धार्मिक

गंगा दशहरा : पृथ्वी पर माँ गंगा के अवतरण का महोत्सव

गंगा स्नान से नाश हो जाते हैं पाप और विकार

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गंगा दशहरा  पतित को पावन करने वाली माँ  गंगा  का जन्म उत्सव है। 30 मई को देश मे गंगा दशहरा मनाया जाएगा।  मां गंगा का जन्म वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को हुआ था, वह ब्रह्म देव की पुत्री हैं. मां गंगा के जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरण, शिवजी से विवाह की इच्छा, अपने 7 पुत्रों को नदी में बहाने, ब्रह्म देव के श्राप से जुड़ी कई बाते हैं। गंगा  दशहरा ज्येष्ठ माह के बड़े पर्व में से एक है. इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से पूर्वजन्म के भी पाप मिट जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। माँ गंगा ब्रम्ह देव की पुत्री है।

. गंगा का जन्म…

वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में जब एक पैर आसमान में उठाया तो ब्रह्म देव ने उसे जल से धोया और पानी को कमंडल में रख लिया था।  कमंडल में उस जल से ही  गंगा का जन्म हुआ हैं।  यह भी कहते हैं कि वामन देव के पैर से आसमान में छेद हुआ और उससे गंगा का जन्म हुआ था।

 ब्रह्म देव ने गंगा को दिया धरती पर रहने का श्राप

:एक समय ब्रम्ह लोक में  ब्रह्म देव की सेवा में देवताओं के साथ राजा महाभिष भी उपस्थित थे। वहां पर गंगा ने उनको देखा और  दोनों एक दूर देखने लगे  तभी ब्रह्म देव ने भी  उन दोनों को देख लिय और इससे वे क्रोधित हो गए थे।  उन्होंने महाभिष और गंगा को श्राप दिया कि तुम दोनों को पृथ्वी लोक में जन्म लेना होगा क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारी इच्छा पूर्ण नहीं हो सकती है।

राजा शांतनु से हुआ गंगा का विवाह..

कहा जाता है कि ब्रह्म देव के श्राप के कारण ही गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ. फिर महाभिष राजा प्रतीप के घर शांतनु के रूप में जन्में और गंगा पृथ्वी पर स्त्री रूप में आईं. उसके बाद गंगा और शांतनु का विवाह हुआ. उसके बाद उनके 8वें पुत्र के रूप में भीष्म का जन्म हुआ.

गंगा ने अपने 7 पुत्रों को क्यों मारा…

कथा के अनुसार, राजा शांतनु के 8 पुत्र हुए थे. उनमें से पहले 7 पुत्रों को गंगा ने नदी में प्रवाहित कर दिया था. भीष्म उनके आठवें पुत्र थे, जो जीवित रहे. गंगा ने बताया था कि उनके 8 पुत्र वसु थे, ​जिनको वशिष्ठ ऋषि ने मनुष्य रूप में जन्म लेने का श्राप दिया था. उन वसु के अनुरोध पर ही गंगा ने उनको जन्म दिया और पानी में डुबोकर श्राप से मुक्ति दिलाई, लेकिन जब वे 8वें वसु को डुबोने वाली थीं तो शांतनु ने रोक दिया. वही भीष्म हुए, जिनको अपने जीवन में कष्ट भोगने पड़े.

शिव जी को पति स्वरूप पाना चाहती थीं गंगा…

कहा जाता है कि ब्रह्म देव ने जन्म के बाद गंगा को हिमालय को सौंप दिया था. हिमालय की पुत्री माता पार्वती हैं. इस तरह से गंगा और पार्वती बहन हो गईं. शिव पुराण की कथा के अनुसार, गंगा भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं, लेकिन माता पार्वती इससे खुश नहीं थीं. गंगा ने कठोर तप से भोलनाथ को प्रसन्न किया तो उन्होंने उनको अपने समीप रहने का वरदान दिया. पृथ्वी पर अवतरण से पूर्व भगवान शिव गंगा को अपनी जटाओं में बांध लेते हैं. वहीं से गंगा भगवान शिव की जटाओं से होकर पृथ्वी पर बहने लगती हैं.गंगा को पृथ्वी पर भगवान राम के पूर्वज राजा भागीरथ लाए थे इसलिए गंगा को भगीरथी भी कहा जाता है।

 गंगा दशहरा पर स्नान का महत्व…

गंगा दशहरा के इस महापर्व को सनातन धर्म में धरती पर मां गंगा के आगनम की तिथि के रूप में मनाया जाता है।
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान के बाद मां गंगा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां गंगा की पूजा करने से भगवान विष्णु की भी कृपा प्राप्त होती है। दशहरा का मतलब है 10 विकारों का नाश, इसलिए गंगा दशहरा के दिन शुद्ध मन से गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं।

ऐसे पृथ्वी पर आई गंगा.…..

गंगावतरण के सम्बन्ध में पुराणों में एक कथा वर्णित है कि अयोध्या के सूर्यवंशी महाराजा सगर की दो रानियां- केशनी और सुमति थीं । केशिनी के पुत्र असमंजस और अंशुमान थे। सुमति के साठ हजार पुत्र थे। राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में घोड़ा छोड़ा गया। भय और दुर्भावना वश इन्द्र ने वह घोड़ा चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। घोड़ा ढूँढने के लिए राजा सगर के साठ हजार पुत्र निकले। उन्हें घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में बंधा हुआ दिखाई दिया। पास में ही कपिल मुनि ध्यानावस्था में बैठे हुए थे। ध्यानस्थ होने के बावजूद भी उन लोगों ने ऋषि से दुर्व्यवहार किया जिससे क्रोधित होकर महर्षि कपिल मुनि ने शाप देकर सबको भस्म कर दिया। महाराज सगर की मृत्यु उपरांत अंशुमान अयोध्या के राजा हुए। उनके बाद उनके पुत्र दिलीप राजा हुए। इन सबने अपने-अपने समय में राज-काज करते हुए कठिन तपस्या की किन्तु पूर्वजों को शापमुक्त नहीं करा सके।

महात्मा गरुण जी ने अंशुमान को बताया था कि राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की मुक्ति के लिए गंगा जी को पृथ्वी पर लाना होगा। राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ कालान्तर में अयोध्या के राजा हुए जो बहुत ही प्रतापी और धर्मात्मा थे। उन्होंने पूर्वजों की मुक्ति हेतु गोकर्ण तीर्थ में कई वर्षों तक ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए और वर माँगने को कहा। भगीरथ ने विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की कि हे नाथ! कृपा करके राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की मुक्ति हेतु गंगा जी को पृथ्वी पर आने की अनुमति प्रदान करें। ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से एक बूंद के रूप में गंगा जी को छोड़ा। तीव्र वेग के साथ पृथ्वी पर आते हुए गंगा जी को अभिमान हो गया कि मैं महादेव जी की जटाओं का भेदन कर पाताल लोक को चली जाऊँगी । अन्तर्यामी भगवान शिव ने उनकी मनोदशा को पढ़ लिया और अपनी जटाओं में उन्हें उलझा कर निकलने ही नहीं दिया और गंगा जी के अभिमान का मर्दन कर दिया।

भगीरथ ने पुनः शिवजी की कठिन तपस्या की और गंगा जी को छोड़ने की प्रार्थना की। तब शिवजी ने उनसे प्रसन्न होकर अपनी एक जटा खोली जिससे गंगा जी निकल कर भगीरथ के दिव्य रथ के पीछे-पीछे चलीं। इस प्रकार गंगा जी अनेक स्थानों को पवित्र करती हुई वहाँ पहुँची जहाँ राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हुए थे। उन्होंने उनको स्पर्श कर सबको मुक्त कर दिया। ब्रह्मा जी ने अपने आशीर्वाद में राजा भगीरथ को कहा कि हे राजन! तुमने अत्यन्त कठिन तपस्या करके असम्भव को भी सम्भव कर दिया है, इसलिए गंगा का तुम्हारे ही नाम पर एक नाम भागीरथी भी होगा।


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