कैसे बना छिन्दवाड़ा का अनगढ़ हनुमान मंदिर : परिसर में है छिन्दवाड़ा की पहली सबसे बड़ी हनुमान प्रतिमा, अब है शहर की पहचान
पहले थी मड़िया फिर बना मन्दिर, रोज रहता है भक्तों का तांता

किसी ने गड़ा नही इसलिए है अनगढ़
मुकुन्द सोनी ♦छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश-
छिन्दवाड़ा शहर की पहली सबसे बड़ी मूर्ति यदि कोई है तो वह अनगढ़ हनुमान मंदिर परिसर की 21 फुट ऊंची हनुमान प्रतिमा है। सन 85 के आस -पास बनी यह मूर्ति अब शहर की पहचान ही नही बल्कि आस्था का केंद्र है। अनगढ़ हनुमान मंदिर में इसे गड़ा गया है। इसे गढ़ने वाले भी कही और के नही बल्कि छिन्दवाड़ा के स्थानीय लोग ही है। विशेष यह है कि हनुमान जी के हजारो नाम है रामदूत, अंजनी पुत्र, पवन पुत्र, संकटमोचन पर अनगढ़ कही नही है लेकिन छिन्दवाड़ा शहर में इस हनुमान मंदिर का नाम अनगढ़ हनुमान मंदिर है। ऐसा इसलिए कि हनुमान जी को किसी ने यहां गड़ा नही है। अर्थात यहां जो उनकी प्रतिमा है वह कही से लाई नही गई है। ना बनाई गई है और ना ही प्राण प्रतिष्ठा की गई है। यहां एक अनगढ़ स्वरूप में हनुमान जी की पूजा की जाती है।
कहा जाता है कि 70 के दशक के पहले जिला चिकित्सालय के बगल में हनुमान जी की माड़िया मात्र थी। इस माड़िया में एक बाबा सेवा दिया करते थे।लोग उन्हें पागल समझते थे। अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजन यहाँ मरीज के ठीक होने की अर्जी लगाया करते थे। यह वह दौर था जब अनगढ़ मन्दिर भी अनगढ़ ही था। वहां ना वर्तमान जैसा बड़ा हाल था ना ही वह 21 फुट ऊंची मूर्ति जो आज छिन्दवाड़ा शहर की पहचान है। अब मन्दिर में रोज ही भक्तों का तांता लगा रहता है। मन्दिर में प्रवचन भी रोज का क्रम है। मन्दिर के लिए हनुमान जयंती तो विशेष है ही हर तीज त्योहार यहां मनाए जाते हैं। श्रावण मास में पूरे महीने द्वादश ज्योतरिलिंग का अभिषेक होता है। मन्दिर परिसर की श्री मूर्ति तो ऐसी है कि शहरवासी हो या आने – जाने वाले हर किसी को इसके दर्शन होते हैं। यह श्री मूर्ति अब शहर की पहचान है।
मन्दिर बनने के बाद जाने कहा चले गए बाबा ..
बताया जाता है कि मड़िया में बैठने वाले वे बाबा लोगो को भभूत दिया करते थे। ऐसे में एक दिन कोई कोई अग्रवाल भी बाबा के पास पहुंच गए उनका बेटा बीमार था। अग्रवाल ने बाबा से अर्जी लगाई कि उनका बेटा ठीक हो जाए। बाबा बोले तेरा बेटा ठीक होगा यहां एक मन्दिर बनांव देना। समय के साथ ऐसा ही हुआ और फिर यहाँ मड़िया की जगह छोटा मन्दिर भी बनवा दिया गया जिसमे लकड़ी और लोहे की सलाखों के जालीदार दरवाजा लगाया गया था। मन्दिर बनने के बाद बाबा कहा चले गए किसी को नही मालूम है ना ही यह मालूम था कि वे थे कौन.?

जगद गुरु शंकराचार्य के आदेश पर महंत बने नागेंद्र ब्रम्हचारी.
सन 1970 में जगद गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती छिन्दवाड़ा आए थे । उनका लाव -लश्कर जब इस मंदिर के सामने से निकला तब जगद गुरु की नजर इस सुने मन्दिर पर पड़ी तब उन्होंने अपनी शिष्य मंडली में से एक शिष्य को आदेश दिया कि जाओ इस मंदिर में हनुमान जी की सेवा करो। यह शिष्य गुरु आदेश से आज भी मन्दिर में सेवाए दे रहा है। जिन्हें आप नागेंद्र ब्रम्हचारी के नाम से जानते है।
नागेंद्र ब्रम्हचारी उस समय 20- 22 साल के युवा थे और जगद गुरु के आदेश से यही रुक गए और मन्दिर के महंत की भूमिका निभाने लगे। उनके नियमित पूजन – पाठ और सेवा ने इन 44 वर्षों में मंदिर का नक्शा ही बदल दिया है। मन्दिर का विस्तार भी हुआ और हनुमान जी की पहली 21 फुट ऊंची प्रतिमा का निर्माण भी हुआ। खास बात यह भी है कि शहर के मंदिरों में केवल पुजारी है मगर अनगढ़ हनुमान मंदिर में जगद गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा नियुक्त महंत।
शहर में फूलों का बाजार अनगढ़ मन्दिर की देन..
यह शहर का पहला ऐसा मन्दिर है जिसमे प्रवचन हाल भी है। इस हाल में साल भर कभी रामायण तो कभी भागवत तो कभी शिवपुराण पर प्रवचन होते हैं। प्रवचनकार स्वयं नागेंद्र ब्रम्हचारी होते हैं। आयोजक केवल आयोजन का व्यय उठाते हैं। नागेंद्र ब्रम्हचारी केवल मन्दिर में ही प्रवचन नही करते बल्कि जिले और जिले के बाहर भी जाते हैं।
यह इस मंदिर की ही देन है कि शहर में फूल बाजार बना। फूल बेचने वाले शहर में कही मिले ना मिले इस मंदिर के पास जरूर मिल जाएंगे। पहले इस मन्दिर के आस -पास ही फूल बेचने वाले बैठा करते थे। धीरे – धीरे फूल बेचने वालों की संख्या बढ़ी तब नगर निगम ने बस सी एस काम्प्लेक्स के पास फूल बाजार ही बनवा दिय है। यहां फूल वालो की भी हनुमानजी के प्रति अगाध श्रद्धा है। सब फूल वाले मिलकर यहां इस प्रतिमा पर हर शनिवार को एक किवंटल फूलों से बनी माला अर्पित करते हैं।