
छिन्दवाड़ा- छिन्दवाड़ा के किसानों के लिए सरसो की फसल फायदे का सौदा साबित हो रही है कम पानी और कम मेहनत में सरसों की फसल से किसानों के बढ़ते फायदे के चलते जिले में सरसों फसल की बोवनी का रकबा भी बढ़ रहा है मात्र दो वर्षों में ही सरसो फसल रकबा 30 हजार हेक्टेयर हो गया है जिसे 50 हजार तक ले जाने का लक्ष्य है किसानों की माने तो सरसो फसल से प्रति एकड़ कमाई 50 से 60 हजार तक है गुरुवार को कृषि विभाग ने सरसों प्रक्षेत्र दिवस मनाया इस अवसर पर कलेक्टर शीतला पटले ने सरसों उत्पादक किसानों से मुलाकात की किसानों ने कलेक्टर से अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि सरसों की फसल कम लागत एवं कम पानी में अधिक मुनाफ़ा देती है। इस वजह से किसानों की भी रुचि बड़ी है इस अवसर पर सीईओ जिला पंचायत हरेन्द्र नारायण, उप संचालक कृषि जितेन्द्र कुमार सिंह सहित कृषि विभाग का अमला भी मौजूद था कलेक्टर शीतलापटले ने ग्राम चन्हियाकला और बोहनाखेरी में कृषकों के साथ सरसों का प्रक्षेत्र दिवस भी मनाया ।इस वर्ष ग्राम बोहनाखैरी के किसान शालिगराम पाल ने 10 एकड चन्हियाकला के किसान रोहित उसरेठे ने 30 एकड़ में सरसों की बोवनी की है ग्राम चन्हियाकला, बोहनाखेरी एवं उमरिया इसरा में ही करीब 300 हेक्टेयर क्षेत्र में सरसों की फसल बोई गई है जिले में सरसों का उत्पादन औसत प्रति हेक्टेयर 10 किवंटल का है
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आदिवासी ब्लाकों में कोदो-कुटकी
जिले के आदिवासी ब्लाकों में कोदो-कुटकी का उत्पादन भी बढ़ा है । इसका रकबा लगभग 16000 हेक्टेयर है। इससे किसानों को प्रति हेक्टेयर 6 से 7 क्विंटल का उत्पादन मिलता है। यह खेती जिले के आदिवासी अंचल तामिया, हर्रई व जुन्नारदेव में की जाती है। कोदो-कुटकी पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण इसकी स्थानीय स्तर के साथ ही देश-प्रदेश में विशेष पहचान और मांग है कोदो -कुटकी को मिलेट मिशन से भी जोड़ा गया है