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गीता बताती है कि शांति सूत्र यह है कि परम सत्य ही सबका स्वामी, सबका भोक्ता और हर जीव का परम हितैषी मित्र है। यदि हम केवल इसे समझ लें और स्वीकार कर लें, तो वास्तविक शांति है कोई अगर डॉक्टर के पास जाए और कहे कि मुझे अपने सिर में कोई आवाज सुनाई देती है, तो संभव है कि उसे किसी मनोचिकित्सक के पास भेज दिया जाए, पर सच तो यह है अपने सिर में कोई न कोई आवाज हर समय सुनता है। यह खुद-ब-खुद चलने वाली विचार प्रक्रिया है, जिसके बारे में हमें पता ही नहीं है कि इसे रोकने का सामर्थ्य हममें है यह आवाज टीका टिप्पणी करती है, अटकलें लगाती है, निर्णय व निष्कर्ष निकालती है, तुलना करती है, शिकायत करती है, पसंद-नापसंद करती है। हो सकता है कि वह अतीत के गढ़े मुर्दों में फिर से जान डाल रही हो, या किसी संभावित भावी स्थिति की रिहर्सल कर रही हो या कुछ कल्पना कर रही हो इसी को चिंता कहते हैं। कभी-कभी तो इस साउंडट्रैक के साथ दृश्य- कल्पना या ‘मानसिक चलचित्र’ भी जुड़ जाता है।
आप खुद को अपने मन से आजाद कर सकते हैं। जब-जब भी हो सके, अपने सिर के अंदर बोलती आवाज को ध्यान से सुनना शुरू कीजिए। उन विचारों के ढर्रे पर विशेष ध्यान दीजिए, साक्षी के रूप में वहां उपस्थित रहिए। कोई निर्णय, निष्कर्ष न लें। इस प्रकार जब आप अपना कोई विचार सुनते हैं, तब आप केवल उस विचार के प्रति ही सजग नहीं रहते हैं बल्कि उस विचार के साक्षी के रूप में खुद के प्रति भी, सजग रहते हैं। अपने मौजूदा काम पर ध्यान दें। जैसे जब भी सीढियां चढ़ें या उतरें, तब अपने हर कदम पर अपनी हर गतिविधि पर, यहां तक कि अपनी सांस पर भी, आप अपना पूरा-पूरा ध्यान बनाए रखें। पूरी तरह वर्तमान में रहें। वहां अपनी उपस्थिति की नीरव शांत लेकिन ऊर्जस्वी अनुभूति को महसूस करें