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छिन्दवाडा का भुजलिया उत्सव : आल्हा – ऊदल की शौर्यगाथा का प्रदर्शन,आधी सदी से ज्यादा का सफर

श्री बड़ी माता मंदिर से धूम -धाम से निकाला जुलूस

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♦छिन्दवाडा मध्यप्रदेश –

मध्यप्रदेश के महोबा क्षेत्र के वीर योद्धा माँ शारदा के परम भक्त अमर  ” आल्हा” की वीरता का महापर्व “भुजलिया” छिन्दवाडा में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर छोटा बाजार  स्थित नगर शक्ति पीठ श्री बड़ी माता मंदिर से भुजलिया उत्सव समिति ने उत्सव की  पारम्परिक शोभायात्रा  समारोह पूर्वक निकाली। समारोह में   सांसद विवेक साहू मुख्य अतिथि थे।  शोभायात्रा छोटा बाजार से मेन रोड, गोल गंज, राज टाकीज़, आजाद चौक, पुराना बैल बाजार  कर्बला चौक होते हुए बड़ा तालाब मैदान पहुंची।  जहां अतिथियों  ने समिति के सदस्यों , कलाकारों,  आल्हा गायको के साथ ही सहयोगियों का  सम्मान किया।  यहां कलाकारों ने महोबा के ऐतिहासिक युद्ध का प्रदर्शन भी  किया। इसके बाद भुजलिया कलशों का बड़ा तालाब में विसर्जन कर भुजलिया मिलन समारोह मनाया गया।

जुलूस में महोबा युद्ध के पात्र के रूप में आल्हा, ऊदल, मामा महिल, वीर धान्दू , ब्रम्हा , लाखन , ईदल सहित राजा पृथ्वीराज चौहान ,राजकुमारी चन्द्रावली का डोला  सहित सेना शामिल थी।  शोभायात्रा में पात्र  घोड़ो पर सवार  होकर चल रहे थे। शोभायात्रा में  अखाड़ा कला के कलाबाजो ने हैरतंगेज कलाबाजियां दिखाई। भगवान शिव की बारात, हनुमान जी का विराट स्वरूप सहित लोकनृत्य दल  भी आकर्षण का केंद्र रहे।  हजारों की संख्या में शहरवासी शामिल हुए।  जुलूस के बड़ा तालाब मैदान पहुंचने पर महोबा युद्ध का प्रदर्शन भी किया गया।

11 वी शताब्दी का है इतिहास ..

भुजलिया उत्सव छिन्दवाड़ा शहर की परंपरा का बड़ा उत्सव है। साहस ,शौर्य और वीरता और नारी सम्मान  का प्रतीक है। उत्सव में जिस महोबा युद्ध को प्रदर्शित किया जाता है वह 11 वी शताब्दी का है। पर्व पर लोग एक- दूसरे को भुजलिया देकर गले लगाते हैं और भलाई- बुराई भूलकर अपने जीवन के साथ ही समाज और देश को उन्नत बनाने का संकल्प लेते है।

महोबा के ऐतिहासिक युद्घ की यह है गाथा.

महोबा का ऐतिहासिक यद्ध 11 वी शताब्दी का है। जो दिल्ली के राजा पृथ्वी राज चौहान और उत्तरप्रदेश बुंदेलखंड की राजधानी  “महोबा” के राजा “परमार” के बीच लड़ा गया था।  महोबा वह रियासत थी जिसमे राजा परमार के पास ” “पारसमणि” नवलखा हार और सुंदर राजकुमारी” चंद्रावल थी। इन तीनो को पाने के लिए “पृथ्वीराज” ने सेना सहित “महोबा” पर उस समय हमला बोल दिया था। जब रक्षाबंधन के दिन राजकुमारी ” चंद्रावल” अपनी सखियों के साथ  कीरत सागर में “श्रावणी” विसर्जित करने गई थी।

राजकुमारी चंद्रावल ने अपनी सहेलियों के साथ पृथ्वीराज की सेना से युद्ध किया था । इस युद्ध में राजा परमाल का पुत्र राजकुमार अभई वीरगति को प्राप्त हुआ था। राजा  पृथ्वीराज चौहान ने राजा परमाल को संदेश भिजवाया था  कि यदि वह युद्ध से बचना चाहता है। तो राजकुमारी चंद्रावल, पारस पत्थर और नौलखा हार राजा पृथ्वीराज को सौंप दे। राजा परमाल ने पृथ्वीराज की इस मांग को अस्वीकार कर दिया था । इस कारण कीरत सागर के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबर्दस्त युद्ध हुआ। युद्ध के  कारण बुंदेलखंड की बेटियां उस दिन कजली श्रावणी विसर्जित नही कर पाई थी।

महोबा में पृथ्वीराज के आक्रमण की सूचना “कन्नौज” के योद्धा   आल्हा और ऊदल और  कन्नौज के राजा लाखन तक  पहुंची। ये तो वे “साधु”  का वेश धरकर कीरत सागर के मैदान में पहुंचे। दोनों पक्षों में भयानक युद्ध छिड़ गया। जिसमे “आल्हा” ने पृथ्वी राज चौहान को पराजित कर दिया था। इस यद्ध में ऊदल सहित पृथ्वीराज के दो पुत्र मारे गए। आल्हा पृय्वी राज चौहान को भी मौत के घाट उतारना चाहता था लेकिन अपने गुरु ” गोरखनाथ” के कहने पर आल्हा ने पृथ्वी राज को जीवन दान दिया था। इस यद्ध के बाद ही बुंदेलखंड में कन्याओं ने कीरत सागर में “श्रावणी” विसर्जन कर “रक्षाबंधन” का पर्व मनाया था।

माँ शारदा ने “आल्हा” को दिया “अमरता” का वरदान..

महोबा का यद्ध साहस वीरता और शौर्य और नारी सम्मान की अदभुद गाथा है। इस पूरी गाथा को वीर रस में “आल्हा गायन” के रूप में गाया जाता है। “आल्हा” माँ शारदा के भक्त थे। उन्हें माँ शारदा ने “अमरता” का वरदान दिया था। इसलिए शारदा पीठ मैहर” में आज भी कहा जाता है कि प्रति दिन ब्रम्ह मुहूर्त में  “आल्हा” सबसे पहले “माता” की पूजा करते हैं। मैहर में आल्हा का “अखाड़ा” भी  है और उनके “जूते” भी रखे हैं। जूते का आकार देखकर उनकी कद – काठी का अंदाजा लगाया जा सकता है। वीर योद्धा आल्हा और ऊदल की वीरता की कहानी  भारत के घर-घर में कही जाती है। इन योद्धाओं ने अलग-अलग 52 लड़ाइयां लड़ीं और सभी में विजयी हुए थे।

110 किलो वजन की थी “आल्हा की “तलवार”

आल्हा की तलवार  7 फीट लंबी  और वजन 110 किलोग्राम था। आल्हा  72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे। आल्हा  महाकाव्य जगनायक ने  लिखा  था।  जो चंद बरदाई के समकालीन और बुंदेलखंड में महोबा के शासक परमाल  के दरबारी कवि थे। चंदवरदाई राजा पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि थे। इस महोबा युद्ध के  बाद दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद  गोरी ने धोखे से यमन में बंदी बना लिया था और यातनाए देकर उनकी आंखें फोड़ दी थी। इसके बाद भी पृथ्वी राज चौहान ने चंदवरदाई की रचना पर  अपने शब्दभेदी बाण से मोहम्मद  गोरी को मार दिया था। इतिहास में वर्णित है कि  पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने अपनी दुर्गति से बचने की खातिर एक-दूसरे पर खंजर चलाकर अपना जीवन समाप्त कर लिया था।

छिन्दवाडा में 1972 से हर साल निकलता है भुजलिया जुलूस…

छिन्दवाडा में यह उत्सव इस तरह मनाया जाता हैं कि ऐसा आयोजन तो महोबा में भी नही होता है। छिन्दवाडा के छोटा बाजार की भुजलिया उत्सव समिति ने इस उत्सव की नींव सन 1972 में  रखी थी। उत्सव को आधी सदी से भी ज्यादा का सफर हो चुका हैं। भुजलिया उत्सव समिति के अध्यक्ष ट्विंकल चरणागर  सचिव कुशल शुक्ला ने बताया कि छिन्दवाडा का यह  ऐतिहासिक उत्सव है। हमारी संस्कृति और विरासत का हिस्सा है। ना केवल मध्यप्रदेश  बल्कि पूरे देश मे इस उत्सव की अलग पहचान है।

ये रहे उपस्थित…

समारोह में सांसद विवेक साहू , नगर निगम महापौर विक्रम अहके, जिला भाजपा अध्यक्ष शेषराव यादव, नेता प्रतिपक्ष विजय पांडे, कांग्रेस नेता  आनंद बक्शी, पप्पू यादव, विहिप अध्यक्ष  अरविंद प्रताप सिंह, अजय सक्सेना, भरत घई, अंकुर शुक्ला, पंडित राम शर्मा सहित अन्य जनप्रतिनिधि के साथ ही   एसडीएम सुधीर जैन, नगर निरीक्षक उमेश गोल्हानी सहित समिति के  संरक्षक कस्तूरचंद जैन, राजू चरणनागर, सतीश दुबे लाला, अरविंद राजपूत, संतोष सोनी, मुकुल सोनी, विजय आनंद दुबे, राकेश चौरसिया, भोला सोनी, रोहित द्विवेदी, राहुल द्विवेदी, समन द्विवेदी, उपाध्यक्ष अभिषेक गोयल , अम्बर साहू, चंकी बाऊस्कर ,मयूर पटेल, सौरभ चौरसिया, शेखर शर्मा,अमित राजपूत, गौरव चौरसिया, मयंक चौरसिया,आशु चौरसिया, आकाश बिसेन, सावन जैन, नितेश कालू अनेजा, ऋषभ स्थापक, गोलू सोनी, अनुज चौरसिया, दीपक गुप्ता, सुमित दुबे, रुद्रांश राजपूत, कान्हा ठाकुर, समकित जैन, आकाश सोलंकी, तेजस्व चौरसिया, विपिन सोनी, आयुष राजपूत, राहुल सोनी, ध्रुव सोनी, सचिन सोनी, छोटू ठाकुर,अमित जैन, अंशुल जैन, अमित विश्वकर्मा अनुज विश्वकर्मा, मोहित सिंगारे, तेजस चौरसिया, गौतम सोलंकी सुजल सोनी, ऋषभ ताम्रकार, कृष्णा चौरसिया, अनव चौरसिया, नानू बारापत्रे निस्सू नामदेव, नमन साहू, पार्थ द्विवेदी, अभय पटेल, हर्षित समनपुरे, हिमांशु यादव, समर्थ चौरसिया, निखलेश विश्वकर्मा, पंकज पांडे, ओम चौरसिया सहित समिति के अन्य सदस्य सहित बड़ी संख्या में शहर के नागरिक मौजूद थे।


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