उज्जैन के वाग्देवी मन्दिर में नीली स्याही से होता है माता सरस्वती का अभिषेक
वसंत पंचमी पर मन्दिर में लगता है विद्यार्थियों का मेला
वाग्देवी नीलसरस्वती मंदिर उज्जैन मध्यप्रदेश
वसंत पंचमी पर विशेष …..
मध्यप्रदेश के इंदौर में धर्म की राजधानी कहलाने वाली उज्जयिनी में ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती का प्राचीन मंदिर है यहां वाग्देवी मंदिर में माता सरस्वती देवी नील सरस्वती के रूप में विराजमान हैं मन्दिर में वसंत पंचमी के दिन विद्यार्थी स्याही से माता का अभिषेक करते हैं वसंत पंचमी पर यहाँ विद्यार्थियों का मेला लगता हैं
विद्यार्थियों के अलावा देवी का दर्शन-पूजन करने हजारो की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं उज्जैन में सिंहपुरी के समीप बीजासन पीठ के सामने स्थित इस मंदिर में परीक्षा के दिनों में भी बड़ी संख्या में विद्यार्थी माता नील सरस्वती के दर्शन करने आते हैं वसंत पंचमी पर मन्दिर में विद्यार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है क्योंकि बसंत पंचमी के कुछ दिनों बाद ही परीक्षाएं भी शुरू होने को रहती है विद्यार्थी यहां देवी का स्याही से अभिषेक कर परीक्षा में सफल होने की कामना करते हैं।
मान्यता है कि माता नील सरस्वती का स्याही से अभिषेक पूजन करने से विद्यार्थी का मन पढ़ाई में लगता है ध्यान केंद्रित करने का संकल्प बलवान होता है और निशिचित ही सफलता मिलती है विद्यार्थी उच्च अंकों से उत्तीर्ण होते हैं। इसी मान्यता के चलते स्थानीय के साथ – साथ दूरदराज से भी माता के भक्त बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को लेकर माता के दरबार में आते हैं।
सनातन धर्म के 16 आधारभूत संस्कारों में से एक विद्यारंभ संस्कार को वसंत पंचमी तिथि पर करने की मान्यता है संगीत की गुरू-शिष्य परंपरा में भी वसंत पंचमी का विशेष महत्व है
उज्जैन के इस प्राचीन मंदिर में वसंत पंचमी पर वाग्देवी को वासंती फूलों के साथ नील कमल व अष्टर के फूल अर्पित करने का विधान है। शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है। हालांकि, फूलों के अर्क का स्थान अब नीली स्याही ने ले लिया है। शास्त्रों में कहीं-कहीं माता सरस्वती को नीलवर्णी कहा गया है। भगवान विष्णु से आदेशित होकर नील सरस्वती भगवान ब्रम्हा के साथ सृष्टि के ज्ञान कल्प को बढ़ाने का दायित्व संभाले हुए हैं।
मन्दिर में स्थित माता नील सरस्वती की यह मूर्ति दर्शनीय है विक्रम विश्वविद्यालय के पुरातत्व अध्ययन शाला ने मन्दिर की स्थापना का गहरा अध्ययन किया है बताया जाता है कि मन्दिर में स्थापित माता वाग्देवी की मूर्ति परमार कालीन है जिसे करीब 1000 साल पुराना माना गया है