नगर निगम में फर्जी वित्तीय संकट, साढ़े सात करोड़ की वसूली के बाद भी दो माह से वेतन नही, अघोषित हड़ताल पर कर्मी
अध्यक्ष सहित कांग्रेस पार्षद दल पहुंचा निगम, महापौर और कमिश्नर से वेतन मुद्दे पर की बात
♦छिन्दवाडा मध्यप्रदेश –
नगर निगम में अंधेर नगरी चौपट राजा है। यहां कुछ नही बहुत कुछ गड़बड़ है। साढ़े सात करोड़ की वसूली के बाद भी अधिकारियों – कर्मचारियो को दो माह का वेतन नही दिया है। तो फिर साढ़े सात करोड़ गए कहां। जैसे ही हर माह वेतन भुगतान का मसला आता है। निगम का वित्त विभाग वित्तीय संकट का रोना रोकर हाथ खड़े कर देता है। निगम में लंबे समय से यही सब कुछ चल रहा है। निगम में वित्त का यह फर्जी संकट कब तक चलता रहेगा। जबकि निगम हर माह निर्माण कार्य, सप्लाई से लेकर खरीदी और अन्य खर्चो में करोड़ो का भुगतान कर रहा है। निगम में संकट के बाद भी हर माह 8 से 10 करोड़ का भुगतान हो रहा है।
दीपावली के पूर्व वेतन की मांग को लेकर सोमवार को निगम के अधिकारी – कर्मचारी अघोषित हड़ताल पर चले गए हैं। कर्मचारी निगम के गेट पर धरने पर बैठ गए थे। जानकारी लगते ही निगम के अध्यक्ष सोनू मांगो सहित कांग्रेस पार्षद दल निगम पहुंचा था। पहले निगम अध्यक्ष ने कर्मचारियो की बात सुनी और फिर महापौर विक्रम अहके, सहित कमिश्नर सी पी राय से मुलाकात कर वेतन मुद्दे पर बात की है। नगर निगम महापौर और कमिश्नर ने कहा है कि अधिकारियों – कर्मचारियो का एक माह का वेतन मंगलवार को हो जाएगा। निगम ने अब तक सितम्बर माह का ही वेतन रिलीज नही किया है। अक्टूम्बर का वेतन 28 अक्टूम्बर के पहले देने के शासन के आदेश है।
बात की जाए निगम के वित्त विभाग की तो यहां ठेकेदारों और सप्लायरों के भुगतान के पीछे कमीशन का बड़ा खेल है। इस वजह से महापौर हो कमिश्नर हो या अन्य अधिकारी वित्त विभाग की गोद मे बैठे नजर आते हैं। यहां वित्त विभाग महापौर और कमिश्नर के नियंत्रण में नही है।बल्कि वित्त विभाग ने महापौर और कमिश्नर को नियंत्रण में बांध रखा है।
नगर निगम में राजस्व की पर्याप्त वसूली और चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि आने के बाद भी अधिकारियों – कर्मचारियो को वेतन नसीब नही होना यही कहानी बता रहा है। निगम में केवल वही भुगतान हो रहा है। जिस पर वित्त विभाग मोहर लगाता है। निगम में मद परिवर्तन कर भुगतान के भी दर्जनों मामले है। बड़ी बात है कि निगम निधि का बड़ा हिस्सा नगर की जनता से आता है। निगम के अधिकारी यहां जनता की ही नही सुनते और ना ही निर्वाचित प्रतिनिधियो की ही मानते हैं। निगम भर्राशाही और भ्र्ष्टाचार की गिरफ्त में है। अधिकारियों और कर्मचारियो को यहां हर माह ही वेतन के लिए काम बंद हड़ताल की चेतावनी देना पड़ रहा है। कर्मियों के वेतन के ये हाल है। वेतन के साथ यदि जी पी एफ और ई पी एफ की राशि की बात की जाए तो वित्त विभाग ने करीब तीन साल से कर्मियों के खातों में यह राशि नही डाली है। बकाया की यह राशि भी करोड़ो में है। कर्मियों के खाते में यह राशि ना डालना गंभीर अपराध है क्योंकि यह राशि अधिकारियों और कर्मचारियो के वेतन से काटी जाती है।
कर्मचारियो ने शिकायत की है कि नगर निगम के लेखाधिकारी प्रमोद जोशी की मनमर्जी के चलते निगम में ये हालात बने हैं। वे करीब 30 साल से यहां पदस्थ है और विभाग को अपने कब्जे में कर रखा है।। एक लेखाधिकारी के साथ चार सहायक लेखा अधिकारी की वित्त विभाग में पदस्थापना के बाद भी वे यहां अपने अलावा किसी को पदस्थ नही होने देते हैं। सहायक लेखा अधिकारियों को यहां दूसरे विभाग में पदस्थ कर रखा गया है।
दो माह में नगर निगम में साढ़े छह करोड़ की राजस्व वसूली की गई है। 80 लाख की चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि शासन ने दी है। इसके अलावा 30 लाख की आय अन्य मदो से हुई है। करीब साढ़े सात करोड़ का राजस्व संकलित हुआ है। इसके बावजूद आखिर अधिकारियों – कर्मचारियों का वेतन क्यो नही हुआ है। यह जांच का विषय है। दरअसल निगम को सक्षम अधिकारियों की जरूरत है। जो निगम में है नही।
कर्मचारियो का आरोप था कि कायदे से सितम्बर माह का वेतन 5 अक्टूम्बर तक और अक्टूबर माह का वेतन 28 अक्टूम्बर के पहले हो जाना चाहिए था लेकिन नही हुआ है। यह सब नगर निगम के वित्त विभाग में चल रही गड़बड़ी और मनमर्जी के चलते हुआ है। जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के आदेश है कि दीपावली त्यौहार के चलते वेतन भुगतान 28 अक्टूबर तक कर दिया जाएगा। निगम में कमीशन के चक्कर मे यहां ठेकेदारों और सुपलायरो के भुगतान पहले होते हैं। इसके लिए मद परिवर्तन तक कर दिया जाता है। नगर निगम भारी वित्तीय गड़बड़ी का शिकार हैं। शिकायत के बाद भी नगर निगम की वित्तीय गड़बड़ी को ना जिला प्रशासन जांच करता है ना ही शासन ही कोई एक्शन लेता है।
बात पिछले दो माह की ही की जाए तो साढ़े सात करोड़ का राजस्व नगर निगम निधि में आने के बाद भी अधिकारियों – कर्मचारियो का वेतन भुगतान क्यो नही किया गया है। निगम कमिश्नर को इसका जवाब देना था तो वे उल्टे कर्मियों से अभद्र व्यवहार पर उतारू नजर आए कि जाओ अपना काम करो।