दो साल से केवल नर्मदा जल पर टिका संत भैयाजी सरकार का जीवन
नर्मदा परिक्रमा पथ पर चला रहे जन -जागरण अभियान
एक संत जो दो साल से है निराहार…
सिर्फ नर्मदा का जल पीकर है जिंदा..
कहते हैं नर्मदा का पानी केवल पानी नही ..
है साक्षात भवानी….
आइए मिलिए संत भैयाजी सरकार से…
-मुकुंद सोनी-
छिन्दवाड़ा-
भारत की धरती पर माँ नर्मदा जीवनदायनी है भगवान शिव से प्रकट माँ नर्मदा का कंकर-कंकर शंकर है माँ गंगा में स्नान से पाप धुल जाते हैं माँ नर्मदा के दर्शन जीवन मे पुन्य उदय हो जाता है भारत मे माँ नर्मदा की मौजूदगी देवत्व की साक्षात उपस्थिति है फिर आज के आधुनिक युग मे दोहन-शोषण व्यवस्था के दोष से नर्मदा के अस्तित्व पर चोट हो रही है माँ नर्मदा का संरक्षण और नर्मदा जल की पवित्रता को बनाए रखना ही इस संत का उद्देश है जिसको लेकर 15 अगस्त 2020 से होशंगाबाद से दादा धूनी वाले और माँ नर्मदा के अनन्य भक्त सिद्ध संत भैया जी सरकार ने अन्न का त्याग कर सरकार से नर्मदा संरक्षण की मांग को लेकर सत्याग्रह शुरू किया था
इस सत्याग्रह को दो साल जे ज्यादा का समय हो चुका है संत भैयाजी सरकार ने अन्न ग्रहण नही किया है वे केवल नर्मदा का जल पीकर ही जिंदा है और अन्न त्याग सत्याग्रह से उन्होंने प्रमाणित कर दिया है कि माँ नर्मदा का जल केवल जल नही साक्षात भवानी है
माँ भवानी की श्रद्धा में साल में दो बार शारदेय और चैत्र नवरात्र पर श्रद्धालु 9-9 दिन का उपवास रखकर माँ भवानी की शक्तियों की उपस्थिति का अहसास करा देते हैं किंतु भैयाजी सरकार तो दो साल से भी ज्यादा समय से निराहार उपवास पर है शरीर की ऊर्जा के लिए वे ना अन्न लेते हैं ना फलाहार करते हैं ना दूध लेते हैं
यह माँ नर्मदा और दादा धूनी वाले की कृपा का ही साक्षात प्रमाण है कि संत भैयाजी सरकार ने केवल जल के सहारे ही अपना जीवन कर दिया है
उनका संकल्प है कि सरकार ने नमामि गंगे अभियान शुरू कर माँ गंगा के जल को दूषित होने से रोका है वैसे ही नमामि नर्मदा अभियान की जरूरत माँ नर्मदा जल को पवित्र और आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने की जरूरत है
यह बीड़ा नर्मदा के भक्त ही उठा सकते हैं नर्मदा केवल नदी नही जीवन है भारत का आस्था है भारत की तो फिर भारत सरकार को भी नर्मदा के प्रति अपना कर्तव्य निभाना होगा जब भारत का जन-जन माँ नर्मदा के प्रति जागरूकता का परिचय देगा तो सरकार को भी अलग से नर्मदा संरक्षण नीति और विभाग बनाना ही पड़ेगा
संत भैयाजी सरकार इन दिनों नर्मदा परिक्रमा पर ही है रोज 10-15 किलोमीटर पैदल चलते हैं परिक्रमा पथ में पड़ने वाले गांवो -शहरों में जन-जागरण करते हैं
वे जहाँ जाते हैं जन समूह उनके साथ होता है अपने प्रवचनों में वे नर्मदा के अस्तित्व और महिमा की बात करते हैं और स्वयं के आचरण औऱ व्यवहार से माँ नर्मदा की प्रति अपनी अपार भक्ति का परिचय देकर माँ नर्मदा की शक्ति उपस्थिति का अहसास कराते हैं
नर्मदा तट और नर्मदा की उपस्थिति वाले भारत के गांव-शहर के लोग तो माँ नर्मदा के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नही कर सकते हैं नर्मदा केवल नर्मदा नही है जीवन है मोक्ष है जीवन की ऊर्जा उमंग स्त्रोत सबकुछ है
संत भैयाजी सरकार ने सरकार के समक्ष अपनी मांगे रखी हैं इनमे-
हाईकोर्ट के आदेशानुसार नर्मदा के दोनों ओर 300 मीटर तक प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर तत्काल संरक्षित करने।
– मां नर्मदा को जीवंत इकाई का दर्जा देकर ठोस नीति व कानून बनाने।
– हरित क्षेत्र में अवैध निर्माण, अतिक्रमण, भंडारण, खनन प्रतिबंधित करने।
– अमरकंटक तीर्थ क्षेत्र में हो रहे निर्माण अतिक्रमण औऱ खनन पूर्णतः प्रतिबंधित करने।
– नर्मदा के जल में मिल रहे गंदे नालों विषेले रासायनों को बंद करने व अपशिष्ट द्रव्य पदार्थों के प्रबंधन के लिए प्रभावी ठोस कार्ययोजना लागू करने।
– बेसहारा गौ वंश के लिए आरक्षित नगरीय निकायों की गौचर भूमि को संरक्षित करने और गौ शालाओ को अवैध अतिक्रमण निर्माण कब्जा से मुक्त करने।
– नर्मदा पथ के तटवर्ती गांव नगरों को जैवविविधता क्षेत्र घोषित कर समग्र गौ-नीति, गौ अभ्यारण बनाने की मांग शामिल हैं
ऐसा है माँ नर्मदा का आँचल…
केंद्रीय पुरातत्व विभाग दिल्ली द्वारा वर्ष 1997 में प्रकाशित एक पुस्तक के अनुसार धानसी स्थित नर्मदा तट की मिटटी 6 लाख वर्ष से भी पुरानी है। इसलिए वैज्ञानिकों के दल ने खोज के लिये धानसी तट का चुनाव किया। मध्यप्रदेश और गुजरात की प्रमुख नदी: नर्मदा मध्यभारत के मध्यप्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है।
कुछ लोग कहते हैं कि यदि अच्छे से नर्मदाजी की परिक्रमा की जाए तो नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं। परिक्रमावासी लगभग 1,312 किलोमीटर के दोनों तटों पर निरंतर पैदल चलते हुए परिक्रमा करते हैं।
प्रदेश में अनूपपुर के अमरकंटक से लेकर आलीराजपुर के सोंडवा तक नर्मदा अपने 1077 किमी लंबे सफर के दौरान राज्य के 16 जिलों से होकर गुजरती है, जिसमें 50 स्थानों पर हर माह इसके जल की सैंपलिंग और फिर जांच की जाती है
नर्मदा की परिक्रमा तीन तरह से शुरू होती है। प्रथम परिक्रमा मध्यप्रदेश के अमरकंटक से शुरू होती है और अमरकंटक में ही जाकर समाप्त होती है। दूसरे प्रकार में परिक्रमा की शुरुआत ओमकारेश्वर से होती है और ओमकारेश्वर में ही परिक्रमा पूर्ण होती है।
नदियों से मिलने वाले जल के कारण ही उसके आसपास की संस्कृति विकसित होती है। फसल, प्राकृतिक सौंदर्य, नगर, गाँव कस्बे आदि नदियों के किनारे विकसित होते हैं। यदि नर्मदा नदी सूख जाएगी तो उसके आसपास की संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी और कोई नहीं बचेगा इसीलिए संत भैयाजी सरकार ने यह संरक्षण का अभियान चलाया है
चिरकुंआरी मां नर्मदा के बारे में कहा जाता है कि चिरकाल तक मां नर्मदा को संसार में रहने का वरदान है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव ने मां रेवा को वरदान दिया था कि प्रलयकाल में भी तुम्हारा अंत नहीं होगा किन्तु आज का आधुनिकीकरण औद्योगिक विकास दोहन जन जागरूकता का अभाव नर्मदा के अस्तित्व के लिए संकट बन रहा है