डाल देते थे

रहस्य है ग्वाले का मंदिर

मंदिर तो केवल भगवान का होता है लेकिन कालीरात में ग्वाले का भी मंदिर है जिसमे ग्वाले की मूर्ति है इस ग्वाले को लेकर कहा जाता है कि वह जैतपुर का ही रहने वाला था और गांव में पटेलों के घरों की गाय चराता था  एक दिन  ग्वाला कुलभरा नदी किनारे गाय चरा रहा था इस दौरान एक गाय नदी में चली गई देखते ही देखते गाय नदी में डूब गई  ग्वाला  उस गाय को वापस लाने नफ़ी में कूद पड़ा  और देखते ही देखते वह भी  नदी में समा गया बताया जाता है कि नदी के भीतर उसे दिव्य लोक  के दर्शन हुए एक महात्मा उसे अपने साथ ले गए और गाय सहित सोने के मोहरे की पोटली दी  और यह भी कहा कि यह बात किसी को नहीं बताना ग्वाला गाय और सोने की मोहर की थैली लेकर नदी के बाहर आ गया दूसरे दिन फिर वह गाय नदी में चली गई ग्वाला फिर नदी में कूदा और उसके साथ फिर वही  घटनाक्रम हुआ उसे लगा कि यह बात गांव में बताना  चाहिए उसने  गांव वालों को सारी कहानी बता दी  और फिर जब वह नदी में कूदा तो फिर  नदी में ही समा  गया जब वह नदी में  वापस नहीं निकला  तो गाँव वाले चिंतित हो गए इस ग्वाले का शव ही नदी में उतराता मिला और चमत्कार उस ग्वाले के साथ ही समाप्त हो गया तब गाँव वालों ने चमत्कारिक आस्था में इस ग्वाले का मंदिर भी काली रात धाम में बनाया है अब कुलभरा नदी पर घाट बना दिए गए है जहां लोगो के स्नान ध्यान सुविधा तो है ही लोग यहां तर्पण के लिए भी  आते हैं

कालीरात धाम प्रबंध समिति..

मेला बाजरी करन के चलते समाप्त होने की कगार पर आ गया था तब ग्रामीणो ने  समिति बनाई और उन्ननयन के प्रयास शुरू किए अब यहां कार्तिक पूर्णिमा पर केवल मेला ही नही लगता बल्कि सात दिनों तक भागवत ,रामायण ,शिवपुराण और देवी भागवत भी होती है जिसमे देश के ख्यातिलब्ध साधु संत प्रवचन करते हैं इस दौरान हजारो की संख्या में यहां लोगों की मौजूदगी रहती है


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