माउंटन मेन “दशरथ मांझी की कहानी
14 जनवरी को जयंती पर विशेष
*दशरथ मांझी गरीब मजदूर थे, केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। इन्हें “माउंटन मैन” के नाम से भी जाना जाता है
दशरथ मांझी, एक ऐसा नाम जो इंसानी जज़्बे और जुनून की मिसाल है. वो दीवानगी, जो प्रेम की खातिर ज़िद में बदली और तब तक चैन से नहीं बैठी, जब तक कि पहाड़ का सीना नही चीर दिया.
जानें मांझी के बारे में
बिहार में गया के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी के माउंटन मैन बनने का सफर उनकी पत्नी का ज़िक्र किए बिना अधूरा है. गहलौर और अस्पताल के बीच खड़े जिद्दी पहाड़ की वजह से साल 1959 में उनकी बीवी फाल्गुनी देवी को वक़्त पर इलाज नहीं मिल सका और वो चल बसीं. यहीं से शुरू हुआ दशरथ मांझी का पहाड़ से इंतकाम.
22 साल की कड़ी मेहनत
पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. शुरुआत में उन्हें पागल कहा गया. दशरथ मांझी ने बताया था, ‘गांववालों ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया था अकेला शख़्स पहाड़ भी फोड़ सकता है!
साल 1960 से 1982 के बीच दिन-रात दशरथ मांझी के दिलो-दिमाग में एक ही चीज़ ने कब्ज़ा कर रखा था कि पहाड़ से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेना है और 22 साल जारी रहे जुनून ने अपना नतीजा दिखाया और पहाड़ ने मांझी से हार मानकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता दे दिया वे दुनिया से चले गए लेकिन उनका बनाया रास्ता अब हजारों लोगों को जीवन देता है
दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया है केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया है यह कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को सबक सिखाती रहेगी।
क्या जुनून रहा होगा, क्या प्रेम रहा होगा, कुछ तो बेचैनी जरूर रही होगी, ऐसे तो पर्वत का सीना चीर कर रास्ता नही बना होगा जब इरादे फौलादी हो तो चट्टान भी चटक जाती हैं यह दशरथ मांझी ने साबित कर दिखाया है