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नगर निगम छिन्दवाड़ा: लोकायुक्त ने बाहर निकाला फाइलों में दफन करोड़ो की जेल परिसर जमीन घोटाले का जिन्न?

करोड़ो की जमीन कौड़ियों के भाव नाप दी , अब और कौन - कौन नपेगा जांच के बाद होगा खुलासा ?

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 ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश –

नगर निगम छिन्दवाड़ा के  जेल परिसर  जमीन  घोटाले का जिन्न भोपाल लोकायुक्त ने शिकायत के चार साल बाद बाहर निकाल दिया है। करोड़ो की जमीन कौड़ियों के दाम नापने वाले दो  अफसर भी  घोटाले में नप गए हैं वही जनता ने नगर निगम की सत्ता छीनकर इसमे लिप्त नेताओ को पहले ही नाप दिया है।अब और कौन – कौन नपेगा इसका खुलासा लोकायुक्त की गहराई से होने वाली जांच में पता चलेगा।  सवाल तो यह भी है कि आखिर चार साल तक लोकायुक्त में घोटाले की शिकायत की फाइल दबी क्यो रही?

छिन्दवाड़ा – सिवनी मार्ग पर पुलिस लाइन के सामने और मलिक नर्सिंग होम से लगी जिला जेल के पीछे स्थित  शहर की करोड़ो की मार्केट वेल्यू वाली जेल परिसर की जमीन के घोटाले में लोकायुक्त ने तत्कालीन नगर निगम  कमिश्नर इच्छित गढ़पाले और कार्यपालन यंत्री एन एस बघेल के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की है  । नगर निगम में हुए इस जमीन घोटाले की शिकायत किसी और ने नही निगम में भाजपा के पार्षद और भाजपा नेता विजय पांडेय ,संतोष राय ,शिव मालवी और हरिओम सोनी ने काफी पहले की थी। आरोप था कि अधिकारियों ने कुछ नेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए जेल परिसर को जमीन का पी पी पी मोड पर बस टर्मिनल और शॉपिंग काम्प्लेक्स का प्रोजेक्ट बनाया था।जिसमे जेल परिसर की  करोड़ो की जमीन कौड़ियों के भाव कंस्ट्रक्शन एजेंसी को दे  दी थी। इतना ही नही अधिकारियों ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनर शिप के इस प्रोजेक्ट का मोड़  बदलकर फिर स्व वित्तपोषित कर दिया था। यह मामला छोटा – मोटा नही बल्कि करोड़ो के लेन – देन का बताया गया है।   जांच ना होने से अब तक यह  ठंडे बस्ते में था लेकिन लोकायुक्त भोपाल के दोनों अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर लेने से  जेल परिसर की जमीन का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। यदि अब इन अधिकारियों ने लोकायुक्त के सामने मुंह खोला तो वे नेता भी बेनकाब होंगे जो जेल परिसर की जमीन मामले में  करोड़ो का वारा – न्यारा करने के बाद अब करोड़ो कमाने का सपना लिए राजनीति में सक्रिय हैं और शराफत की चादर ओढ़े अपने आप को शरीफ बताने से नही चूकते है।  सवाल यह भी है कि एक ही शहर में कितने बस टर्मिनल बनेंगे। शहर में मानसरोवर काम्प्लेक्स में एक और विवेकानंद परिसर में दूसरा बस टर्मिनल है तो फिर जेल परिसर की जमीन पर तीसरा बस टर्मिनल क्यो ?

इच्छित गढ़पाले  राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है ।वर्तमान में मुरैना जिला पंचायत में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं। एन एस बघेल कार्यपालन यंत्री के पद से सेवा निवृत्त हो चुके हैं। अफसरों पर कार्रवाई होगी तो ज्यादा से ज्यादा क्या होगा कि इच्छित गढ़पाले  आई ए एस अवार्ड पाकर कलेक्टर पद पर प्रमोट नही हो पाएंगे  और सेवा निवृत्त कार्य पालन यंत्री की पेंशन रुक जाएगी लेकिन नेताओ का क्या? लोकायुक्त को जांच के दायरे में नेताओ को भी लाना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उनके पार्षद ,महापौर और विधायक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। मामला दोनो अफसरों के ही नही निगम में भाजपा  कार्यकाल का  है जब प्रदेश में भाजपा की ही सरकार के साथ निगम में भी भाजपा के ही महापौर और पार्षदों का बहुमत था। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद जब प्रदेश में कमलनाथ सरकार बनी तब आनन – फानन में यह प्रोजेक्ट रोक दिया गया था।किन्तु निगम में भाजपा ही काबिज थी। कहा जाता है कि  तब कुछ कांग्रेस नेताओं को भी उपकृत कर इस प्रोजेक्ट में निर्माण किया जाता रहा था किन्तु यह प्रोजेक्ट विवादों के चलते अब भी अधूरा ही है।

लोकायुक्त एसपी संजय  साहू ने बताया कि छिंदवाड़ा में 2014 से 2018 के बीच बस स्टैंड का निर्माण कार्य पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में  किया जाना था। तत्कालीन नगर निगम आयुक्त  इच्छित गढ़पाले और एग्जीक्यूटिव इंजीनियर  नूर सिंह बघेल ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मोड बदलकर स्ववित्तपोषित मोड में तब्दील कर दिया। 3 एकड़ 20000 वर्ग फीट जमीन फ्री होल्ड करके ठेकेदार को दुकानें बनाने के लिए आवंटित कर दी थी। शिकायतकर्ताओं चार पार्षद का आरोप है कि जमीनों की कीमत 200 करोड़ के पार है। जो ठेकेदार को मात्र 10 करोड़ में दे दी गई है।

एसपी  संजय साहू ने बताया कि तत्कालीन नगर निगम आयुक्त  इच्छित गढ़पाले आईएएस और एग्जीक्यूटिव इंजीनियर  नूर सिंह बघेल के खिलाफ पद के दुरुपयोग का मामला दर्ज किया गया है। अब  इस मामले की इन्वेस्टिगेशन की जाएगी जिसमें सभी दस्तावेज जप्त किए जाएंगे और उसके बाद अभियोजन की प्रक्रिया शुरू होगी।

यह था मामला ..

जेल परिसर की जमीन का नजूल को हस्तातंरण के बाद यहां करीब दो लाख वर्ग फुट जमीन पर बस टर्मिनल और शॉपिंग काम्प्लेक्स के निर्माण के बदले कन्स्ट्रक्शन एजेंसी को 20 हजार वर्ग फिट जमीन देने का अनुबंध किया गया था। एजेंसी को यहां करीब एक लाख वर्ग फुट जगह में काम्प्लेक्स बनाना था और 80 हजार वर्ग फुट में बस टर्मिनल इसकी लागत एजेंसी को स्वयं लगाना था।निर्माण की लागत लगभग 18  करोड़ रुपया थी ।  जिसके बदले एजेंसी को निर्माण कर निगम को सौपने पर 20 हजार वर्ग फिट जमीन की रजिस्ट्री नगर निगम को एजेंसी के नाम पर करना है। एजेंसी को इस जमीन का व्यावसायिक उपयोग करने की स्वायत्तता है।  साथ ही बस टर्मिनल  की मालिक भी यह एजेंसी होगी। सवाल यह है कि इस एजेंसी के पीछे छिपे नेता कौन है बस यही पूरा मामला फंसा हुआ है। लोकायुक्त में  शिकायत तो काफी पहले की थी लेकिन जांच लोकायुक्त के  एस पी के बदलने के बाद शुरू हो रही है। नेताओ का गणित तो यह भी था कि नगर निगम का चुनाव जीतकर सब ठीक कर लेंगे लेकिन तथा कथित जमीन घोटालों के मुद्दे पर ही यहाँ भाजपा चुनाव हार गई और जेल परिसर की जमीन का पेंच फंसा रह गया है। इसमे सबसे बड़ा अड़ंगा शिफ्टिंग का भी है। जिस जमीन पर निर्माण हो रहा है वहा सड़क किनारे से  गुमठी मार्केट में दो सौ से ज्यादा गुमठीया और अवैध कब्जे है जिन्हें हटा पाना  निगम के बूते  की बात  नही है। ना ही जिला प्रशासन घोटाले के चलते ऐसी इच्छाशक्ति रखता है।लेकिन इतना जरूर है कि खुली जमीन के अभाव वाली छिन्दवाड़ा सिटी में एक बड़ी जमीन पर बड़ा मार्केट का बड़ा प्रोजेक्ट जो नगर निगम की करोड़ो की आय का साधन बनता  इस मामूली प्रोजेक्ट में ही कीमती  जमीन को ही बेकार कर गया है।


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