धार्मिक

अंहकार का शमन करते हैं काल भैरव

काट दिया था ब्रम्हा का पांचवा सिर

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भगवान भैरवनाथ के जन्म की कथा..

कालभैरव जयंती पर विशेष..

हिंदू धर्म में भगवान  भैरवनाथ  को  भगवान शिव  का पांचवा रूप माना गया है। भैरवनाथ  का रूप  भयावह है  काल भी  उनसे भीसे डरता है। इसलिए उन्हें  काल भैरव के नाम से  जाना जाता है। शिव पुराण  के अनुसार   सृष्टि का निर्माण तीन तत्वों से हुआ है जिन्हें सत्व,तम और रज कहते हैं भगवान शिव इन तीनों गुणों के स्वामी है उनके रुद्रावतार भैरवनाथ है और वे इन तीनों गुणों के रक्षक माने जाते हैं। पुराणों में भैरवनाथ को दिशाओं का रक्षक और काशी का कोतवाल भी माना गया है। उनके जन्म की कथा इस प्रकार बताई जाती है कि एक बार देवताओं  और ऋषि-मुनियों में बहस हो गई कि  सबसे श्रेष्ठ देवता कौन है। ब्रह्मा  विष्णु और महेश   मैं से श्रेष्ठ देवता कौन है। दक्ष संस्कृति को मानने वालों ने अहंकार के अधीन होकर अपने इष्ट देवता ब्रह्मा  को सर्वश्रेष्ठ बताया  ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। दूसरी तरफ वैष्णव पंथ का मानना था कि इस संसार के पालन करता भगवान विष्णु  सर्वश्रेष्ठ देवता है। उस भरी सभा में महादेव का पक्ष लेने वाला कोई नहीं था। और ना ही वह स्वयं को श्रेष्ठ कहलवाना ना चाहते थे इसलिए वे इन सब पर बिना कुछ कहे शांत ही रहे। किंतु ब्रह्मा  के पांचवे सर को उनकी चुप्पी पसंद नहीं आई और वह अहंकार के अधीन होकर बोल पड़े कि यह असभ्य सा दिखने वाला बैरागी भी देव कैसे हो सकता है। इसे ना तो इसके कुल का ज्ञान है और ना ही इसकी कोई जाति है यहां तक कि इसके पास तो तन को ढकने के लिए वस्त्र तक नहीं है ऐसे में भला कोई इसे श्रेष्ठ देव कैसे मान सकता है।

इस  अपमान के कटु वचन सुनकर भी महादेव चुप रहे। वे जानते थे कि सभ्यता के विकास और इस संसार के उद्धार के लिए अहंकार की कोई जगह नहीं है इस कारण वे जानते थे कि वेदों के ज्ञाता ब्रह्मा के पांचवे सर को नष्ट करना ही होगा क्योंकि इसके रहते वह कभी भी पूर्ण या पारब्रह्म नहीं हो सकते। उसी क्षण शिवजी का शरीर थरथर कांपने लगा और देखते ही देखते उसमें से एक काली सी आकृति प्रकट हुई। जो देखने में इतनी भयानक थी कि कई देवता गण वहां से भाग गए। तत्पश्चात उन्होंने ब्रह्मा  के अहंकार रूपी पांचवे सर को अलग कर दिया। इस प्रकार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा  दोष रहित हो गए। परंतु भैरव के इस कृत्य से उन पर ब्रह्म रूपी पाप चड़ गया और एक हत्या रूपी आकृति उनका पीछा करने लगी। इस प्रकार वे इससे बचने के लिए तीनों लोकों में भटकने लगे। भटकते भटकते कई वर्ष बीत गये फिर उन्होंने अपने इष्ट देवता शिव जी का ध्यान किया और मदद मांगी।

तब महादेव ने कहा कि वे उनके प्रिय नगरी वाराणसी में जाए और उक्त स्थान को अपनी निवास स्थली बनाएं  यह एक पवित्र स्थल है। वहां पर जाने मात्र से ही पाप नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने वैसा ही किया वहां प्रवेश करते ही उनके पाप रूपी हत्या नष्ट हो गई। तब से बाबा भैरव उक्त स्थान पर रहकर अपने भक्तजनों पर असीम अनुकंपा बरसा रहे हैं।

बाबा भैरवनाथ के है  आठ रूप..

बाबा भैरवनाथ  के आठ रूपो का  है जिनके पूजन और स्मरण मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर होने लगते हैं।इनमे

  1. क्रोध भैरव
    असितांग भैरव
    चण्ड भैरव
    रूरू भैरव
    उन्मत्त भैरव
    कपाल भैरव
    भीषण भैरव
    संहार भैरव है
    कालिका पुराण में भी भैरवनाथ  को महादेव का गण बताया गया है  इनकी सवारी कुत्ता है। भैरवनाथ æको तंत्र मंत्र विधाओं का देवता भी माना जाता है इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती हैं। काल भैरव की पूजा अर्चना करने से परिवार में सुख समृद्धि रहती है और स्वास्थ्य की रक्षा होती है।


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