छह दिनों से घर मे सड़ रही थी वनरक्षक की लाश,छिन्दवाड़ा के जंगल विभाग में जंगली अफसर, नही दिया था आठ माह से वेतन
पत्नी बच्चे को लेकर गई थी मायके, सूने घर मे कर ली आत्महत्या

6 जून को कलेक्टर सहित मुख्य वन सरंक्षक और डी एफ़ ओ को दिया था वेतन के लिए आवेदन
♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश –
छिन्दवाड़ा शहर की श्री वास्तव कालोनी में रहने वाले एक वनरक्षक ओमप्रकाश लोधी का शव छह दिनों तक उनके घर मे ही सड़ता रहा। मोहल्ले के लोगो को जब बदबू आने लगी तब खबर पुलिस तक पहुंची। पुलिस ने मकान का दरवाजा खोला तो पाया कि अंदर वनरक्षक का शव डी- कंपोस्ट हो रहा था। जिससे भयानक बदबू आ रही थी। यह वन रक्षक पश्चिम वन मण्डल के हर्रई स्थित सलैया डिपो में पदस्थ था। 28 जून को उसकी पत्नी 14 साल के बेटे के साथ अपने मायके बालाघाट चली गई थी। इसके बाद से वह घर के अकेला था। 8 जुलाई को उसकी माँ भी मिलने घर आई थी। इसके बाद से उसे किसी ने नही देखा। 8 जुलाई से उसके घर का दरवाजा अंदर से बंद था। जो 14 जुलाई को धरमटेकड़ी पुलिस ने उसके घर का दरवाजा तोड़ा और शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवाया। पुलिस मौत के मामले की जांच कर रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उसकी मौत के कारणों का खुलासा होगा। शव की अवस्था बता रही थी कि कि वनरक्षक करीब 6 दिन पहले ही मर चुका था। उसके बंद घर मे शव सड़ रहा था।
मरने से पहले वनरक्षक ओमप्रकाश लोधी ने कलेक्टर, मुख्य वन सरंक्षक, और डी एफ़ ओ को 6 जून को आवेदन दिया था। अपनी हैंडराइटिंग में लिखे आवेदन में उसने कहा था कि विभाग के अफसर उसे प्रताड़ित कर रहे हैं। साल भर में उसका चार बार तबादला कर चुके हैं। पहले सांवरी, देलाखरी, फिर सांगाखेड़ा और वर्तमान में वह हर्रई के सलैया डिपो में पदस्थ था। निलंबित करने के बाद से उसे आठ माह से वेतन ही नही दिया गया है। वह अपने परिवार का पालन – पोषण नही कर पा रहा है। पत्र में उसने परिवार सहित आत्महत्या करने की अनुमति भी मांगी थी।
इस वनरक्षक की लाश मिलने के बाद भी वन विभाग के अफसरों की संवेदना जागी नही है। कोई भी अफसर ना उसे देखने अस्पताल गया ना ही उसके परिजनों से मिला है। तय ही है कि अफसरों की प्रताड़ना निलंबन, सालभर में चार बार तबादला और आठ माह से वेतन ना मिलने से बने मुश्किल हालातो में उसने आत्महत्या कर ली है। यदि उसके 6 जून के आवेदन पर ही अफसरों ने ध्यान दिया होता तो शायद आज यह खबर ना होती। किसी भी कर्मी को निलंबन अवधि में भी गुजारा भत्ता की पात्रता होती है किंतु वन विभाग में शायद जंगल राज ही चल रहा है कि उसे गुजारा भत्ता भी नसीब नही हुआ और वह इस बुरी कंडीशन में दुनिया से ही चला गया है।
दरअसल यह लाश वनरक्षक की नही बल्कि जिले के वन विभाग के सड़े – गले सिस्टम की है जो वन विभाग अपने ही वनरक्षक की रक्षा नही कर पाया वह जिले के जंगल की रक्षा भला क्या करेगा। भृष्ट और मदमस्त अफसर विभाग के कर्मी के प्रति ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हैं कि एक वन रक्षक आठ माह से वेतन के लिए तरस रहा था जबकि वह वन विभाग में 6 नवम्बर 2006 से पदस्थ था। एक मुख्य वन सरंक्षक और तीन – तीन डी एफ़ ओ वाले जिले के वन विभाग के लिए यह घटना शर्मनाक है।
प्रदेश की संवेदनशील सरकार को इस घटना को संज्ञान में लेकर मृत वनरक्षक ओमप्रकाश लोधी के मामले की जांच कराना चाहिए। अफसर तो उसे शराबी, लापरवाह के साथ ही ड्यूटी में नही आ रहा था कहकर बच निकलेंगे किन्तु वन विभाग में केवल एक ही वन रक्षक नही है। वनरक्षकों से महकमा भरा पड़ा है।इस मामले में मुख्य वन सरंक्षक, पश्चिम वन मण्डल के डी एफ़ ओ और रेंजर को निलंबित कर जांच बिठाई जाना चाहिए कि 6 जून के उसके आवेदन को क्यो नही सुना गया था।