
- नर्मदायै नम: प्रात: नर्मदायै नमो निशि।
नमोस्तु नर्मदा देवी त्राहिमाम शरणागतम॥
त्वदीय_पाद_पंकजम_नमामि_देवी_नर्मदे
संसार में जितनी भी नदियाँ है उसमे नर्मदा नदी के अतिरिक्त किसी भी नदी की प्रदिक्षणा करने का प्रमाण नही है। नर्मदा नदी के अलावा किसी भी नदी पर पुराण की रचना नहीं हुई है। केवल नर्मदा नदी के नाम से “नर्मदा पुराण” है।
नर्मदा नदी के महत्त्व के बारे में कहा गया है कि जो पुण्य गंगा नदी में नहाने से मिलता है, वही पुण्य माँ नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है ।
त्रिभि:_सारस्वतं_तोयं_सप्ताहेन_तू_यमुनाम।
सद्य:_पुनाती_गांगेयं_दर्शनादेव_नार्मदम॥
स्कन्द पुराण में कहा गया है कि, सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुना का जल सात दिनों में या सात बार स्नान करने पर, गंगा का जल एक बार स्नान करने में पवित्र करता है किन्तु नर्मदा नदी का जल केवल दर्शन मात्र से ही पवित्र कर देता है ।
नर्मदा_सेवते_नित्यं_स्वयं_देवो_महेश्वर:।
तेन_पुण्य_नदी_जेया_ब्रह्महत्या:_पहारिणी।
साक्षात् महेश्वर देव नर्मदा नदी के जल का नित्य सेवन करते है, इसलिए इस पवित्र नदी को ब्रह्महत्यारूपी पाप का निवारण करने वाली जानना चाहिए ।
नर्मदा नदी की उत्पत्ति के सम्बन्धः में लिखा गया है कि भगवन शिव और शक्ति स्वरूपा माता पार्वती के बीच हास परिहास से उत्पन्न पसीनो की बूंदो से माता नर्मदा का जन्म हुआ है भगवन शिव कि “इला” नामक कला ही नर्मदा देवी ही है। महर्षि वशिष्ठ ने कहा है कि माघ शुक्ल सप्तमी आश्विन
माँ नर्मदा का अवतरण…
नक्षत्र रविवार, मकर राशिगत सूर्य के रहते मध्ह्यानः काल के अभिजीत मुहूर्त में माता नर्मदा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ है माता नर्मदा एक 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई थी इसीलिए इस दिन को माता नर्मदा का अवतरण दिवस माना जाता है। यह स्वर्ग लोक की नदी है जिसे चंद्र वंश की चक्रवर्ती राजा परुआ की तपस्या से संतुष्ट हो कर भगवान शंकर ने वरदान स्वरुप धरती पर उतारा था।
अन्य नदियाँ प्रायः पश्चिम से पूर्व की और बहती है किन्तु नर्मदा पूर्व से पश्चिम की और यानि प्रकृति के नियमो के विरूद्ध नीचे अपने उदगम स्थल अमरकंटक कुंड से ऊपर की और भरुच भ्रर्ण कच्छ के नीचे खम्भात की खाड़ी रत्ना सागर में गिरती है । माता नर्मदा को भगवन शंकर ने वर दिया कि जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्ध हुई है उसी प्रकार से नर्मदा “दक्षिण गंगा” भी कहलाएगी। नर्मदा की गणना पवित्र सप्त गंगा से की जाती है।
नर्मदा के दोनो तटों पर अमरकंटक से लेकर भरुच तक साढ़े तीन करोड़ तीर्थ है। नर्मदा की कुल लम्बाई में से 1112 किलोमीटर का क्षेत्र मध्य प्रदेश में है। नर्मदा की 1780 मील की परिक्रमा तीन वर्ष तीन माह तेरह दिन में पूरी होती है यह परिक्रमा संत रूप में नर्मदे हर का पूर्ण स्मरण करते हुए पैदल चल कर प्रतिदिन पांच गृहस्थों से भिक्षा वृत्ति कर पूर्ण की जाती है।
शिव पुराण कोटिरुद्र संहिता अध्याय दो से चार के अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा मैया स्वयं साल में एक बार काली गाय के रूप में आकर नर्मदा स्नान करती है तथा पापियों को पापमुक्त करने से संचित सभी पापो से मुक्त होकर धवल (सफ़ेद) गाय के रूप में लौट जाती है।
वायु पुराण के अनुसार नर्मदा का जल त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वरुप है, इसे पृथ्वी पर शिव की ‘दिव्य द्रव्य शक्ति’ माना गया है। भगवान शिव ने नर्मदा को “अजर अमर का वरदान दिया है, इसलिए प्रलय काल तक माँ नर्मदा इस धरती पर रहेगी।इसलिए माता नर्मदा का ना ”प्रलयेषु_न_मृता_सा_नर्मदा “ विख्यात है । सबको आनंद नर्म देने दा से भी इसका नाम नर्मदा हुआ है हर हर का मद हरने वाली देवी के कारण भी नर्मदा कहा जाता है माँ नर्मदा के आगे कोई अपना अभिमान नही दिखा सकता है भगवन विष्णु ने नर्मदा को आशीर्वाद दिया कि
नर्मदे_त्वे_माह्भागा_सर्व_पाप_हरी_भव”।
त्वदत्सु_या: शिला: सर्वा शिव कल्पा भवन्तु वा:॥
अर्थात तुम सभी पापो का हरण करने वाली होगी तुम्हारे जल के पत्थर शिव तुल्य पूजे जायेंगे। केवल नर्मदा से ही शिव लिंग प्राप्त होते है, जिन्हे समस्त शिव मंदिरो में स्थापित किया जाता है। ये स्वयं प्रतिष्ठित होते है। इनकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है। इसीलिए माँ नर्मदा का कंकर कंकर शंकर है।
समस्त तीर्थ का होता है मिलन …
ऐसी मान्यता है कि प्रतिवर्ष एक बार समस्त तीर्थ नर्मदा से मिलने आते है। गंगा आदि समस्त नदियाँ स्वयं नर्मदा से मिलने आती है। इसलिए नर्मदा तट पर किये गए दाह संस्कार के बाद गंगा जाने की जरूरत नहीं होती है।नर्मदा के किनारे “मणि नागेश्वर सर्प” रहते है । नर्मदा का उच्चारण करने से सांपो का भय नहीं रहता है। विषधर का जहर भी उनके मंत्र के जाप से उतर जाता है।
नर्मदायै नम: प्रात: नर्मदायै नमो निशि।
नमोस्तु नर्मदे तुभ्यं ग्राहिमाम विष सर्प तने॥
माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।
मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥
नर्मदा, समूचे विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी है| इनकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास ने स्कन्द पुराण के रेवाखण्ड में किया है। इनका प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक के मैकल पर्वत पर भगवान शंकर द्वारा 12 वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु सहित देवताओं ने कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इन दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में दस हजार दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है| इनके दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति होती है|