पंजाब और उत्तर भारत का पर्व लोहड़ी
मुगल काल मे दुल्ला भट्टी के साहस की याद ताजा करता है यह पर्व
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लोहड़ी का पर्व एक राजपूत योद्धा दुल्ला भट्टी की याद में भारत के पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है ,
लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह राजपूत शासक दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है. दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है. पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहाँ के लोगों का टकराव चलता था .
दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था.वे मुगलों को लगान नहीं देते थे. मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता फरीद खान भट्टी का वध करवा दिया.
दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा. मुगलों की नजर में वह डाकू था लेकिन वह गरीबों का हितेषी था. मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था. दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उस समय पंजाब में स्थान स्थान पर हिन्दू लड़कियों को यौन गुलामी के लिए बल पूर्वक मुस्लिम अमीर लोगों को बेचा जाता था। दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न सिर्फ मुक्त करवाया बल्कि उनकी शादी भी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी कि सभी व्यवस्था भी करवाई।
सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था. उसकी दो पुत्रियाँ थी सुन्दरी और मुंदरी. गाँव का नम्बरदार इन लडकियों पर आँख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे.
सुंदर दास ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई. दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गाँव में जाकर ललकारा. उसके खेत जला दिए और लडकियों की शादी वहीं कर दी।जहाँ सुंदर दास चाहता था. इसी के प्रतीक रुप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है.!!
दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। इसी कथा की हिमायत करता लोहड़ी का यह गीत है, जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है :
सुंदर, मुंदरिये हो,
तेरा कौन विचारा हो,
दुल्ला भट्टी वाला हो,
दुल्ले धी (लडकी)व्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो।